13 हजार करोड़ का मिशन, हर पशु को मिलेगा सुरक्षा कवच

राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम (NADCP) 13,343 करोड़ रुपये की लागत से शुरू किया गया, जिसका उद्देश्य खुरपका-मुंहपका (FMD) और ब्रूसेलोसिस जैसी बीमारियों से पशुओं की रक्षा करना है.

धीरज पांडेय
नोएडा | Published: 26 Apr, 2025 | 02:10 PM

13,343 करोड़ रुपये की लागत से शुरू हुआ राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम (NADCP) सिर्फ एक सरकारी योजना नहीं, बल्कि देशभर के करोड़ों पशुपालकों के लिए उम्मीद की एक नई किरण है. NADCP के तहत सरकार ने सितंबर 2019 से मिशन मोड में काम शुरू किया, जिसका लक्ष्य है 2025 तक खुरपका-मुंहपका (FMD) पर नियंत्रण और 2030 तक इस रोग को पूरी तरह से खत्म करना. इस योजना के तहत देशभर के गाय, भैंस, बकरी, भेड़ और सूअर का नियमित टीकाकरण, ईयर टैगिंग और डेटा प्रबंधन हो रहा है. सरकार राज्यों को 100 फीसदी फंड मुहैया करा रही है ताकि किसानों पर कोई बोझ न आए और भारत का दूध उत्पादन तेजी से बढ़े.

2019 में पीएम मोदी ने किया शुभारंभ

सितंबर 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस योजना की शुरुआत की थी. नाम भले ही तकनीकी लगे ‘राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम’ लेकिन इसका असर उस हर किसान पर है जो सुबह अपनी गाय को चारा देता है, उसका दूध निकालता है और बाजार तक पहुंचाता है. क्योंकि जब जानवर बीमार नहीं होंगे, तभी किसान की आमदनी टिकाऊ होगी.

2025 तक FMD पर नियंत्रण

इस योजना का स्पष्ट लक्ष्य है 2025 तक एफएमडी पर नियंत्रण और 2030 तक इसका पूरी तरह से खत्म करना. इसके तहत देश के हर गोवंश, भैंस, भेड़, बकरी और सुअर को हर छह महीने में एफएमडी का टीका दिया जा रहा है. साथ ही, 4 से 8 महीने की मादा बछियों को ब्रूसेलोसिस से बचाने के लिए भी टीकाकरण किया जा रहा है.

हर पशु की ईयर टैगिंग से लेकर डाटा एंट्री तक

इस योजना में सिर्फ टीकाकरण ही नहीं, बल्कि उससे पहले डि-वॉर्मिंग, ईयर-टैगिंग, डेटा एंट्री और प्रचार-प्रसार तक की पूरी व्यवस्था की गई है ताकि एक भी जानवर छूटे नहीं. सरकार की तरफ से राज्यों को 100 फीसदी फंड दिया जा रहा है. ताकि न किसानों पर कोई बोझ, न राज्यों पर.

बदलती जिंदगी की कहानी हर गांव में

अब वो दिन नहीं रहे, जब बीमारी के चलते पशुओं का दूध बेकार हो जाता था. अब वही पशु घर का खर्च चला रहा रहे हैं. दूध उत्पादन बढ़ा, किसान की आमदनी बढ़ी और भारत दुनिया के दुग्ध उत्पादक देशों में और ऊपर चढ़ने लगा है. यह योजना सिर्फ पशुओं की सेहत की नहीं, बल्कि ग्रामीण भारत की आत्मनिर्भरता की कहानी बन चुकी है.

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