अरेबिका की दो नई उन्नत किस्में होंगी जारी, कीट-रोग से मिलेगी कॉफी किसानों को बड़ी राहत
भारत दुनिया का सातवां सबसे बड़ा कॉफी उत्पादक और पांचवां सबसे बड़ा निर्यातक देश है. देश में कॉफी की खेती करीब 4.43 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में होती है, जिसमें कर्नाटक का योगदान सबसे अधिक है, इसके बाद केरल और तमिलनाडु का स्थान आता है.
देश के कॉफी किसानों के लिए अच्छी खबर है. जलवायु बदलाव, अनियमित बारिश और कीट–रोगों की बढ़ती मार के बीच अब अरेबिका कॉफी की दो नई उन्नत किस्में खेती के लिए उपलब्ध होने जा रही हैं. कर्नाटक के चिकमगलूर जिले के बालेहोन्नूर स्थित Central Coffee Research Institute (सीसीआरआई) अपने शताब्दी वर्ष के मौके पर इन किस्मों को व्यावसायिक खेती के लिए जारी करेगा. इन किस्मों की खासियत यह है कि ये अधिक पैदावार देने के साथ-साथ व्हाइट स्टेम बॉरर और लीफ रस्ट जैसी गंभीर बीमारियों के प्रति सहनशील हैं.
जलवायु चुनौतियों के बीच आया अहम समाधान
पिछले कुछ वर्षों में देश के अरेबिका उत्पादक इलाकों में कीट और रोगों की समस्या तेजी से बढ़ी है. खासतौर पर कॉफी व्हाइट स्टेम बॉरर और लीफ रस्ट ने किसानों की उपज और आमदनी पर गहरा असर डाला है. अनियमित वर्षा और तापमान में बदलाव ने इन समस्याओं को और गंभीर बना दिया है. ऐसे समय में सीसीआरआई की ओर से विकसित नई किस्में किसानों के लिए बड़ी राहत साबित हो सकती हैं.
सिलेक्शन-14: व्हाइट स्टेम बॉरर पर असरदार
पहली नई किस्म सिलेक्शन-14 है, जिसे वैज्ञानिक भाषा में एस-4595 कहा जाता है. इसे सिलेक्शन-11 और टिमोर हाइब्रिड को क्रॉस करके विकसित किया गया है. इस किस्म की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें कॉफी व्हाइट स्टेम बॉरर का प्रकोप बेहद कम पाया गया है. वैज्ञानिक अध्ययनों में यह सामने आया कि इस पौधे के अंदर कीट अपना जीवनचक्र पूरा नहीं कर पाता और लार्वा पौधे की सुरंगों में ही नष्ट हो जाता है. कर्नाटक और तमिलनाडु के 18 अलग-अलग स्थानों पर लंबे समय तक निगरानी के बाद इस सहनशीलता की पुष्टि हुई है.
उपज के लिहाज से यह किस्म प्रति हेक्टेयर लगभग 1,200 से 1,400 किलो तक उत्पादन देती है. स्वाद और गुणवत्ता के मामले में भी इसका कप स्कोर 72 से 77 के बीच दर्ज किया गया है, जो इसे व्यावसायिक रूप से आकर्षक बनाता है.
सिलेक्शन-15: ज्यादा उपज और बेहतर गुणवत्ता
दूसरी किस्म सिलेक्शन-15 है, जिसे एस-5086 के नाम से जाना जाता है. यह चंद्रगिरी किस्म और सिलेक्शन-10 के संकरण से बनी एफ-1 हाइब्रिड है. इसमें लीफ रस्ट के प्रति सहनशील जीन मौजूद हैं, जिससे इसकी टिकाऊ क्षमता बढ़ जाती है. यह किस्म अर्ध-बौनी होने के कारण प्रबंधन में आसान मानी जा रही है.
सिलेक्शन-15 की उपज क्षमता और भी बेहतर है. यह प्रति हेक्टेयर 1,600 से 1,800 किलो तक उत्पादन देने में सक्षम है. इसके साथ ही इसका कप क्वालिटी स्कोर 79 से 80 के बीच बताया गया है, जो निर्यात और प्रीमियम बाजार के लिए इसे बेहद उपयुक्त बनाता है.
भारत का कॉफी की राह
भारत दुनिया का सातवां सबसे बड़ा कॉफी उत्पादक और पांचवां सबसे बड़ा निर्यातक देश है. देश में कॉफी की खेती करीब 4.43 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में होती है, जिसमें कर्नाटक का योगदान सबसे अधिक है, इसके बाद केरल और तमिलनाडु का स्थान आता है. पारंपरिक क्षेत्रों के अलावा आंध्र प्रदेश, ओडिशा और पूर्वोत्तर राज्यों में भी कॉफी की खेती धीरे-धीरे बढ़ रही है.
Coffee Board of India के अनुसार 2025-26 सीजन में देश का कुल कॉफी उत्पादन बढ़कर 4.03 लाख टन तक पहुंचने का अनुमान है, जिसमें अरेबिका का हिस्सा 1.18 लाख टन हो सकता है. ऐसे में नई उन्नत किस्में किसानों की उत्पादकता बढ़ाने और भारत की कॉफी को वैश्विक बाजार में और मजबूत बनाने में अहम भूमिका निभा सकती हैं.
किसानों की उम्मीदें बढ़ीं
CCRI की ये नई किस्में सिर्फ वैज्ञानिक उपलब्धि नहीं हैं, बल्कि किसानों के लिए भविष्य की उम्मीद भी हैं. कीट-रोगों से जूझ रहे अरेबिका उत्पादकों को अब ऐसी किस्में मिलेंगी जो कम जोखिम में बेहतर पैदावार और अच्छी कीमत दिला सकती हैं. इससे न केवल किसानों की आय में सुधार होगा, बल्कि भारतीय अरेबिका कॉफी की पहचान भी और मजबूत होगी.