भारत कब बनेगा खाद्य तेल में आत्मनिर्भर? जानिए अब तक का पूरा सफर

भारत में खाने के तेल की खपत लगातार बढ़ रही है. हर साल इसकी मांग करीब 3 से 4 प्रतिशत की दर से बढ़ती जा रही है. साल 2023-24 में जहां कुल खपत लगभग 26 मिलियन टन थी, वहीं अनुमान है कि 2029-30 तक यह आंकड़ा 30 मिलियन टन के पास पहुंच जाएगा.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 14 Jun, 2025 | 08:09 AM

हम भारतीय खाने में जितना स्वाद देखते हैं, उतना ही तेल भी इस्तेमाल करते हैं. चाहे तड़का लगाना हो या पकौड़े तलने हों, तेल के बिना किचन अधूरा लगता है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि हम जो सरसों, सोयाबीन या सूरजमुखी का तेल इस्तेमाल करते हैं, उसमें से बड़ी मात्रा विदेशों से आती है? और क्या एक दिन ऐसा भी आएगा जब भारत खुद का तेल खुद बनाएगा? आइए इस सवाल की तह में चलते हैं.

क्या कहती है सरकार की योजना?

सरकार ने अक्टूबर 2024 में राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन (Oil Seeds) की शुरुआत की थी. इसका मकसद 2030-31 तक भारत में तिलहन उत्पादन को 69.7 मिलियन टन तक बढ़ाना है. इसके अलावा नेशनल मिशन ऑन एडिबल ऑयल ऑयल पाम (NMEO-OP) के जरिए घरेलू उत्पादन को 25.45 मिलियन टन तक पहुंचाना है, जिससे देश की मांग का लगभग 72 प्रतिशतभाग खुद से पूरा किया जा सके. लेकिन ये आंकड़े सिर्फ कागजों पर नहीं, जमीन पर भी दिखने चाहिए, तभी असली आत्मनिर्भरता मानी जाएगी.

अब तक कितना हुआ काम?

बिजनेस लाइन की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली यूनिवर्सिटी के कृषि अर्थशास्त्री डॉ. पुरुषोत्तम आर्य बताते हैं कि 2021 में शुरू हुआ NMEO-OP 2025-26 तक 1.12 मिलियन टन क्रूड पाम ऑयल का लक्ष्य लेकर चला था. लेकिन 2024-25 तक सिर्फ 1.89 लाख हेक्टेयर क्षेत्र ही जोड़ा जा सका, जबकि लक्ष्य 6.64 लाख हेक्टेयर था.

इसके अलावा सरसों जैसी पारंपरिक फसलों की बुवाई और उत्पादन में गिरावट आई है. और जब किसान खरीफ तिलहन की तैयारी कर रहे थे, तब सरकार ने क्रूड पाम ऑयल पर आयात शुल्क घटा दिया जिससे उल्टा असर हुआ. अब बाजार में रिफाइंड तेल ज्यादा आ रहा है और घरेलू उत्पादन को झटका लगा है.

मांग बढ़ रही है, उत्पादन पिछड़ रहा है

भारत में खाने के तेल की खपत लगातार बढ़ रही है. हर साल इसकी मांग करीब 3 से 4 प्रतिशत की दर से बढ़ती जा रही है. साल 2023-24 में जहां कुल खपत लगभग 26 मिलियन टन थी, वहीं अनुमान है कि 2029-30 तक यह आंकड़ा 30 मिलियन टन के पास पहुंच जाएगा.

लेकिन मांग जितनी तेजी से बढ़ रही है, घरेलू उत्पादन उतनी रफ्तार नहीं पकड़ पा रहा. नतीजा यह है कि हमें अपनी जरूरत का बड़ा हिस्सा अब भी विदेशों से मंगाना पड़ता है. 2023-24 में भारत ने 15.96 मिलियन टन खाद्य तेल आयात किया, जो कुल वेजिटेबल ऑयल खपत का लगभग 98 प्रतिशत है. इसका मतलब साफ है भारत इस मामले में अब भी भारी आयात-निर्भर है.

एक्सपर्ट क्या कहते हैं?

एक बड़ी खाद्य तेल कंपनी के निदेशक मानते हैं कि आत्मनिर्भरता का सपना तभी पूरा होगा जब सरकार मिशन को किसानों और उद्योगों के साथ मिलाकर चलाए. जैसे 1986 में हुआ था जब सैम पित्रोदा जैसे टेक्नोक्रेट ने NDDB के साथ मिलकर टेक्नोलॉजी मिशन ऑन ऑयलसीड्स (TMO) चलाया. उस मिशन की बदौलत 1994-95 तक उत्पादन, क्षेत्रफल और उत्पादकता तीनों में जबरदस्त उछाल आया था.

आज के हालात क्या हैं?

साल 2024-25 में भारत ने तिलहन उत्पादन में अच्छी प्रगति की है. इस वर्ष कुल उत्पादन 42.61 मिलियन टन तक पहुंच गया है, जो 1986 के मुकाबले लगभग 86 प्रतिशत की बढ़त दर्शाता है. इसी तरह, प्रति हेक्टेयर उत्पादकता भी बढ़कर 1,408 किलोग्राम हो गई है. देश में तिलहन की खेती का कुल क्षेत्रफल अब 30.27 मिलियन हेक्टेयर तक पहुंच चुका है.

हालांकि ये आंकड़े उत्साहजनक हैं, लेकिन देश की तेजी से बढ़ती खाद्य तेल की मांग के मुकाबले अभी भी ये स्तर काफी कम हैं. मांग और आपूर्ति के बीच की यह खाई अभी भी भारत को खाद्य तेल के मामले में आत्मनिर्भर बनने से रोक रही है.

कुछ फसलें आगे, कुछ पीछे

अगर तिलहनी फसलों के योगदान की बात करें तो पिछले तीन दशकों में इसमें बड़ा बदलाव देखने को मिला है. 1994-95 में मूंगफली का योगदान 38 प्रतिशत था, जो अब घटकर 28 प्रतिशत रह गया है. वहीं सूरजमुखी का योगदान 6 प्रतिशत से गिरकर मात्र 0.5 प्रतिशत रह गया है. तिल का हिस्सा भी घटा है. हालांकि सरसों का योगदान मामूली रूप से बढ़ा है- 27 प्रतिशत से बढ़कर 29.6 प्रतिशत हो गया है.

सबसे तेज बढ़ोतरी सोयाबीन के योगदान में देखी गई है, जो 1994-95 में 18 प्रतिश तथा और अब 2024-25 में बढ़कर 36 प्रतिशत हो गया है. लेकिन यहां एक बड़ा सवाल उठता है क्या ये वृद्धि तेल उत्पादन के लिहाज से भी फायदेमंद है?

दरअसल, सोयाबीन में केवल 18-20 प्रतिशत तेल निकलता है, जबकि मूंगफली में 48-50 प्रतिशत तक तेल मिलता है. यानी परंपरागत फसलें तेल के लिहाज से अधिक उपयोगी हैं, लेकिन मौजूदा नीतियों में इन्हें अपेक्षित प्राथमिकता नहीं मिल रही. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर भारत को आत्मनिर्भर बनना है, तो सिर्फ उत्पादन नहीं, बल्कि तेल प्राप्ति क्षमता वाली फसलों पर ध्यान देना जरूरी है.

रास्ता क्या है?

डॉ. पुरुषोत्तम का मानना है कि अगर भारत को खाद्य तेल के मामले में आत्मनिर्भर बनाना है तो सिर्फ मिशन और आंकड़ों से बात नहीं बनेगी, बल्कि जमीनी स्तर पर ठोस बदलाव लाने होंगे. वे कहते हैं कि कुछ बेहद जरूरी पहलुओं पर तुरंत ध्यान देना होगा:

1. फसल उत्पादकता बढ़ाने पर फोकस: आज भी देश के अलग-अलग हिस्सों में तिलहन फसलों की उत्पादकता में काफी अंतर है. इसे कम करने के लिए उन्नत किस्मों के बीज, वैज्ञानिक खेती और तकनीकी सहायता जरूरी है.

2. किसानों को बेहतर बीज, सिंचाई और प्रशिक्षण देना: किसानों को केवल योजना की जानकारी देना काफी नहीं है. उन्हें अच्छे बीज, सिंचाई के संसाधन और आधुनिक खेती के प्रशिक्षण के साथ सक्षम बनाना होगा.

3. नीति निर्धारण में किसानों की भागीदारी: नीतियां सिर्फ दफ्तरों में नहीं बननी चाहिए. इसमें किसानों, प्रोसेसर्स और उद्योग से जुड़े लोगों की भागीदारी जरूरी है ताकि फैसले व्यावहारिक और लाभकारी हों.

4. पारंपरिक तेल फसलों को बढ़ावा देना: मूंगफली, तिल, सरसों जैसी पारंपरिक फसलें ज्यादा तेल देती हैं. इन पर फोकस कर के हम कम जमीन में ज्यादा तेल प्राप्त कर सकते हैं. फिलहाल नीति में इनकी प्राथमिकता कम दिखती है, जो बदलनी चाहिए.

5. आयात नीति में संतुलन: जब किसान तिलहन की बुवाई की तैयारी कर रहे हों, उसी समय आयात शुल्क घटाने जैसे फैसले घरेलू उत्पादन को नुकसान पहुंचा सकते हैं. इसलिए आयात और घरेलू उत्पादन के बीच संतुलन जरूरी है.

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