यूं तो कतरनी धान की खेती पूरे बिहार में की जाती है, लेकिन भागलपुर में उगाए जाने वाले कतरनी चावल की बात ही अलग है. इसका स्वाद इतना उम्दा है कि इसे जीआई टैग भी मिल चुका है. बात अगर खुशबू की करें, तो इसकी टक्कर बासमती भी नहीं दे सकता. यह जब चूल्हे पर पकता है, तो इसकी खुशबू केवल किचन तक ही नहीं बल्कि, पूरे गांव में फैलती है. यही वजह है कि बिहार में अधिकांश शादी समारोह और पार्टियों में भागलपुरी कतरनी चावल के ही भात और पोलाव परोसे जाते हैं.
बात अगर इसकी खासियत की करें, तो इसका कोई जोड़ नहीं है. यह अपनी खास खुशबू, मुलायमपन और बेहतरीन स्वाद के लिए जाना जाता है. लेकिन यह सबसे ज्यादा खीर बनाने के लिए मशहूर है. हालांकि, कतरनी चावल का पोहा भी बहुत मुलायम होता है. अगर आप चाहें, तो इसे बिना भिगोए भी खा सकते हैं. खास बात यह है कि कतरनी चावल स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक है. इसे पचाने में आंतों को ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती है. ऐसे इसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और फाइबर उचित मात्रा में पाए जाते हैं. इसके अलावा भागलपुरी कतरनी चावल विटामिन और खनिज का भी एक अच्छा स्रोत है.
भागलपुर के इन इलाकों में होती है खेती
पहले कतरनी चावल की खेती केवल 500 एकड़ में होती थी. लेकिन जीआई टैक मिलने से इसके रेट में इजाफा हुआ, जिससे किसानों को मुनाफा होने लगा. अब जिले में करीब 3000 एकड़ में किसान इसे उगा रहे हैं. भागलपुर जिले के जगदीशपुर प्रखंड में इसकी सबसे अधिक खेती होती है. इसके अलावा, अमरपुर, रजौन, कजरेली, सुल्तानगंज, कहलगांव, भदरिया, सन्हौला और चांदन नदी के किनारे के इलाके में भी किसान इसे उगा रहे हैं. यही वजह है भागलपुर जिले को कतरनी धान का कटोरा कहा जाता है. क्योंकि भागलपुर जिले में किसान जैविक विधि से कतरनी धान की खेती करते हैं. लेकिन अब बांका जिले के रजौन, अमरपुर, बौंसी और बाराहाट में भी कतरनी की खेती की शुरुआत हो गई है.
कितनी है भागलपुरी कतरनी चावल की पैदावार
कृषि एक्सपर्ट का कहना है कि भागलपुर की काली दोमट मिट्टी कतरनी चावल को खास बनाती है. यहां की भौगोलिक परिस्थियों की वजह से कतरनी में अलग खुशबू पैदा होती है और स्वाद भी उम्दा होता है. आज इसके चलते भागलपुर की देश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में अलग पहचान मिल गई है. ऐसे कतरनी चावल की पैदावार 24.52 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हैं. इसके पोहे की सप्लाई विदेशों में तक में होती है. आप कतरनी धान के पोहे को जैसे ही मुंह मे लेंगे यह तुरंत घुलने लगता है. कतरनी के पोहे का स्वाद प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति भी ले चुके हैं. वहीं, मार्केट में इसके पोहे की कीमत 140 रुपये किलो है.
फसल के लिए 1500 मिमी बारिश की जरूरत
कतरनी चावल गर्म और नम मौसम में अच्छी तरह उगता है. इसके लिए 25 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान और करीब 1000 से 1500 मिमी बारिश की जरूरत होती है. यह चावल सबसे अच्छा दोमट या चिकनी मिट्टी में उगता है, जो नमी को लंबे समय तक संभालकर रखती है.
160 दिनों में पककर तैयार हो जाती है फसल
कतरनी चावल बुवाई करने के बाद 155 से 160 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. लेकिन अब बौनी किस्मों के विकास से इसकी खेती की अवधि को 140 दिनों तक लाने की कोशिश की जा रही है. नए शोध के बाद इसके पौधों की लंबाई 20 से 25 सेंटीमीटर कम करके 125 से 130 सेंटीमीटर करने का प्रयास है.
क्या होता है जीआई टैग
भागलपुरी कतरनी चावल को 2018 में भौगोलिक संकेत (जीआई) का दर्जा दिया गया है. ऐसे जीआई टैग का पूरा नाम Geographical Indication यानी भौगोलिक संकेत है. यह एक तरह का प्रमाणपत्र होता है जो यह बताता है कि कोई उत्पाद किसी खास क्षेत्र या भौगोलिक स्थान से जुड़ा हुआ है और उसकी विशिष्ट गुणवत्ता, पहचान या प्रतिष्ठा उस क्षेत्र की वजह से है.
कतरनी चावल के बारे में कुछ फैक्ट्स
- साल 2018 में मिला भागलपुरी कतरनी चावल को जीआई टैग
- भागलपुर जिले में करीब 3000 एकड़ में होती है इसकी खेती
- इसका पोहा 140 रुपये किलो बिकता है मार्केट में
- इसकी फसल 155 से 160 दिनों में पककर तैयार हो जाती है
- चावल के दाने छोटे होते हैं लेकिन इसमें खुशबू बहुत ज्यादा होती है
- कतरनी चावल के पौधे की लंबाई 160 से 165 सेंटीमीटर होती है
- विटामिन और खनिज का भी एक अच्छा स्रोत है कतरनी चावल
- फसल को करीब 1000 से 1500 मिमी बारिश की जरूरत होती है