Chicory farming: भारत में खेती का स्वरूप धीरे-धीरे बदल रहा है. किसान अब पारंपरिक फसलों के साथ-साथ ऐसी फसलों की तलाश में हैं जो कम खर्च में अधिक लाभ दे सकें. इन्हीं में से एक फसल है चकोरी, जिसे कासनी या Chicory भी कहा जाता है. पहले यह फसल सीमित क्षेत्रों में ही उगाई जाती थी, लेकिन अब इसके बढ़ते उपयोग और मांग के चलते यह किसानों की पसंद बनती जा रही है. मुनाफे के मामले में यह फसल आज आलू जैसी लोकप्रिय फसलों को भी टक्कर देने लगी है.
चकोरी क्या है और इसकी खासियत क्या है?
चकोरी एक बहुउपयोगी फसल है जिसका इस्तेमाल भोजन, दवा और पशुचारे के रूप में किया जाता है. इसकी जड़ों को सुखाकर कॉफी के विकल्प के रूप में उपयोग किया जाता है, जिससे इसका अंतरराष्ट्रीय महत्व बढ़ जाता है. इसके अलावा, चकोरी की पत्तियां हरी सब्जी की तरह खाई जाती हैं और बचे हुए पौधे को पशुचारे में प्रयोग किया जाता है. यही कारण है कि यह फसल किसानों को पूरे साल बाजार उपलब्ध कराती है और आय के कई स्रोत प्रदान करती है.
चकोरी की खेती कहां और कब करें?
भारत में चकोरी की खेती मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान जैसे राज्यों में होती है. इसके लिए 15 से 25 डिग्री सेल्सियस का तापमान उपयुक्त माना जाता है. बुवाई के लिए जुलाई से सितंबर का समय सबसे अच्छा होता है, क्योंकि इस दौरान मिट्टी में नमी पर्याप्त होती है. हालांकि कुछ क्षेत्रों में किसान अक्टूबर, नवंबर और फरवरी-मार्च में भी इसकी बुवाई करते हैं.
मिट्टी और खेत की तैयारी
चकोरी की खेती के लिए दोमट या बलुई दोमट मिट्टी सबसे अनुकूल मानी जाती है. मिट्टी का pH स्तर 5.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए. खेत की अच्छी तरह जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा बना लेना चाहिए ताकि जड़ों को बढ़ने के लिए पर्याप्त जगह मिले. खेत में जल निकासी की व्यवस्था का होना जरूरी है, क्योंकि पानी भराव से फसल को नुकसान हो सकता है. जैविक खाद मिलाने से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और उत्पादन भी अच्छा मिलता है.
बुवाई और फसल अवधि
चकोरी की बुवाई करने के लिए खेत को समतल करके 4 से 5 फीट चौड़े बेड तैयार किए जाते हैं. एक एकड़ खेत में लगभग 350 से 400 ग्राम बीज पर्याप्त होते हैं. यह फसल लगभग 120 से 150 दिनों में पत्तियों के लिए तैयार हो जाती है. यदि किसान जड़ उत्पादन करना चाहता है तो फसल को 5 से 6 महीने तक खेत में रहने देना पड़ता है. कटाई के बाद जड़ों को सुखाकर पैक किया जाता है, जिससे बाजार में इसकी कीमत और बढ़ जाती है.
चकोरी का बढ़ता व्यावसायिक महत्व
चकोरी का उपयोग कई उद्योगों में किया जाता है. कॉफी कंपनियां इसके पाउडर को कॉफी में मिलाकर स्वाद बढ़ाती हैं. बिस्कुट, चॉकलेट और अन्य खाद्य उत्पादों में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है. आयुर्वेद और होम्योपैथी में चकोरी की जड़ और पत्तियों से दवाएं बनाई जाती हैं. इस फसल का एक और बड़ा उपयोग पशुचारे के रूप में होता है, क्योंकि इसकी पत्तियां पोषक तत्वों से भरपूर होती हैं. यही विविधता इसे एक बेहद महत्वपूर्ण व्यावसायिक फसल बनाती है.
कम खर्च और अधिक लाभ वाली फसल
चकोरी एक ऐसी फसल है जो कम पानी में भी अच्छी पैदावार देती है. इस पर रोगों का प्रकोप भी कम होता है, जिससे किसानों का खर्च काफी कम हो जाता है. यह फसल लंबे समय तक सुरक्षित रखी जा सकती है, इसलिए किसान इसे सही समय आने पर बाजार में बेचकर अधिक लाभ कमा सकते हैं. इसके बढ़ते औषधीय उपयोग के चलते बाजार में इसकी कीमत भी अच्छी मिलती है.