भारत सरकार ने पशु स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने की दिशा में एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए पशुपालन एवं डेयरी विभाग के माध्यम से पशु रक्त आधान सेवाओं से जुड़े पहले राष्ट्रीय दिशा-निर्देश जारी किए हैं. अब तक देश में इस क्षेत्र के लिए कोई औपचारिक नियम या व्यवस्था नहीं थी, जिसके कारण आपात स्थितियों में घायल, बीमार या एनीमिया से पीड़ित पशुओं को समय पर और सुरक्षित तरीके से रक्त नहीं मिल पाता था. यह पहल न केवल पशु कल्याण को बढ़ावा देती है, बल्कि जैव-सुरक्षा और ‘वन हेल्थ’ दृष्टिकोण को भी मजबूती प्रदान करती है, जिससे पशु, मानव और पर्यावरण के स्वास्थ्य के बीच संतुलन बना रह सके.
क्यों जरूरी थी गाइडलाइन
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत में पशु रक्त आधान की अब तक कोई मानक प्रणाली नहीं थी. अधिकतर रक्त चढ़ाने की प्रक्रिया बिना किसी वैज्ञानिक प्रोटोकॉल के की जाती थी, जिससे पशु की जान को खतरा रहता था. न तो रक्तदाता पशु की नियमित स्वास्थ्य जांच होती थी और न ही रक्त समूह की सही पहचान. जैव-सुरक्षा उपायों की कमी के चलते संक्रमण फैलने का जोखिम बना रहता था. इन समस्याओं के कारण जब किसी पशु को चोट लगती, ऑपरेशन के दौरान रक्त की जरूरत पड़ती या गंभीर बीमारी में उसे खून चढ़ाना होता, तब कई बार यह उपचार नाकाम साबित होता था. नई नीति इन सभी खामियों को दूर करने के लिए एक स्पष्ट और वैज्ञानिक ढांचा तैयार करती है.
गाइडलाइन में क्या है खास
नई व्यवस्था के तहत अब रक्त आधान से पहले रक्तदाता पशु की स्वास्थ्य जांच और टीकाकरण अनिवार्य होगा. इसके साथ ही रक्त समूह की जांच और क्रॉस-मैचिंग की प्रक्रिया को भी अनिवार्य बनाया गया है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि रक्त रिसीवर पशु को किसी तरह का नुकसान न हो. इस प्रणाली को नैतिक बनाने के लिए स्वैच्छिक रक्तदान को बढ़ावा दिया जाएगा और ‘डोनर राइट्स चार्टर’ लागू किया जाएगा, जिससे पशु मालिक की सूचित सहमति और पशु कल्याण के मानकों का ध्यान रखा जा सके.
इसके अलावा सभी राज्यों को जैव-सुरक्षा के नियमों का पालन करते हुए पशु रक्त बैंक स्थापित करने की जिम्मेदारी दी गई है. इन बैंकों को आधुनिक सुविधाओं और साफ-सफाई के मानकों से सुसज्जित किया जाएगा, ताकि संग्रहित रक्त सुरक्षित तरीके से संग्रह और उपयोग किया जा सके.
पशुओं की बीमारियों को इंसानों में फैलने से रोका जाएगा
इस नीति का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष है इसका ‘वन हेल्थ’ मॉडल से जुड़ा होना, जो मानता है कि इंसान, पशु और पर्यावरण का स्वास्थ्य एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है. इससे जूनोटिक बीमारियों-जो पशुओं से इंसानों में फैल सकती हैं-को रोकने में मदद मिलेगी. साथ ही, इस नीति के अंतर्गत एक डिजिटल राष्ट्रीय पशु रक्त बैंक नेटवर्क की स्थापना की जाएगी. इसमें डोनर रजिस्ट्रियां, रीयल-टाइम इन्वेंटरी ट्रैकिंग और पशु चिकित्सकों के लिए आपातकालीन हेल्पलाइन जैसी सुविधाएं शामिल होंगी. भविष्य में मोबाइल ब्लड कलेक्शन यूनिट्स, दुर्लभ रक्त समूहों का संरक्षण और दाता-रिसीवर को जोड़ने वाले मोबाइल ऐप्स भी विकसित किए जाएंगे.
65 करोड़ पशुओं के लिए राहत का फैसला
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार भारत में 53 करोड़ से अधिक पशुधन और 12 करोड़ से ज्यादा पालतू जानवर हैं. यह क्षेत्र देश की GDP में लगभग 5.5 फीसदी और कृषि GDP में 30 प्रतिशत से ज्यादा योगदान देता है. पशु स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार से ग्रामीण आजीविका को मजबूती मिलेगी, दूध और अन्य पशु उत्पादों की गुणवत्ता बढ़ेगी और खाद्य सुरक्षा को नया बल मिलेगा. इसके अलावा, नीति के तहत पशु चिकित्सा पाठ्यक्रमों में नए प्रशिक्षण मॉड्यूल शामिल किए जाएंगे, जिससे भावी पशु चिकित्सक तकनीकी और नैतिक रूप से अधिक सक्षम बन सकेंगे.