पराली जलाने के मामले में तेजी से गिरावाट, 3 साल में कम होकर रह गए 734 केस
इस साल अमृतसर में पराली जलाने के मामले रिकॉर्ड स्तर पर घटकर 315 रह गए. प्रशासन, PPCB, कृषि विभाग और NGOs के संयुक्त प्रयास, 212 बेलर मशीनें, पेलेटाइजेशन तकनीक, गूगल शीट आधारित मॉनिटरिंग और किसानों में बढ़ती जागरूकता ने पराली प्रबंधन को मजबूत किया और प्रदूषण में बड़ी कमी लाई.
Punjab News: इस साल पंजाब के अमृतसर जिले में 15 सितंबर से 27 नवंबर के बीच पराली जलाने के मामलों में बड़ी गिरावट दर्ज की गई है. पिछले दो वर्षों की तुलना में इस बार धुएं और स्मॉग की मोटी परत नहीं दिखी. एयर क्वालिटी इंडेक्स भी सुरक्षित स्तर में रहा और धुंध के कारण होने वाली सड़क दुर्घटनाएं भी नहीं हुईं. सैटेलाइट डेटा के अनुसार, 2023 में इसी अवधि में 1,573 पराली जलाने के मामले मिले थे, जो 2024 में घटकर 734 रह गए और इस साल यह संख्या और कम होकर सिर्फ 315 पर पहुंच गई.
अधिकारियों के अनुसार, जिला प्रशासन, पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (PPCB), कृषि विभाग और विभिन्न NGOs के संयुक्त प्रयासों की वजह से पराली जलाने के मामलों में बड़ी कमी आई है. 2024 से शुरू की गई इन-सीटू और एक्स-सीटू प्रबंधन योजनाओं को 2025 में और मजबूत किया गया. PPCB की SDO सुखमनी खेहरा ने कहा कि कई कारणों ने मिलकर पराली जलाने में कमी लाई है. जिले को मलवा क्षेत्र से 140 बेलर मशीनें मिलीं और अपनी 72 मशीनों के साथ कुल 212 मशीनें उपलब्ध हो गईं. दो मिलें पहले से ही बॉयलर और प्रदूषण नियंत्रण उपकरणों से लैस हैं और पराली की गांठों को ईंधन की तरह इस्तेमाल कर रही हैं. दो और मिलें अगले सीजन तक तैयार होने की उम्मीद है.
एक केंद्रीय कंट्रोल रूम भी बनाया गया
द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, इसके अलावा जिले ने पराली को काटकर, दबाकर और छोटे पेलेट्स में बदलने वाली पेलेटाइजेशन मशीनें भी खरीदी हैं, जिससे इसे औद्योगिक ईंधन के रूप में उपयोग किया जा सकेगा. किसानों की मदद के लिए जिला प्रशासन ने गूगल शीट्स तैयार कीं, जो हर मंडी में बनाए गए हेल्प डेस्क पर उपलब्ध थीं. जिला प्रशासनिक परिसर में एक केंद्रीय कंट्रोल रूम भी बनाया गया.
जिले के हर ब्लॉक में कुल 10 केंद्र बनाए गए
इन शीट्स में किसानों की जानकारी, उनकी जमीन और संपर्क विवरण दर्ज किए गए. जिले के हर ब्लॉक में कुल 10 केंद्र बनाए गए, जहां नोडल अधिकारी, प्रशासन, PPCB, कृषि विभाग के कर्मचारी और NGO क्लीन एयर से जुड़े चार विद्यार्थी मिलकर किसानों से लगातार संपर्क करते रहे और पराली के प्रबंधन में मदद करते रहे. साथ ही किसानों में पराली जलाने से होने वाले पर्यावरणीय नुकसान, मिट्टी की सेहत और जैविक पदार्थ पर पड़ने वाले बुरे प्रभाव को लेकर जागरूकता बढ़ी. इस बढ़ती समझ ने भी इस साल पराली जलाने के मामलों में कमी लाने में बड़ी भूमिका निभाई.