भारत की अंडा अर्थव्यवस्था में कमर्शियल पोल्ट्री का 80% से अधिक अहम योगदान

भारत में अंडा उत्पादन दो भागों में बंटा है-Commercial Poultry आधुनिक तकनीक से उत्पादन बढ़ा रही है, जबकि Backyard Poultry ग्रामीण आजीविका और आत्मनिर्भरता का मजबूत आधार बन रही है, दोनों मिलकर अंडा अर्थव्यवस्था को संबल दे रहे हैं.

नोएडा | Updated On: 8 Aug, 2025 | 02:43 PM

अंडा सिर्फ एक भोजन नहीं, बल्कि साहस और परंपरा का प्रतीक बन चुका है. यह पोषक तत्वों से भरपूर आहार ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में अपनी अहम भूमिका निभाता है. देश की व्यापक अंडे उत्पादन व्यवस्था इस बात का उत्साहवर्धक उदाहरण है कि कैसे व्यवसायिक चिकन फार्म (Commercial Poultry) आधुनिक तकनीक और बड़े पैमाने पर उत्पादन का केंद्र बन गए हैं, जबकि घर-घर की परंपरागत सूअरों (Backyard Poultry) ग्रामीण घरों का आत्मनिर्भर ऊर्जा स्रोत बने हुए हैं.

पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, भारत में कुल 117.62 बिलियन अंडे उत्पन्न हुए- जिसमें 114.92 बिलियन (80.49 %) वाणिज्यिक प्रणाली से, जबकि 2.7 बिलियन (19.50  प्रतिशत) परंपरागत पशुपालन प्रणाली से प्राप्त हुए. यह विभाजन हमारे अंडा अर्थव्यवस्था की दो ध्रुवीय लेकिन सहायक प्रकृति को दर्शाता है.

व्यावसायिक खेतों की ताकत: बड़ी मात्रा, आधुनिकता और आपूर्ति

व्यवसायिक चिकन खेतों ने अंडा उद्योग में भारी संख्या और आधुनिक प्रबंधन एक साथ लाए हैं. इनमें उच्च उत्पादन वाली हाइब्रिड किस्मों का उपयोग, संगठित खाद्य श्रृंखला और तेज वितरण सुनिश्चित होता है. 80 फीसदी से अधिक अंडा उत्पादन का यह मॉडल कृषि और आहार सुरक्षा के लिए एक मजबूत आधार तैयार करता है.

ग्रामीण जीविका और पोषण

लगभग 20 प्रतिशत उत्पादन बेहतरीन घरेलू पद्धति से होता है-कम निवेश, स्थानीय प्रबंधन, और स्वनिर्भरता के साथ. ग्रामीण परिवार, विशेषकर महिलाएं, इसे छोटे स्तर पर बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल के साथ ही चला कर अतिरिक्त आय और पोषण सुनिश्चित करते हैं. यह घरेलू तरीका ग्रामीण अर्थतंत्र की दृढ़ता का प्रतीक है.

सरकार और नीतियों की भूमिका

सातत्यपूर्ण अंडा उत्पादन और ग्रामीण आय को बढ़ाने के लिए सरकार ने कई प्रभावी पहलें की हैं. इनमें अंडा मूल्य स्थिरीकरण, तकनीकी प्रशिक्षण, नेशनल एग कोऑर्डिनेशन कमेटी (NECC) के सहयोग से मार्केटिंग समर्थन, फ्लॉक सुरक्षा और टीकाकरण जैसे उपाय शामिल हैं. इन पहलों से न केवल पोल्ट्री किसानों को स्थायी आमदनी का जरिया मिला है, बल्कि उत्पादन में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. इससे ग्रामीण क्षेत्रों में पोषण सुरक्षा और आत्मनिर्भरता को भी बढ़ावा मिला है.

चुनौतियां और भविष्य के अवसर

घरेलू कुक्कुट पालन (Backyard Poultry) ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका का अहम साधन है, लेकिन यह अभी भी कई चुनौतियों से जूझ रहा है, जैसे-बीमारियां, बिचौलियों की निर्भरता और बाजार तक सीमित पहुंच. हालांकि वाणिज्यिक पोल्ट्री तेजी से विकसित हो रही है, घरेलू पालन को भी तकनीकी सहायता की जरूरत है. अच्छी नस्लों जैसे वानराजा (Vanaraja) और गिरीराजा (Giriraja) के उपयोग से अंडा और मांस उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है. इससे ग्रामीण परिवारों की आय में सुधार होगा और महिलाएं आत्मनिर्भर बनेंगी. सही प्रशिक्षण और सहयोग से यह क्षेत्र ग्रामीण अर्थव्यवस्था में नई जान फूंक सकता है.

Published: 8 Aug, 2025 | 02:35 PM

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