इस देसी सब्जी की खेती से किसान बन सकते हैं मालामाल, खेत से ही हाथों-हाथ बिक जाएगी फसल

सही देखभाल के साथ यह फसल बुवाई के करीब 55 से 60 दिन बाद पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है. इसके बाद लगातार अंतराल पर फलियां तोड़ी जा सकती हैं, जिससे किसान को नियमित आमदनी मिलती रहती है.

नई दिल्ली | Published: 30 Dec, 2025 | 03:31 PM

Vegetable farming: आज के समय में किसान ऐसी फसल की तलाश में रहते हैं, जिसमें लागत कम लगे, मेहनत ज्यादा न हो और बाजार में मांग हमेशा बनी रहे. बदलते खानपान और लोगों की बढ़ती सेहत जागरूकता के चलते देसी सब्जियों की मांग तेजी से बढ़ी है. शहरों से लेकर गांवों तक लोग अब फिर से पारंपरिक और स्वादिष्ट सब्जियों की ओर लौट रहे हैं. यही वजह है कि कुछ देसी सब्जियां किसानों के लिए नया मौका बनकर उभरी हैं. इन्हीं में से एक है सेम की लाल चपटा किस्म, जिसकी खेती कर किसान कम समय में अच्छी कमाई कर सकते हैं.

देसी स्वाद की वापसी, बाजार में बढ़ी मांग

सेम की सब्जी भारतीय रसोई में सालों से पसंद की जाती रही है. खासकर लाल चपटा सेम का स्वाद, रंग और बनावट बाजार में इसे अलग पहचान दिलाती है. यह सब्जी न सिर्फ स्वाद में बेहतरीन होती है, बल्कि पोषण से भी भरपूर मानी जाती है. शहरों में होटल, ढाबे और सब्जी मंडियों में लाल चपटी सेम की मांग लगातार बनी रहती है. ताजी फलियां खेत से सीधे मंडी या लोकल बाजार में पहुंचते ही हाथों-हाथ बिक जाती हैं, जिससे किसानों को स्टोरेज या लंबे इंतजार की चिंता नहीं रहती.

लाल चपटा सेम क्यों है किसानों के लिए फायदेमंद

लाल चपटा सेम एक देसी और भरोसेमंद किस्म है, जो अलग-अलग मौसम और परिस्थितियों में अच्छी पैदावार देती है. इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसे उगाने में बहुत ज्यादा तकनीकी झंझट नहीं होता. सामान्य देखभाल, समय पर सिंचाई और संतुलित खाद देने से यह फसल अच्छा उत्पादन देने लगती है. इसकी फलियां लाल रंग की, चपटी और मुलायम होती हैं, जो ग्राहकों को तुरंत आकर्षित करती हैं. यही कारण है कि बाजार में इसका भाव सामान्य हरी सेम की तुलना में बेहतर मिलता है.

खेती के लिए कैसी हो जमीन और तैयारी

लाल चपटा सेम की खेती के लिए हल्की दोमट या बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है. खेत में पानी का भराव नहीं होना चाहिए, क्योंकि जल जमाव से पौधों की बढ़वार प्रभावित होती है. मिट्टी का पीएच मान 6.0 से 7.5 के बीच रहे तो फसल बेहतर होती है. बुवाई से पहले खेत की अच्छी जुताई कर उसमें सड़ी हुई गोबर की खाद मिलाने से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और पौधों को शुरुआती ताकत मिलती है.

बुवाई से लेकर पहली तुड़ाई तक का सफर

सेम की लाल चपटा किस्म की बुवाई के लिए प्रति हेक्टेयर लगभग 25 से 30 किलो बीज की जरूरत होती है. बीज बोने से पहले उनका उपचार करने से रोगों का खतरा कम हो जाता है और अंकुरण बेहतर होता है. बुवाई के समय पंक्ति से पंक्ति की दूरी लगभग 60 से 75 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 30 से 45 सेंटीमीटर रखना सही रहता है. इससे पौधों को फैलने और अच्छी फलियां बनाने के लिए पर्याप्त जगह मिलती है.

सही देखभाल के साथ यह फसल बुवाई के करीब 55 से 60 दिन बाद पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है. इसके बाद लगातार अंतराल पर फलियां तोड़ी जा सकती हैं, जिससे किसान को नियमित आमदनी मिलती रहती है.

कम लागत में ज्यादा उत्पादन

लाल चपटा सेम की खेती की एक बड़ी खासियत इसकी शानदार उपज क्षमता है. एक हेक्टेयर क्षेत्र में इसकी खेती करने पर औसतन 100 से 120 क्विंटल तक फलियों का उत्पादन आसानी से मिल सकता है. उत्पादन अच्छा होने के साथ-साथ बाजार में इसकी कीमत भी संतोषजनक रहती है. ताजी और अच्छी गुणवत्ता वाली लाल चपटी फलियों की मांग इतनी अधिक होती है कि किसान को मंडी में ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ता.

कमाई का मजबूत गणित

अगर किसान सही समय पर बुवाई करें और बाजार से सीधा जुड़ाव बनाए रखें, तो सेम की लाल चपटा किस्म से प्रति हेक्टेयर 1.5 से 2 लाख रुपये तक की कमाई संभव है. इसमें खास बात यह है कि निवेश अपेक्षाकृत कम होता है और फसल जल्दी तैयार हो जाती है. छोटे और सीमांत किसानों के लिए यह फसल इसलिए भी फायदेमंद है क्योंकि वे इसे कम जमीन में उगाकर भी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.

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