जिमीकंद वही फसल है जिसे सूरन या एलीफेंट फुट याम कहा जाता है. यह एक कंद वाली सब्जी है जो जमीन के अंदर उगती है. यह अपने स्वास्थ्य लाभों और स्वाद के कारण लोकप्रिय है. इसे उगाना किसानों के लिए बेहद आसान है, यह छायादार जगहों में भी अच्छी तरह बढ़ती है, इसमें कीट और बीमारियों का असर कम होता है. साथ ही बाजार में इसकी मांग बनी रहती है. यही वजह है कि किसान बड़ी संख्या में जिमीकंद की खेती कर रहे हैं. अगर आप भी जिमीकंद की खेती करने का मन बना रहे हैं, तो जानिए इसकी खेती की पूरी प्रक्रिया.
जिमीकंद के पोषक तत्व
जिमीकंद में लगभग 18% स्टार्च, 1-5% प्रोटीन और 2% वसा पाई जाती है. इसके तने और पत्तियां भी सब्जी के रूप में खाई जाती हैं, जिनमें 2-3% प्रोटीन, 3% कार्बोहाइड्रेट और 4-7% फाइबर होता है. हालांकि, इसमें एक खास तरह का तत्व (ऑक्सालेट) मौजूद होता है, जो इसे कड़वा बना सकता है. इसे उबालने से कड़वाहट दूर की जाती है.
खेत की तैयारी
खेत की अच्छी जुताई के बाद, 60 x 60 x 45 सेमी आकार के गड्ढे बनाए जाते हैं. छोटे कंद प्राप्त करने के लिए यह दूरी 60 x 60 सेमी होती है. गड्ढों को मिट्टी, गोबर खाद (2-2.5 किग्रा) और लकड़ी की राख से भरकर तैयार किया जाता है.
रोपण प्रक्रिया
जिमीकंद को बीज कंद से उगाया जाता है. कटाई के बाद कंदों को अच्छी हवा वाली जगह पर रखा जाता है. फरवरी में रोपण से पहले, इन्हें 750-1000 ग्राम के टुकड़ों में काटा जाता है, जिनमें अंकुरण वाला भाग रहता है. इन टुकड़ों को गोबर के घोल या लकड़ी की राख में लपेटकर सुखाया जाता है और फिर गड्ढों में लगाया जाता है.
जिमीकंद की उन्नत किस्में
जिमीकंद की खेती को अधिक लाभदायक बनाने के लिए इसकी उन्नत किस्मों का चयन करना जरूरी है. इनमें श्री पद्मा और गजेन्द्र प्रमुख किस्में हैं. ये उन्नत किस्में अधिक उत्पादन देने के साथ-साथ रोगों और कीटों के प्रति बेहतर प्रतिरोधक क्षमता भी रखती हैं, जिससे किसानों को अधिक लाभ मिलता है.
पोषक तत्व प्रबंधन
रोपण के 45 दिन बाद 40 किग्रा नाइट्रोजन, 60 किग्रा फास्फोरस और 50 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर देना चाहिए. खाद और बारिश के बाद हल्की खुदाई करें और एक महीने बाद फिर से 40 किग्रा नाइट्रोजन और 50 किग्रा पोटाश जरूर डालें.
सिंचाई प्रबंधन
जिमीकंद मुख्य रूप से वर्षा आधारित फसल है, लेकिन अगर बारिश देर से होती है, तो हल्की सिंचाई करनी चाहिए. यह फसल जलभराव को सहन नहीं कर सकती, इसलिए खेत में जल निकासी का उचित प्रबंधन जरूर करें.
कीट और रोग नियंत्रण
कॉलर रॉट- कॉलर रॉट जिमीकंद में होने वाला एक प्रमुख रोग है, जो मुख्य रूप से जलभराव और खराब जल निकासी के कारण होता है. इससे बचाव के लिए सबसे पहले स्वस्थ बीज कंद का उपयोग करना जरूरी है. यदि किसी पौधे में यह संक्रमण दिखे, तो उसे तुरंत हटा देना चाहिए, ताकि यह अन्य पौधों तक न फैले. मिट्टी की गुणवत्ता सुधारने के लिए उसमें नीम खली मिलाना फायदेमंद होता है. साथ ही, ट्राइकोडर्मा जैसे जैव-नियंत्रण एजेंट का उपयोग भी किया जा सकता है. इसके अतिरिक्त, मिट्टी को कैप्टन 0.2% घोल से उपचारित करने से इस रोग पर नियंत्रण पाया जा सकता है.
मोजेक रोग- मोजेक रोग एक वायरस जनित संक्रमण है, जो मुख्य रूप से संक्रमित बीज सामग्री और कीटों के माध्यम से फैलता है. यह रोग पौधों की पत्तियों पर धब्बे, आकार में विकृति और विकास में रुकावट पैदा कर सकता है. इससे बचाव के लिए सबसे पहले वायरस मुक्त और स्वस्थ बीज का चयन करना जरूरी है. इसके अलावा, कीटों से होने वाले संक्रमण को रोकने के लिए समय-समय पर जरूरी कीटनाशकों का छिड़काव करना चाहिए, ताकि यह रोग फसल में न फैल सके.
कटाई और उपज
जिमीकंद की कटाई 8-9 महीने बाद की जाती है, जब पौधे के पत्ते सूख जाते हैं. कटाई के लिए कुदाल या फावड़े का उपयोग किया जाता है. अधिक बाजार मूल्य मिलने पर इसे 6 महीने बाद भी निकाला जा सकता है. इसकी औसत उपज 30-40 टन प्रति हेक्टेयर होती है.