Disease control: प्याज भारत की सबसे अधिक उगाई जाने वाली और सबसे ज्यादा उपयोग होने वाली सब्जियों में से एक है. किसान इसकी खेती से अच्छी आमदनी कमा लेते हैं, लेकिन प्याज की फसल कई तरह के रोगों के प्रति संवेदनशील भी है. इन्हीं में से एक गंभीर और तेजी से फैलने वाला रोग है पर्पल ब्लॉच, जो प्याज के उत्पादन और गुणवत्ता दोनों को भारी नुकसान पहुंचा सकता है. यह रोग फफूंद की वजह से होता है और यदि समय पर नियंत्रण न किया जाए, तो पूरी फसल को बर्बाद कर देता है. इसलिए किसानों के लिए इस रोग की पहचान, कारण और बचाव के तरीकों को समझना बेहद जरूरी है.
पर्पल ब्लॉच रोग क्या है और कैसे फैलता है?
पर्पल ब्लॉच वास्तव में एक फफूंदजनित रोग है जो ऊपर से नीचे की ओर तेजी से फैलता है. यह रोग हवा, नमी, संक्रमित पौध अवशेष और अत्यधिक सिंचाई के कारण खेत में फैलता है.
इस फफूंद को बढ़ने के लिए दो चीजें सबसे ज्यादा चाहिए होती हैं-आर्द्रता 80–90 फीसदी और तापमान 18–25°C. बरसात का मौसम हो या खेत में पानी जमा हो जाए, दोनों ही स्थितियां इस रोग के फैलाव को और तेज कर देती हैं. यदि खेत में लगातार पत्तियों पर नमी बनी रहे, तो संक्रमण तेजी से बढ़ जाता है.
पर्पल ब्लॉच रोग के प्रमुख लक्षण
पर्पल ब्लॉच की पहचान आसान है, लेकिन इसके शुरुआती संकेत अक्सर नजरअंदाज हो जाते हैं. यही वजह है कि नुकसान बढ़ जाता है. सबसे पहले पत्तियों पर छोटे पीले पानीदार धब्बे बनते हैं. धीरे-धीरे ये धब्बे भूरे या गहरे बैंगनी रंग के हो जाते हैं और उनके चारों ओर पीला घेरा दिखाई देने लगता है. संक्रमण बढ़ने पर पत्तियां सूखने और झुलसने लगती हैं. चूंकि प्याज के बल्ब का विकास पत्तियों पर निर्भर करता है, इसलिए पत्तियां समय से पहले सूखने लगें तो बल्ब पूरी तरह विकसित नहीं हो पाता, जिससे उत्पादन में भारी गिरावट आती है.
रोग नियंत्रण के लिए खेत और फसल का वैज्ञानिक प्रबंधन
इस रोग से बचाव करने के लिए खेत की सही तैयारी और साफ-सफाई बहुत जरूरी है. प्याज की फसल को बार-बार एक ही खेत में ना उगाएं. फसल चक्र अपनाने से रोगजनक मिट्टी में टिक नहीं पाता. खेत में पुराने पौध अवशेष हटाना और जल निकासी सुनिश्चित करना आवश्यक है, ताकि पानी रुके नहीं और पत्तियां लंबे समय तक गीली न रहें. उर्वरकों में संतुलन रखना भी महत्वपूर्ण है. नाइट्रोजन की अधिकता रोग-पनपने का खतरा बढ़ाती है, जबकि फॉस्फोरस व पोटाश पौधों को मजबूत बनाते हैं और रोग सहन क्षमता बढ़ाते हैं.
रोग-प्रतिरोधी किस्में और जैविक उपाय
यदि किसान ऐसी किस्में लगाएं जिनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक हो, तो पर्पल ब्लॉच का खतरा काफी कम हो जाता है. Agrifound Dark Red और Arka Kalyan ऐसी ही दो प्रमुख किस्में हैं जिनमें इस रोग के प्रति अच्छी सहनशीलता पाई जाती है.
जैविक उपायों में ट्राइकोडर्मा का उपयोग प्रभावी है, जो मिट्टी में रोगजनकों को नियंत्रित करता है. इसके अलावा नीम तेल (5%) का छिड़काव भी रोग रोकने में मदद करता है. जैविक खाद जैसे गोबर की खाद और काउ-डंग स्लरी पौधों की प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाती है.
फफूंदनाशकों का सुरक्षित और प्रभावी उपयोग
गंभीर संक्रमण की स्थिति में रासायनिक दवाओं का उपयोग आवश्यक होता है. मैनकोजेब, प्रोपिकोनाजोल और क्लोरोथालोनिल ऐसे प्रमुख फफूंदनाशी हैं जो पर्पल ब्लॉच को नियंत्रित करने में प्रभावी माने जाते हैं. इनका छिड़काव 10–15 दिनों के अंतर पर दो बार किया जाए तो बेहतर परिणाम मिलते हैं. दवाइयों का उपयोग करते समय पानी की मात्रा और छिड़काव का समय सही होना चाहिए, ताकि पत्तियों पर दवा समान रूप से पहुंच सके.
सिंचाई का सही प्रबंधन क्यों जरूरी है?
सिंचाई पद्धति का इस रोग पर सीधा असर पड़ता है. ड्रिप सिंचाई से पत्तियों पर पानी नहीं पड़ता, जिससे संक्रमण का खतरा काफी कम हो जाता है. स्प्रिंकलर सिंचाई से बचना चाहिए क्योंकि इससे पत्तियां गीली रहती हैं और फफूंद तेजी से पनपता है. सिंचाई हमेशा सुबह के समय करें ताकि दिन में पत्तियां सूख सकें और नमी ज्यादा देर तक न रहे.