महिला ने प्राकृतिक खेती से पेश की मिसाल, कमाई तो बढ़ी ही…खेत में फिर से लौट आए केंचुए

आंध्र प्रदेश की किसान के रामादेवी ने प्राकृतिक खेती को अपनाकर मिट्टी की उर्वरता लौटाई और आमदनी में इजाफा किया. बाढ़ और सूखा झेलने के बावजूद उन्होंने रासायनिक खेती से दूरी बनाए रखी.

वेंकटेश कुमार
नोएडा | Published: 18 May, 2025 | 04:19 PM

आंध्र प्रदेश के एनटीआर जिले के चेवुतुरु गांव की महिला किसान के रामादेवी ने प्राकृतिक खेती के जरिए एक नई मिसाल कायम की है. वे रासायनिक खाद का इस्तेमाल किए बिना फसल बेचकर अच्छी कमाई कर रही हैं. उनकी मेहन से खेत की उर्वरा शक्ति भी बढ़ गई है. हालांकि, शुरुआत में रामादेवी को प्राकृतिक खेती में लगातार नुकसान झेलना पड़ा. लेकिन इसके बावजूद भी वह हार नहीं मानी, रासायनिक के बजाए प्राकृतिक विधि से खेती करती रहीं. आज वह एक सफल किसान बन चुकी हैं.

रामादेवी और उनके पति श्रीनिवास राव पहले अपनी 2.30 एकड़ जमीन पर सिर्फ कपास की मोनो-क्रॉपिंग करते थे. उन्होंने कहा कि रासायनिक खाद के ज्यादा इस्तेमाल से मिट्टी पत्थर जैसी सख्त हो गई थी. हमारे पास बोरवेल भी नहीं था, इसलिए 42 आम के पेड़ों को जिंदा रखने के लिए पड़ोसियों से पानी लेना पड़ता था. लगातार नुकसान के चलते उन्होंने खेती को लगभग 5 साल तक छोड़ दिया. फिर 2018 में आंध्र प्रदेश कम्युनिटी मैनेज्ड नेचुरल फार्मिंग (APCNF) द्वारा एक जागरूकता कार्यक्रम में हिस्सा लिया, जिसे रायथु साधिकारा संस्था (RySS) संचालित कर रही थी. एक सेल्फ-हेल्प ग्रुप की नेता के तौर पर उन्होंने सबसे पहले अपने घर के पीछे किचन गार्डन में प्राकृतिक खेती की शुरुआत की.

सब्जियों का स्वाद ज्यादा अच्छा था

रामादेवी बताती हैं कि इन सब्जियों का स्वाद ज्यादा अच्छा था. वे ज्यादा देर तक ताजा रहती थीं और हमारे परिवार की सेहत भी बेहतर हुई. तब मुझे भरोसा हुआ कि अब अपने पूरे आम के बाग में भी प्राकृतिक खेती शुरू करनी चाहिए. आंध्र प्रदेश के एनटीआर जिले की किसान के रामादेवी अब सिर्फ एक सफल किसान ही नहीं, बल्कि सैकड़ों किसानों की प्रेरणा बन चुकी हैं. 2019 में रायथु साधिकारा संस्था (RySS) द्वारा उन्हें इंटरनल कम्युनिटी रिसोर्स पर्सन (ICRP) नियुक्त किया गया. इसके बाद उन्होंने प्री-मानसून ड्राई सोइंग (PMDS) अपनाया, खेती में फसल विविधता लाई और जीवामृत, नीम आधारित कीटनाशक जैसे प्राकृतिक उपायों का इस्तेमाल शुरू किया.

जमीन पर फिर से केंचुए लौट आए

उनकी जमीन पर फिर से केंचुए लौट आए और मिट्टी में नमी बनाए रखने की क्षमता बढ़ गई. 2024 में आई बुडमेरु बाढ़ में जहां रासायनिक खेती करने वाले किसानों की फसलें तबाह हो गईं, वहीं रामादेवी की प्राकृतिक खेती वाली कपास की फसल सुरक्षित रही. हाल ही में केरल के कृषि मंत्री पी. प्रसाद के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने उनकी फॉर्म का दौरा किया. वहां उगाई गई फसलों में Brix वैल्यू 15 फीसदी पाई गई, जो पौधों की सेहत और पोषण का संकेत है और यह रासायनिक खेती वाले खेतों से कहीं बेहतर था.

साल में इतनी हो रही कमाई

अब रामादेवी की आमदनी में जबरदस्त सुधार आया है. कपास से 64,000 रुपये और इंटरक्रॉपिंग से 38,000 रुपये तक की कमाई होती है. उन्होंने अपने 30 सेंट खेत में “ATM” वेजिटेबल मॉडल अपनाया है, जिससे हर महीने 10,000 रुपये की कमाई होती है. रामादेवी कहती हैं कि प्राकृतिक खेती ने हमारी जिंदगी को स्थिरता दी है. अब न सूखे का डर है, न कीटों का. आज वो डिस्ट्रिक्ट मॉडल मंडल ट्रेनर और मायलावरम डिवीजन की यूनिट इंचार्ज हैं. वो खासकर महिला किसानों को टिकाऊ खेती की ट्रेनिंग देती हैं. रामादेवी की कहानी बताती है कि मुश्किलें भी अगर सही दिशा में मोड़ी जाएं, तो उन्हें मौके में बदला जा सकता है.

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