सरकार की सख्ती का असर, एक-तिहाई कम हो गई पराली जलाने की घटना.. 520000 रुपये जुर्माने की वसूली

पंजाब में सरकार की सख्ती के बाद पराली जलाने के मामले तेजी से घटे हैं, खासकर लुधियाना में जहां घटनाएं एक-तिहाई कम हुईं. जुर्माने और FIR की कार्रवाई बढ़ी है. किसान अब हैपी सीडर, रोटावेटर जैसे इन-सिचुए और बेलिंग जैसे एक्स-सिचुए तरीकों से पराली का प्रबंधन कर रहे हैं.

नोएडा | Published: 22 Nov, 2025 | 01:00 PM

Punjab News: सरकार की सख्ती के बाद पंजाब में पराली जलाने के मामलों में तेजी से गिरावट आई है. खासकर लुधियाना जिले में यह गिरावट ज्यादा ही देखने को मिल रही है. इस साल लुधियाना जिले में धान कटाई के दौरान खेतों में आग लगाने की घटनाएं एक-तिहाई कम हो गईं. पिछले साल 322 मामले दर्ज हुए थे, जो 2025 में घटकर 213 रह गए. प्रशासन ने 98 मामलों में कुल 5,20,000 रुपये का पर्यावरण जुर्माना लगाया, जिसमें से 3,15,000 रुपये किसानों से वसूला जा चुका है.

हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (PPCB) के अनुसार, जुर्माना जमीन के आकार के हिसाब से लगाया जाता है. दो एकड़ से कम जमीन वाले किसानों पर 5,000 रुपये, दो से पांच एकड़ वाले पर 10,000 रुपये और पांच एकड़ से ज्यादा वाले पर 30,000 रुपये का जुर्माना लगाया  जाता है. अब तक 52 FIR दर्ज की गई हैं, जो BNS की धारा 223 के तहत लगाई गई हैं. यह धारा सरकारी आदेशों का पालन न करने पर लागू होती है. इसके अलावा, 82 ‘रेड एंट्री’ भी की गई हैं. रेड एंट्री का मतलब है कि किसान उस जमीन को न बेच सकता है, न गिरवी रख सकता है और न ही उस पर कोई कृषि ऋण ले सकता है.

रोटावेटर और हल जैसी मशीनों का उपयोग किया जाता है

मुख्य कृषि अधिकारी गुरदीप सिंह ने कहा कि इस साल खेतों में आग कम लगने का कारण यह है कि किसान अब पराली प्रबंधन  के दूसरे तरीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं, न कि उसे जलाने का. फसल अवशेष प्रबंधन के दो तरीके होते हैं. इन-सिचुए (in situ) और एक्स-सिचुए (ex situ). इन-सिचुए में पराली को खेत में ही संभाला जाता है. इसके लिए हैपी सीडर, रोटावेटर और हल जैसी मशीनों का उपयोग किया जाता है. मल्चिंग तकनीक से गेहूं की बुआई पराली हटाए बिना हो जाती है, जबकि इनकॉर्पोरेशन में पराली मिट्टी में मिला दी जाती है. एक्स-सिचुए तरीके में पराली को बेल बनाकर बंडलों में दबाया जाता है और फिर फैक्ट्रियों या अन्य जगहों पर ले जाया जाता है, जहां उसका दूसरे कामों में उपयोग होता है.

पराली जलाने के मामले घटकर 30 फीसदी रह गई

वहीं, बीते दिनों खबर सामने आई थी कि पंजाब में धान कटाई के बाद पराली जलाने के मामलों में कमी देखने को मिल रही है. पिछले छह सालों में पराली जलाने  के मामलों में बड़ी गिरावट दर्ज हुई. 2020 में जहां 83,000 मामले थे, वहीं इस साल (15 नवंबर तक) यह संख्या घटकर करीब 5,000 रह गई. कुल पराली जलाने के मामलों में पंजाब की हिस्सेदारी भी 2019 के 82 फीसदी से घटकर अब लगभग 30 फीसदी रह गई है, जो एक बड़ी उपलब्धि है.

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