बैंगन, जिसे कई जगह “भिंटा” या “एगप्लांट” भी कहा जाता है, भारत समेत दुनिया के कई हिस्सों में बड़े पैमाने पर उगाई जाने वाली सब्जी है. इसका इस्तेमाल लगभग हर घर के रसोईघर में होता है. लेकिन इसकी खेती करने वाले किसानों के सामने एक आम और परेशान करने वाली समस्या है फलों का सड़ना. यह समस्या न केवल फसल को नुकसान पहुंचाती है, बल्कि किसानों की मेहनत और आमदनी पर भी असर डालती है.
बारिश और नमी में बढ़ता खतरा
बैंगन के फलों में सड़न के सबसे सामान्य कारणों में फंगल संक्रमण प्रमुख है. विशेष रूप से बारिश के मौसम में जब वातावरण गर्म और नम होता है, तो फाइटोफ्थोरा, फ्यूजेरियम और रिजोपस जैसे फफूंद तेजी से फैलते हैं. ये फलों को संक्रमित कर उन्हें धीरे-धीरे सड़ा देते हैं. इससे फल काले पड़ने लगते हैं, उनका स्वाद बिगड़ जाता है और बाजार में उनकी कीमत भी गिर जाती है.
इससे बचने के लिए किसानों को चाहिए कि वे स्वच्छता पर विशेष ध्यान दें, रोग प्रतिरोधक किस्मों का चयन करें और फसल चक्र (crop rotation) अपनाएं ताकि फंगल संक्रमण को फैलने से रोका जा सके.
बैक्टीरियल संक्रमण भी है एक बड़ा कारण
सिर्फ फफूंद ही नहीं, बैक्टीरिया से होने वाले रोग भी बैंगन के फलों को सड़ा सकते हैं. बैक्टीरियल विल्ट (wilt) और बैक्टीरियल स्पॉट जैसे रोग मिट्टी या पानी के माध्यम से फैलते हैं. ये पौधों की नसों को कमजोर कर देते हैं, जिससे फल जल्दी खराब हो जाते हैं.
इसका उपाय है कि खेतों में सही जल निकासी की व्यवस्था की जाए और सिंचाई के पानी का अच्छा प्रबंधन किया जाए, ताकि बैक्टीरिया युक्त नमी जमा न हो पाए.
कीट भी बढ़ा सकते हैं सड़न का खतरा
कई बार फलों की सड़न का सीधा कारण कीटों का हमला भी होता है. फ्रूट फ्लाइज (फल मक्खी) और बीटल्स जैसे कीट फलों को काटते हैं, जिससे उनमें घाव बन जाते हैं और वहां से संक्रमण फैलने लगता है. ये घाव धीरे-धीरे सड़न में बदल जाते हैं.
इससे बचाव के लिए किसानों को चाहिए कि वे नियमित निरीक्षण करें, जैविक या रासायनिक कीटनाशकों का उचित इस्तेमाल करें और जरूरत हो तो कीट जाल भी लगाएं.
सांस्कृतिक उपायों से भी मिल सकता है समाधान
कई बार फसल में की गई कुछ सामान्य लापरवाहियां भी सड़न की वजह बनती हैं. जैसे कि पौधों को बहुत पास-पास लगाना, जिससे नमी बनी रहती है और बीमारियां फैलती हैं. साथ ही, अत्यधिक पानी देना या गलत समय पर खाद डालना भी फसल को कमजोर कर सकता है.
इसलिए बैंगन की खेती में ध्यान दें कि पौधों के बीच पर्याप्त दूरी हो, पानी संतुलित मात्रा में मिले और खाद व उर्वरक सही समय पर दिए जाएं. इससे पौधे स्वस्थ रहेंगे और सड़न की संभावना कम होगी.