लंपी वायरस ने छीना दूध और बढ़ाई चिंता, पशुपालक समय रहते लगवाएं टीका.. पैसा नहीं ले रही सरकार

मुजफ्फरपुर में लम्पी स्किन डिजीज तेजी से फैल रही है, जिससे दूध उत्पादन घटा है और पशुपालक परेशान हैं. टीकाकरण, आयुर्वेदिक इलाज और सतर्कता ही इसका समाधान है. सरकार सक्रिय रूप से इलाज और जागरूकता फैला रही है.

नोएडा | Published: 22 Aug, 2025 | 12:54 PM

जहां पहले हर सुबह गायों की रंभाहट और दूधियों की चहल-पहल सुनाई देती थी, वहां अब एक अजीब सी खामोशी छाई है. बाड़ों में चुपचाप बैठी गायें, लाचार नजरों से आसमान निहारती हैं, और उनके मालिक चिंता की लकीरों के साथ इधर-उधर भटकते हैं. गांव के जीवन की रफ्तार थम सी गई है. कारण है- लंपी स्किन डिजीज, एक वायरस जनित बीमारी जो तेजी से गायों और बछड़ों को अपनी चपेट में ले रही है. बीमारी का नाम जितना अनसुना है, असर उतना ही खतरनाक. कई मवेशियों की जान जा चुकी है और हजारों की हालत चिंताजनक बनी हुई है. इस महामारी ने न सिर्फ पशुधन को प्रभावित किया है, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी झकझोर कर रख दिया है.

तेजी से फैल रहा संक्रमण

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार लंपी स्किन डिज़ीज़ एक संक्रामक रोग है जो मच्छरों, मक्खियों या संक्रमित पशु के सीधे संपर्क से फैलता है. शुरू में मवेशी को तेज बुखार होता है, फिर शरीर पर कठोर गांठें बनने लगती हैं. बीमारी की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कुछ इलाकों की लगभग सभी पंचायतें इससे प्रभावित हैं. कई जगहों पर मवेशियों ने खाना-पीना छोड़ दिया है, जिससे उनकी हालत लगातार बिगड़ रही है. पशुपालक डर और बेबसी में दिन काट रहे हैं, क्योंकि एक बीमार जानवर पूरे बाड़े को संक्रमित कर सकता है.

दूध उत्पादन पर पड़ा सीधा असर

लम्पी बीमारी का सबसे बड़ा असर दुधारू गायों पर पड़ा है. एक सामान्य गाय जो पहले 8-10 लीटर दूध देती थी, अब मुश्किल से 3-4 लीटर दूध दे रही है. इससे किसानों की आमदनी आधी हो गई है. दही, पनीर और घी जैसे दुग्ध उत्पाद बनाने वाले ग्रामीण उद्योग भी प्रभावित हुए हैं. कई परिवारों की रोज़ी-रोटी सिर्फ दूध पर निर्भर है, ऐसे में इस गिरावट ने उन्हें आर्थिक संकट में डाल दिया है. गांवों में दूध की कमी भी देखने को मिल रही है, जिससे स्थानीय बाजारों में दाम बढ़ने लगे हैं.

टीकाकरण ही एकमात्र सुरक्षा कवच

लम्पी रोग से बचाव का सबसे प्रभावी उपाय है- टीकाकरण. पशुपालन विभाग द्वारा बड़े स्तर पर वैक्सीनेशन अभियान चलाया जा रहा है. अब तक लाखों मवेशियों को टीका लगाया जा चुका है. चलंत मेडिकल वैन के जरिए गांवों में जाकर शिविर लगाए जा रहे हैं. पशु चिकित्सकों की विशेष टीमें गंभीर रूप से प्रभावित क्षेत्रों में लगातार भ्रमण कर रही हैं. विभाग का लक्ष्य है कि हर गाय और बछड़े को जल्द से जल्द सुरक्षित किया जा सके.

नीम-कपूर और पोषण ही इलाज

विशेषज्ञों के अनुसार, अगर किसी मवेशी को पहले से टीका नहीं लगा है और उसे लम्पी हो गया है, तो बीमारी के दौरान वैक्सीनेशन करना खतरनाक हो सकता है. ऐसे में पशुपालकों को सलाह दी जा रही है कि वे प्राकृतिक उपाय अपनाएं. नीम और कपूर का पेस्ट घावों पर लगाने से राहत मिलती है. साथ ही, मवेशियों को पौष्टिक चारा, हर्बल टॉनिक और रोग प्रतिरोधक आहार दिया जा रहा है. इससे उनकी इम्युनिटी बढ़ती है और शरीर खुद वायरस से लड़ने लगता है.

सरकारी प्रयास तेज, पशुपालकों से सतर्कता की अपील

सरकार इस संकट से निपटने के लिए पूरी तरह से सक्रिय है. अब न सिर्फ टीके मुफ्त में उपलब्ध कराए जा रहे हैं, बल्कि इलाज की सुविधाएं भी मुफ्त दी जा रही हैं. पशुपालकों से कोई भी पैसा नहीं लिया जा रहा है. प्रशासन ने पशुपालकों से अपील की है कि वे लक्षण दिखने पर तुरंत नजदीकी पशु चिकित्सक से संपर्क करें और बीमार पशु को बाकी मवेशियों से अलग रखें. गांवों में जागरूकता अभियान भी चलाया जा रहा है ताकि समय रहते बीमारी को फैलने से रोका जा सके.

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