Mustard Pests : देश के लाखों किसानों के लिए सरसों की फसल सिर्फ एक पैदावार नहीं, बल्कि पूरे साल की मेहनत और उम्मीदों का सहारा है. लेकिन जैसे–जैसे मौसम बदलता है, सरसों पर ऐसे कीट और रोग टूट पड़ते हैं जो पूरी फसल को मिनटों में तबाह कर सकते हैं. कई बार किसान समझ ही नहीं पाते कि फसल को क्या नुकसान पहुंचा रहा है और किस समय कौन–सा उपाय जरूरी है. इसी समस्या को ध्यान में रखते हुए, हम आपके लिए लेकर आए हैं सरसों के प्रमुख कीटों और रोगों की आसान भाषा में रिपोर्ट, ताकि आप समय रहते अपनी फसल को बचा सकें और अच्छी उपज पा सकें.
फूल और फलियों को सबसे ज्यादा खतरा
सरसों में सबसे आम मिलने वाला कीट है चैंपा, जिसे किसान मोयला नाम से भी पहचानते हैं. यह बहुत छोटा, मुलायम और हरे रंग का रस चूसने वाला कीट होता है. यह फसल के फूलों के गुच्छों, कच्ची फलियों और पत्तियों की निचली सतह पर समूह बनाकर हमला करता है. खासतौर पर देर से बोई गई फसल में इसका प्रकोप सबसे ज्यादा देखने को मिलता है. जब चैंपा की संख्या बढ़ जाती है, तो फूल झड़ने लगते हैं और फलियां ठीक से नहीं बन पातीं. इससे पैदावार सीधी आधी हो सकती है.
रोकथाम:- अगर 10 सेंटीमीटर लंबी शाखा पर 20–25 कीट दिखाई दें, तो 25 किलो मैलाथियॉन 5 फीसदी चूर्ण प्रति हेक्टेयर भुरकाव करें. इसके विकल्प में किसान मैलाथियॉन 50 ईसी (1.25 लीटर) या डायमिथोएट 30 ईसी (875 मि.ली.) का घोल 400–500 लीटर पानी में बनाकर छिड़काव कर सकते हैं. जैविक खेती वालों के लिए नीम तेल आधारित कीटनाशक (500 मि.ली./हेक्टेयर) काफी असरदार है.
पेन्टेड बग: शुरुआत में ही पूरी फसल का दुश्मन
सरसों के अंकुरण के तुरंत बाद यह कीट हमले के लिए तैयार रहता है. 7–10 दिन की नन्ही फसल पर पेन्टेड बग का हमला सबसे ज्यादा घातक होता है. यह पत्तियों का रस चूसकर पौधे को इतना कमजोर कर देता है कि पूरा पौधा सूखने लगता है. शिशु और प्रौढ़ दोनों ही कीट तेजी से नुकसान पहुंचाते हैं.
रोकथाम:- यदि शुरुआती अवस्था में इस कीट का प्रकोप दिखे, तो डायमिथोएट 30 ईसी की 1 लीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें. समय पर किया गया यह एक ही छिड़काव पूरी फसल को खतरे से बाहर निकाल सकता है.
आरा मक्खी कीट: पत्तियों में छेद, पौधे में रुकावट
यह कीट सरसों की फसल को 25–30 दिन की अवस्था में बड़ा नुकसान पहुंचाता है. आरा मक्खी की सुंडियां पत्तियों को इस तरह खाती हैं कि केवल पत्तियों की नसों का जाल बचा रहता है. इससे पौधे की खाने की क्षमता घट जाती है और विकास रुक जाता है. कई बार किसान इस नुकसान को किसी रोग के रूप में समझ लेते हैं.
रोकथाम:- बुवाई के सातवें दिन ही मैलाथियॉन 5 फीसदी या कार्बोरिल 5 प्रतिशत चूर्ण (20–25 किलो प्रति हेक्टेयर) सुबह या शाम भुरकाव करें. यदि कीट दोबारा दिखाई दें, तो 15 दिन बाद दूसरा भुरकाव करें.
तना गलन रोग: फसल को खड़ा रहते ही मार देता है
यह बीमारी खासतौर पर तराई और पानी भराव वाले क्षेत्रों में अधिक होती है. इस रोग से सरसों की उपज लगभग 30–35 फीसदी तक कम हो जाती है. तने पर कवक जाल बनने लगता है और पौधे धीरे-धीरे मुरझाकर सूख जाते हैं. तने पर भूरी, सफेद या काली गोल आकृति के धब्बे भी दिखते हैं. यदि बीमारी बढ़ जाए, तो पूरा खेत कुछ ही दिनों में खराब हो सकता है.
रोकथाम:- बुवाई के लगभग 50 दिन बाद कार्बेन्डाजिम 0.1 फीसदी (1 ग्राम प्रति लीटर पानी) का छिड़काव बहुत प्रभावी है. आवश्यक होने पर 20 दिन बाद दूसरा छिड़काव दोहराएं.
झुलसा रोग: पत्तियों पर काले धब्बे, उपज सीधी कम
यह रोग पौधों की निचली पत्तियों से शुरू होकर ऊपर की ओर फैलता है. पत्तियों पर छोटे गोल धब्बे बनते हैं, जिन पर छल्ले भी साफ दिखते हैं. झुलसा रोग तेजी से फैलता है और तेजी से पत्तियां सुखा देता है. बिना पत्तियों के पौधा दाना भरने में असमर्थ हो जाता है, जिससे उपज घट जाती है.
सफेद रोली और तुलासिता रोग: फूलों को बिगाड़ देने वाले रोग
सरसों की फसल में सफेद रोली रोग के कारण पत्तियों के नीचे सफेद फफोले जैसे धब्बे दिखते हैं. इससे फूल और फलियां प्रभावित होती हैं और उनका आकार बदलने लगता है. तुलासिता रोग में पत्तियों की निचली सतह पर बैंगनी-भूरे धब्बे बनते हैं, जो समय के साथ बढ़ जाते हैं. रोग बढ़ने पर फूल की कलियां नष्ट हो जाती हैं और खेत में दाना बनना बंद हो जाता है.
रोकथाम:- जैसे ही रोग के लक्षण दिखें, कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50 WP या मैन्कोजेब 75 WP का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें. 20 दिन बाद दूसरा छिड़काव करें. सफेद रोली के लिए तीसरा छिड़काव कैराथेन 1 मि.ली./लीटर पानी की दर से करें.