आकार में काली मिर्च की तरह है यह चावल, स्वाद और खुशबू से कर देगा मंत्रमुग्ध

बिहार के पश्चिमी चंपारण में उगाया जाने वाला मर्चा धान एक देसी, खुशबूदार और छोटा दाना वाला चावल है जिसे GI टैग मिला है. इसकी खुशबू, स्वाद और सॉफ्टनेस के कारण इसकी देशभर में मांग है.

नोएडा | Updated On: 1 Jul, 2025 | 11:04 PM

अभी खरीफ फसल का सीजन चल रहा है. उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ सहित लगभग पूरे देश में किसान धान की खेती कर रहे हैं. लेकिन क्या आपको मालूम है कि बिहार में धान की एक ऐसी किस्म है, जिसको जीआई टैग मिला हुआ है. इस किस्म को मर्चा धान कहा जाता है. इस किस्म के चावल की खुशबू और स्वाद बहुत ही उम्दा है. शादी-समारोह में मर्चा धान के चावल की डिमांड खूब होती है. इसका भात बहुत सॉफ्ट और टेस्टी होता है. यही वजह है कि इसकी मांग केवल बिहार ही नहीं बल्कि, पूरे देश में है.

मर्चा धान एक देसी और खुशबूदार चावल की किस्म है. इसका आकार काली मिर्च जितना छोटा होता है. इसकी खेती बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले के सिर्फ 6 ब्लॉकों मैनाटांड़, गौनाहा, नरकटियागंज, रामनगर और चनपटिया में होती है. यहां की खास मिट्टी, पानी और मौसम के कारण मर्चा चावल को अलग स्वाद और खुशबू मिलती है, जो अब दुनिया भर में पसंद किया जा रहा है. एक्सपर्ट्स के मुताबिक, मर्चा धान का पौधा लंबा होता है और इसकी फसल 145 से 150 दिन में तैयार हो जाती है. एक हेक्टेयर में इसकी औसतन उपज 20-25 क्विंटल होती है.

1000 एकड़ में मर्चा धान की खेती

पहले पश्चिमी चंपारण के किसान बड़ी मात्रा में मर्चा चावल की खेती करते थे, लेकिन अब गन्ने में बढ़ती दिलचस्पी के चलते इसके रकबे में गिरावट आई है. इसके चलते इसका रकबा घटकर सिर्फ 45 फीसदी रह गया है. GI टैग मिलने से पहले इन 6 ब्लॉकों में मर्चा धान की खेती सिर्फ 700 एकड़ में होती थी. लेकिन GI टैग मिलने के बाद बाजार में इसकी मांग बढ़ने के साथ-साथ रकबा भी बढ़ा है. साल 2025 में 2000 से ज्यादा किसानों ने करीब 1000 एकड़ में मर्चा धान की खेती की है.

अब किसानों को मिलेगा प्रोत्साहन

जीआई टैग मिलने के बाद बिहार सरकार भी मर्चा धान की खेती करने वाले किसानों को प्रोत्साहित कर रही हैं. कहा जा रहा है कि मर्चा धान की खेती करने वाले किसानों को जिला प्रशासन ने प्रति एकड़ 4000 रुपये की सहायता देने के लिए राज्य सरकार को सिफारिश की है.

मर्चा धान की क्या है खासियत

अगर मर्चा चावल की खासियत की बात करें, तो यह एक गैर-बासमती, छोटा दाना और सुगंधित चावल की किस्म है. यह स्वाद में मुलायम और हल्की मिठास लिए होता है. इससे बने चूड़े की क्वालिटी बहुत अच्छी होती है. इसके छिलके का रंग गहरा भूरा होता है और दाना छोटा, मोटा और अंडाकार होता है. 100 दानों का वजन करीब 1.6 से 2.2 ग्राम होता है. जबकि, पौधे की पत्तियां चौड़ी, रंग हल्का हरा और बढ़वार मजबूत होती है.

साल 2023 में मिला जीआई टैग का दर्जा

मर्चा धान को साल 2023 में भौगोलिक संकेत (जीआई) का दर्जा दिया गया है. ऐसे जीआई टैग का पूरा नाम Geographical Indication यानी भौगोलिक संकेत है. यह एक तरह का प्रमाणपत्र होता है जो यह बताता है कि कोई उत्पाद किसी खास क्षेत्र या भौगोलिक स्थान से जुड़ा हुआ है और उसकी विशिष्ट गुणवत्ता, पहचान या प्रतिष्ठा उस क्षेत्र की वजह से है.

मर्चा धान से जुड़े कुछ रोचक आंकड़े

  • बिहार के चंपारण जिले में होती है इसकी खेती
  • चंपारण जिले के 6 ब्लॉग में किसान करते हैं इसकी खेती
  • एक हेक्टेयर में इसकी औसतन उपज 20-25 क्विंटल है
  • इसकी फसल 145 से 150 दिनों में तैयार हो जाती है
  • 2000 से ज्यादा किसान करते हैं इसकी खेती
  • 1000 एकड़ है मर्चा धान का रकबा

इस वजह से मार्चा धान में पैदा होती है खुशबू

मर्चा चावल की खास खुशबू वहां की विशेष जलवायु और जमीन की वजह से बनती है. खासकर बुढ़ी-गंडक (सिकरहना) नदी के किनारे वाले ब्लॉक में इसकी खेती होती है. यहां की मिट्टी में हिमालय से बहकर आने वाला खनिजयुक्त पानी मिल जाता है, जिससे मिट्टी और उपज दोनों खास बनती हैं. अक्टूबर-नवंबर में कम तापमान वाला सूक्ष्म वातावरण (माइक्रोक्लाइमेट) भी इसकी सुगंध को और निखारता है. इस चावल में खुशबू पौधे के अंकुर से लेकर फूल आने तक के हर चरण में रहती है.

इस समूह ने GI टैग के लिए भेजा था प्रस्ताव

मैनाटांड़ के ‘मर्चा धान उत्पादक प्रगतिशील समूह’ ने मर्चा चावल के लिए जीआई (GI) टैग को लेकर प्रस्ताव दिया था. नवंबर 2021 में आवेदन करने के बाद, साल 2023 में चेन्नई स्थित जियोग्राफिकल इंडिकेशन रजिस्ट्री ने मर्चा चावल को GI टैग दे दिया. अब ‘मर्चा चावल’ का नाम सिर्फ इसी क्षेत्र में उगाए गए चावल के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.

मर्चा धान के किसानों की होगी बंपर कमाई

मर्चा धान बिहार का दूसरा चावल है जिसे GI टैग मिला है. इससे पहले कतरनी चावल को जीआई टैग मिल चुका है. इसके साथ ही मर्चा धान बिहार का 23वां उत्पाद है जिसे GI टैग मिला है. इस टैग से मर्चा चावल को कानूनी सुरक्षा मिलती है और कोई भी इसे गैरकानूनी तरीके से बेच या प्रचार नहीं कर सकता. साथ ही इसे एक खास पहचान भी मिलती है. कहा जा रहा है कि आने वाले कुछ साल में इसकी खेती और उत्पादन में बंपर बढ़ोतरी की उम्मीद है. इससे किसानों की कमाई में इजाफा होगा.

Published: 1 Jul, 2025 | 08:23 PM