एक बार लगाएं, 50 साल तक कमाएं! जानिए कॉफी की खेती करने का आसान और फायदेमंद तरीका

देश में कर्नाटक सबसे बड़ा कॉफी उत्पादक राज्य है, जो भारत के कुल कॉफी उत्पादन का लगभग 53 फीसदी हिस्सा अकेले देता है. इसके बाद केरल और तमिलनाडु का स्थान आता है, जहां भी कॉफी की अच्छी पैदावार होती है.

नई दिल्ली | Published: 18 Jul, 2025 | 01:15 PM

दुनिया में सबसे ज्यादा पिया जाने वाला पेय पदार्थ अगर पानी है, तो उसके बाद नंबर आता है कॉफी का. हर दिन दुनियाभर में करीब 2.2 अरब कप कॉफी पी जाती है. अमेरिका में तो हाल ये है कि एक व्यक्ति साल में औसतन 12 किलो कॉफी पी जाता है. भारत में भी कॉफी की मांग तेजी से बढ़ी है. खास बात ये है कि कॉफी की खेती न केवल आसान है बल्कि यह लंबे समय तक चलने वाला मुनाफे वाला व्यवसाय भी है. आइए जानते हैं कॉफी की खेती कैसे करें ताकि कम लागत में लंबी अवधि तक अच्छी कमाई की जा सके.

भारत में कहां होती है कॉफी की खेती?

भारत में कॉफी की खेती मुख्य रूप से दक्षिण भारत के पहाड़ी इलाकों में की जाती है, जहां का मौसम और मिट्टी इस फसल के लिए अनुकूल माने जाते हैं. देश में कर्नाटक सबसे बड़ा कॉफी उत्पादक राज्य है, जो भारत के कुल कॉफी उत्पादन का लगभग 53 फीसदी हिस्सा अकेले देता है. इसके बाद केरल और तमिलनाडु का स्थान आता है, जहां भी कॉफी की अच्छी पैदावार होती है. कॉफी की खेती आमतौर पर समुद्र तल से 800 से 1200 मीटर की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में की जाती है, जहां हल्की ठंड और पर्याप्त वर्षा होती है, जो इसकी गुणवत्ता और उत्पादन दोनों को बेहतर बनाते हैं.

कैसी जलवायु और मिट्टी चाहिए?

कॉफी की खेती के लिए गर्म और नम जलवायु को सबसे उपयुक्त माना जाता है, जहां तापमान बहुत ज्यादा न हो और वातावरण में नमी बनी रहे. इस फसल को सालाना करीब 100 से 200 सेंटीमीटर बारिश की जरूरत होती है, जो इसकी बढ़वार और फलन के लिए आवश्यक है. खेती के लिए दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है, खासकर तब जब उसमें जल निकासी की व्यवस्था अच्छी हो. तेज धूप से कॉफी के पौधे प्रभावित हो सकते हैं, इसलिए इन्हें छायादार पेड़ों की ओट में उगाना जरूरी होता है, ताकि पौधों को प्राकृतिक सुरक्षा मिल सके और मिट्टी की नमी भी बनी रहे.

रोपाई और खाद प्रबंधन

कॉफी की खेती के लिए जून-जुलाई का महीना पौधों की रोपाई के लिहाज से सबसे उपयुक्त माना जाता है, क्योंकि इस समय मानसून की शुरुआत होती है और नमी वाली जलवायु पौधों की जड़ों को जमने में मदद करती है. रोपाई के तुरंत बाद पहली सिंचाई कर देनी चाहिए, ताकि पौधों को शुरुआती नमी मिल सके, हालांकि इसके बाद आमतौर पर मानसूनी बारिश ही सिंचाई की जरूरत पूरी कर देती है.

मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने और फसल की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए जैविक खाद और वर्मी कम्पोस्ट का इस्तेमाल करना चाहिए, जिससे न सिर्फ उत्पादन बेहतर होता है बल्कि जमीन की सेहत भी लंबे समय तक बनी रहती है.

किस्में और उत्पादन

भारत में मुख्य रूप से दो किस्मों की कॉफी की खेती की जाती है अरेबिका (Arabica) और रोबस्टा (Robusta). अरेबिका कॉफी स्वाद में हल्की, सुगंधित और उच्च गुणवत्ता वाली होती है, लेकिन इसकी खेती में ज्यादा देखभाल और अनुकूल जलवायु की जरूरत होती है.

वहीं, रोबस्टा कॉफी स्वाद में थोड़ी कड़वी जरूर होती है, लेकिन इसका उत्पादन अधिक होता है और यह कठिन परिस्थितियों में भी पनप सकती है. आमतौर पर एक सामान्य किसान अगर 2 एकड़ जमीन पर कॉफी की खेती करता है, तो वह लगभग 5 से 6 क्विंटल कॉफी बीन्स की पैदावार प्राप्त कर सकता है, जो एक अच्छा अतिरिक्त आमदनी का जरिया बन सकता है.

फसल की उम्र और कमाई

कॉफी की खेती में धैर्य जरूरी होता है, क्योंकि पौधा लगाने के बाद पहली फसल मिलने में लगभग 5 साल का समय लगता है. हालांकि, पूरी क्षमता से उत्पादन पाने के लिए किसान को 7 से 10 साल तक इंतजार करना पड़ता है. लेकिन अच्छी बात यह है कि एक बार जब पौधा परिपक्व हो जाता है, तो यह करीब 50 साल तक लगातार उपज देता है. इसका मतलब है कि शुरूआती निवेश के बाद किसान को हर साल बिना दोबारा रोपाई किए अच्छी कमाई होती रहती है, जिससे यह एक दीर्घकालिक और टिकाऊ फसल बन जाती है.

कॉफी का बाजार और कमाई

भारत में उगाई जाने वाली कॉफी का बड़ा हिस्सा अंतरराष्ट्रीय बाजार में निर्यात किया जाता है, जिससे किसानों को अच्छा दाम मिलना तय होता है. खासतौर पर अरेबिका बीन्स की बात करें तो इसका बाजार भाव 500 से 700 रुपये प्रति किलो तक पहुंच सकता है. वहीं अगर किसान केवल कच्चा माल बेचने की बजाय खुद प्रोसेस करके कॉफी पाउडर बनाएं या खुद का ब्रांड तैयार करें, तो मुनाफा कई गुना तक बढ़ाया जा सकता है. इस तरह कॉफी की खेती किसानों के लिए एक लाभदायक एग्री-बिजनेस मॉडल बन सकती है.