पंजाब में पराली जलाने के मामले में 30 फीसदी की गिरावट, 15 नवंबर तक 5000 केस आए सामने

पंजाब में पराली जलाने के मामलों में छह साल में बड़ी कमी आई है. 83,000 से घटकर सिर्फ 5,000 मामले रह गए. CRM मशीनों, सब्सिडी और सख्त नियमों ने इसमें मदद की. किसान नकद सहायता चाहते थे, लेकिन केंद्र ने नियमों में प्रावधान न होने पर प्रस्ताव ठुकरा दिया.

नोएडा | Updated On: 16 Nov, 2025 | 08:34 AM

Punjab News: पंजाब में धान कटाई के बाद पराली जलाने के मामलों में कमी देखने को मिल रही है. पिछले छह सालों में पराली जलाने के मामलों में बड़ी गिरावट दर्ज हुई. 2020 में जहां 83,000 मामले थे, वहीं इस साल (15 नवंबर तक) यह संख्या घटकर करीब 5,000 रह गई. कुल पराली जलाने के मामलों में पंजाब की हिस्सेदारी भी 2019 के 82 फीसदी से घटकर अब लगभग 30 फीसदी रह गई है, जो एक बड़ी उपलब्धि है. इस बदलाव में CRM मशीनों की बड़ी भूमिका रही. किसानों को 1.5 लाख से ज्यादा मशीनें दी गईं. इन मशीनों पर करीब 2,000 करोड़ रुपये की सब्सिडी मिली. सुप्रीम कोर्ट ने जुर्माने के सख्त नियम बनाए. इसके अलावा कई और कदम उठाए गए. ये सब इसलिए जरूरी था, क्योंकि किसान कम समय में अगली फसल की तैयारी के लिए पराली जलाना सबसे आसान तरीका मानते थे.

किसानों ने पराली प्रबंधन के लिए नकद सहायता की मांग की थी. उनका कहना था कि यह मदद या तो धान खरीद  के समय बोनस के रूप में दी जाए या प्रति एकड़ के हिसाब से. राज्य सरकार ने कई बार यह मुद्दा केंद्र सरकार के सामने उठाया. 2022 में आम आदमी पार्टी की सरकार ने एक प्रस्ताव भी दिया था, जिसमें पंजाब और दिल्ली सरकारें 500-500 रुपये देंगी, अगर केंद्र सरकार प्रति एकड़ 1,500 रुपये पराली प्रबंधन के लिए दे. लेकिन केंद्र सरकार ने इस प्रस्ताव को इसलिए ठुकरा दिया क्योंकि मौजूदा नियमों में CRM योजना और कृषि मशीनीकरण (SMAM) के तहत किसानों को सीधे नकद देने का प्रावधान नहीं है.

पंजाब से ज्यादा एमपी में पराली के मामले

इन हालातों में पराली जलाने की समस्या कई सालों तक जारी रही. लेकिन 2024 में पहली बार बड़ा बदलाव दिखा, जब पराली जलाने  के मामलों में पिछले साल की तुलना में 70 फीसदी की कमी दर्ज की गई. 2023 में जहां 36,663 मामले थे, 2024 में यह घटकर 10,909 रह गए. पहली बार ऐसा हुआ कि मध्य प्रदेश ने पंजाब से ज्यादा मामले दर्ज किए. MP में 16,360 और पंजाब में सिर्फ कुल मामलों का 29.01 फीसदी है.

2019 में पंजाब का हिस्सा सबसे ज्यादा 82.70 फीसदी था. इसके बाद 2020 में 77.03 फीसदी, 2021 में 77.46 फीसदी, 2022 में 71.70 फीसदी, और 2023 में 64.04 फीसदी रहा. लेकिन 2024 में बड़ी गिरावट के कारण यह हिस्सा घटकर 29.01 फीसदी रह गया. 15 नवंबर तक चल रहे मौजूदा सीजन में भी पंजाब की हिस्सेदारी लगभग 30 फीसदी है, जिससे पिछले छह सालों का मिलाकर औसत हिस्सा घटकर 69.60 फीसदी हो गया है.

MP और राजस्थान के मामले 2020 से रिकॉर्ड होने शुरू हुए

2019 में पंजाब के अलावा सिर्फ हरियाणा और यूपी  में ही पराली जलाने के मामले दर्ज होते थे, जबकि MP और राजस्थान के मामले 2020 से रिकॉर्ड होने शुरू हुए. CREAMS संस्था 2019 से सैटेलाइट के जरिए पराली जलाने के आंकड़े इकट्ठा कर रही है. उस समय कुल 61,284 मामले दर्ज हुए थे, जिनमें से 50,738 पंजाब के थे, जब वहां पराली जलाना सबसे ज्यादा था.

Published: 16 Nov, 2025 | 08:31 AM

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