भारत में मूंगफली (Groundnut) एक बेहद अहम तिलहन फसल है, जिसे खाने के तेल और प्रोटीन के लिए बड़े पैमाने पर उगाया जाता है. इसकी खेती में अगर खाद प्रबंधन (Fertilizer Management) सही ढंग से किया जाए, तो उपज भी बेहतर मिलती है और मिट्टी की सेहत भी बनी रहती है. तो आज जानते हैं मूंगफली की खेती में खाद का प्रबंधन कैसे करें ताकि फसल भरपूर हो और लागत कम.
जरूरी है मिट्टी की जांच
मूंगफली की अच्छी खेती के लिए सबसे पहले खेत की मिट्टी की जांच (Soil Testing) कराना जरूरी है. इससे यह पता चलता है कि मिट्टी में कौन-कौन से पोषक तत्व मौजूद हैं और किनकी कमी है. मिट्टी की जांच के आधार पर ही खाद की सटीक मात्रा तय की जाती है.
मूंगफली को क्या-क्या चाहिए?
मूंगफली के पौधे को बढ़ने और फलने के लिए मुख्य रूप से तीन पोषक तत्व चाहिए – नाइट्रोजन (N), फॉस्फोरस (P) और पोटाश (K). नाइट्रोजन पत्तों और तनों की बढ़वार के लिए जरूरी है. वहीं फॉस्फोरस जड़ों के विकास और फूल बनने में मदद करता है. जबकि पोटाश पौधे की रोगों से लड़ने की ताकत बढ़ाता है और उसकी सेहत बनाए रखता है.
आमतौर पर मूंगफली के लिए ये मात्रा उपयुक्त मानी जाती है:
नाइट्रोजन– 50 से 60 किलो प्रति हेक्टेयर
फॉस्फोरस- 25 से 30 किलो प्रति हेक्टेयर
पोटाश- 50 से 60 किलो प्रति हेक्टेयर
खाद कब और कैसे डालें?
सिर्फ खाद की मात्रा नहीं, बल्कि इसे कब और कैसे डालना है, ये भी बहुत मायने रखता है. नाइट्रोजन को दो बार में डालना सबसे बेहतर होता है. पहली बार बुवाई के समय और दूसरी बार फूल आने के समय. इससे पौधे को हर स्टेज पर पोषण मिलता है. फॉस्फोरस और पोटाश को खेत की तैयारी के समय ही मिला देना चाहिए ताकि ये जड़ के पास पहुंच सकें. ध्यान रखें, ज्यादा नाइट्रोजन देने से सिर्फ पत्तियां ही बढ़ती हैं, फल नहीं बनते. इसलिए संतुलन बहुत जरूरी है.
जैविक खाद से मिट्टी भी मजबूत होती है
अगर आप रासायनिक खाद के साथ-साथ गोबर की खाद, कम्पोस्ट या वर्मी कम्पोस्ट का इस्तेमाल करते हैं तो इससे न केवल पौधों को पोषण मिलता है, बल्कि मिट्टी की ताकत भी बढ़ती है. जैविक खाद मिट्टी में जीवांश बढ़ाते हैं, जिससे उसकी जलधारण क्षमता भी सुधरती है.
सिंचाई और जल निकासी का रखें ध्यान
खाद तभी असरदार होती है जब पौधा उसे सही तरीके से सोख सके. इसके लिए सिंचाई सही समय पर होनी चाहिए और खेत में पानी जमा न हो, इसका भी इंतजाम हो. मूंगफली ज्यादा नमी सहन नहीं कर पाती, इसलिए जल निकासी बहुत जरूरी है.