कभी जो महिलाएं सिर्फ रसोई तक सीमित थीं, आज वही महिलाएं खेतों की तस्वीर बदलने निकली हैं. उत्तर प्रदेश में कटिया-द्वतीय कृषि विज्ञान केंद्र की पहल पर 180 महिलाएं अब “कृषि सखियों” के रूप में किसानों की सलाहकार बन गई हैं. इन्हें प्राकृतिक खेती से जुड़े आधुनिक और पारंपरिक तरीकों की गहन ट्रेनिंग दी गई है. अब ये महिलाएं गांव-गांव जाकर किसानों को वर्मी कम्पोस्ट, जीवामृत, दशपर्णी अर्क जैसे जैविक तरीकों से खेती करना सिखाएंगी.
कृषि सखियों को मिली है खास ट्रेनिंग
कृषि विज्ञान केंद्र के अध्यक्ष डॉ. दया शंकर श्रीवास्तव ने बताया कि राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन के तहत जिले में 400 महिलाओं को चुना गया है, जिनमें से अब तक 180 को प्रशिक्षित किया जा चुका है. ये महिलाएं अब खेतों में जाकर किसानों को मिट्टी की जांच, जैविक खाद तैयार करना, और प्राकृतिक खेती की तमाम तकनीकों की जानकारी देंगी. इससे किसानों को कम लागत में बेहतर उत्पादन का रास्ता मिलेगा.
जैविक खेती को मिलेगा बढ़ावा
इन महिलाओं का मुख्य उद्देश्य किसानों को रासायनिक खादों और कीटनाशकों से दूर कर, प्राकृतिक खेती अपनाने की दिशा में प्रेरित करना है. जैविक खेती से न केवल मिट्टी का स्वास्थ्य सुधरेगा बल्कि पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा. कृषि सखियां किसानों को यह सिखाएंगी कि कैसे स्थानीय संसाधनों का उपयोग कर वे कम खर्च में खेती कर सकते हैं.
कम लागत, ज्यादा मुनाफा
पशुपालन विशेषज्ञ डॉ. आनंद सिंह बताते हैं कि आज के किसान रासायनिक खाद के अधिक प्रयोग से मिट्टी को नुकसान पहुंचा रहे हैं. इसी को ध्यान में रखते हुए कृषि सखियों को देसी गाय से तैयार होने वाले उत्पादों जैसे जीवामृत (तरल जैविक खाद), वर्मी कम्पोस्ट और दशपर्णी(दस अलग-अलग पेड़ों के पत्तों से बनाया गया एक प्राकृतिक कीटनाशक) अर्क के फायदे सिखाए गए हैं. इनसे खेती में न केवल उत्पादन बढ़ेगा, बल्कि खर्च भी कम आएगा.
किचन गार्डन और श्रीअन्न से पोषण की ओर बढ़ते कदम
इन सखियों का एक और महत्वपूर्ण कार्य होगा किसानों को किचन गार्डन (रसोई बगीचा) तैयार करवाना. इससे परिवार को घर पर ही ताजी और पौष्टिक सब्जियां मिल सकेंगी. साथ ही श्रीअन्न जैसे मोटे अनाजों के फायदे और उनके रोजमर्रा के भोजन में उपयोग को भी बढ़ावा दिया जाएगा.
महिलाओं को मिली नई पहचान
सरकार की इस अनोखी पहल से न सिर्फ किसानों को जैविक खेती का फायदा मिलेगा, बल्कि महिलाएं भी आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त बनेंगी. ये महिलाएं अब आत्मनिर्भर बनकर समाज को दिशा देंगी और खेती को एक नई राह पर ले जाएंगी. अब गांव की महिलाएं सिर्फ सीखने वाली नहीं, बल्कि सिखाने वाली बन चुकी हैं.