NGT ने खोली पंजाब की पोल…अवैध डंपिंग साइट्स पर फेंके जा रहे 24 हजार से ज्यादा मवेशियों के शव

पंजाब में हर महीने औसतन 24 हजार से अधिक मवेशियों के शव निकलते हैं. इनमें गाय, भैंस और अन्य पशु शामिल हैं. चिंता की बात यह है कि इन शवों को निस्तारित करने के लिए राज्य में कोई एकीकृत और वैज्ञानिक व्यवस्था मौजूद नहीं है. रिपोर्ट में बताया गया है कि पूरे राज्य में 5,500 से ज्यादा ऐसे स्थान हैं, जहां पशु शवों को खुले में फेंका जाता है.

नई दिल्ली | Updated On: 31 Dec, 2025 | 11:34 AM

Punjab cattle carcass disposal: पंजाब, जिसे देश की हरित क्रांति का अगुवा कहा जाता है, आज एक ऐसे पर्यावरणीय संकट से जूझ रहा है जिस पर अब तक बहुत कम चर्चा हुई है. राज्य में पशु शवों के निस्तारण की व्यवस्था बुरी तरह चरमरा चुकी है. हालात इतने गंभीर हो चुके हैं कि हर महीने हजारों मरे हुए पशुओं के शव खुले में, बिना किसी वैज्ञानिक प्रक्रिया के, खेतों और गांवों के आसपास फेंक दिए जा रहे हैं. हाल ही में सामने आई NGT की एक विस्तृत रिपोर्ट ने इस समस्या की गहराई को उजागर कर दिया है और प्रशासनिक लापरवाही पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं.

हर महीने 24 हजार से ज्यादा पशु शव

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, पंजाब में हर महीने औसतन 24 हजार से अधिक मवेशियों के शव निकलते हैं. इनमें गाय, भैंस और अन्य पशु शामिल हैं. चिंता की बात यह है कि इन शवों को निस्तारित करने के लिए राज्य में कोई एकीकृत और वैज्ञानिक व्यवस्था मौजूद नहीं है. रिपोर्ट में बताया गया है कि पूरे राज्य में 5,500 से ज्यादा ऐसे स्थान हैं, जहां पशु शवों को खुले में फेंका जाता है. इनमें से अधिकतर स्थान न तो पंजीकृत हैं और न ही किसी सरकारी निगरानी में आते हैं.

गांवों में सबसे ज्यादा हालात खराब

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, शहरों की तुलना में गांवों की स्थिति कहीं ज्यादा चिंताजनक है. जहां शहरी क्षेत्रों में कुछ हद तक नगर निकायों की निगरानी और सीमित संसाधन मौजूद हैं, वहीं ग्रामीण इलाकों में पशु शवों का निस्तारण लगभग पूरी तरह निजी व्यक्तियों और असंगठित ढांचे के भरोसे है. रिपोर्ट के मुताबिक, 5,500 से अधिक डंपिंग साइट्स में से केवल कुछ ही शहरी क्षेत्रों में हैं, जबकि हजारों साइट्स गांवों के आसपास फैली हुई हैं. इससे साफ है कि ग्रामीण पंजाब में यह समस्या विकराल रूप ले चुकी है.

पशुधन की बड़ी संख्या, बढ़ता दबाव

पंजाब में पशुधन की संख्या करीब 70 लाख के आसपास आंकी गई है, जिनमें लगभग 65 लाख गाय और भैंस हैं. इतनी बड़ी संख्या में पशुधन होने के कारण स्वाभाविक रूप से हर साल बड़ी संख्या में पशुओं की मृत्यु होती है. लेकिन इस प्राकृतिक प्रक्रिया से निकलने वाली चुनौती से निपटने के लिए राज्य ने आज तक ठोस तैयारी नहीं की. नतीजा यह है कि मृत पशुओं के शव खुले में सड़ते रहते हैं, जिससे दुर्गंध, गंदगी और संक्रमण का खतरा लगातार बढ़ रहा है.

कुछ जिलों में स्थिति और भी भयावह

राज्य के कुछ जिलों में हालात बेहद खराब हैं. उदाहरण के तौर पर, लुधियाना जिले में हर महीने सबसे ज्यादा पशु शव निकलते हैं. वहीं होशियारपुर जैसे जिलों में डंपिंग साइट्स की संख्या सबसे अधिक बताई गई है. इन इलाकों में खेतों, नालों और खाली जमीनों पर पड़े पशु शव अब आम नजारा बन चुके हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि बरसात के मौसम में यह समस्या और भी गंभीर हो जाती है, जब सड़ते शवों से निकलने वाला गंदा पानी आसपास के खेतों और जल स्रोतों तक पहुंच जाता है.

पर्यावरण और स्वास्थ्य पर मंडराता खतरा

खुले में पशु शवों का निस्तारण केवल गंदगी का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह सीधे-सीधे पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य से जुड़ा गंभीर खतरा है. विशेषज्ञों के अनुसार, सड़ते शवों से निकलने वाले रसायन और बैक्टीरिया भूजल को प्रदूषित कर सकते हैं. इससे पीने के पानी में संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ जाता है. इसके अलावा आवारा कुत्ते, जंगली जानवर और पक्षी इन शवों को नोचते हैं, जिससे बीमारियों के फैलने की आशंका और बढ़ जाती है.

प्रशासनिक ढिलाई और नियमों की कमी

इस पूरे मामले में सबसे बड़ा सवाल प्रशासनिक इच्छाशक्ति को लेकर उठता है. रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि पशु शव निस्तारण को लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग कोई स्पष्ट नियम या निगरानी तंत्र नहीं है. शहरी इलाकों में जहां आधुनिक रेंडरिंग प्लांट या नियंत्रित व्यवस्था की दिशा में कुछ कदम उठाए गए हैं, वहीं गांवों को अब भी पूरी तरह नजरअंदाज किया गया है. यही कारण है कि समस्या साल दर साल बढ़ती चली गई.

समाधान की जरूरत, नहीं तो संकट और गहराएगा

विशेषज्ञों और पर्यावरण से जुड़े संगठनों का मानना है कि अगर समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो यह संकट आने वाले वर्षों में और भयावह रूप ले सकता है. वैज्ञानिक तरीके से पशु शवों के निस्तारण, आधुनिक प्रोसेसिंग यूनिट, और गांव स्तर पर निगरानी व्यवस्था बनाना अब बेहद जरूरी हो गया है. साथ ही, किसानों और ग्रामीणों को भी जागरूक करने की जरूरत है ताकि वे खुले में शव फेंकने के बजाय सुरक्षित विकल्प अपनाएं.

पंजाब के लिए चेतावनी

यह पूरा मामला पंजाब के लिए एक बड़ी चेतावनी है. खेती और पशुपालन पर आधारित राज्य की अर्थव्यवस्था तभी टिकाऊ रह सकती है, जब पर्यावरण और स्वास्थ्य की अनदेखी न की जाए. पशु शव निस्तारण की समस्या अब सिर्फ प्रशासनिक मुद्दा नहीं रही, बल्कि यह एक सामाजिक और पर्यावरणीय संकट बन चुकी है. अगर इसे प्राथमिकता पर हल नहीं किया गया, तो इसके दुष्परिणाम लंबे समय तक पंजाब को झेलने पड़ सकते हैं.

Published: 31 Dec, 2025 | 11:23 AM

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