काली मूली की खेती बनी किसानों के लिए संजीवनी, कम लागत में हो रही बंपर कमाई

ऑर्गेनिक मार्केट और फार्मा इंडस्ट्री में इसकी मांग तेजी से बढ़ी है. यही वजह है कि हरियाणा, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में कई किसान अब पारंपरिक फसलें छोड़कर काली मूली की ओर रुख कर चुके हैं.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 8 Jul, 2025 | 10:59 AM

आपने सफेद और लाल मूली के पराठे और अचार तो खूब खाए होंगे, लेकिन क्या कभी काली मूली का नाम सुना है? दिखने में थोड़ी अनोखी, स्वाद में तीखी और सेहत में लाजवाब…यही है काली मूली. पहले तो लोग इसके नाम से ही चौंक जाते थे, लेकिन अब देशभर के किसान इसकी खेती से अच्छी खासी कमाई कर रहे हैं. बाजार में इसकी मांग इतनी बढ़ गई है कि कई जगहों पर सफेद मूली को पीछे छोड़ चुकी है. खास बात ये है कि काली मूली को सेहत के लिए लाभकारी माना जाता है.

कैसी होती है काली मूली?

काली मूली बाहर से गाढ़े काले रंग की होती है, जबकि अंदर से सफेद. देखने में यह शलजम जैसी लगती है लेकिन स्वाद और औषधीय गुणों में इसका कोई मुकाबला नहीं. इसे आमतौर पर ठंड के मौसम में उगाया जाता है, लेकिन अच्छी तकनीक और मेहनत से किसान अब इसे सालभर भी उगा रहे हैं. इसकी खेती सफेद मूली जैसी ही होती है- ढीली मिट्टी, अच्छी जल निकासी और ठंडी जलवायु इसके लिए मुफीद मानी जाती है.

सेहत के लिए वरदान

काली मूली सिर्फ कमाई का जरिया नहीं, बल्कि शरीर के लिए एक अद्भुत औषधि भी है. इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट्स दिल को स्वस्थ रखते हैं और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं. काली मूली में प्रोटीन, विटामिन-B6, थियामिन, विटामिन-E, मैग्नीशियम, सोर्बिटोल, फोलेट जैसे जरूरी पोषक तत्व मौजूद होते हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि ये पाचन तंत्र को मजबूत करती है और कब्ज, गैस जैसी समस्याओं से राहत देती है.

आयुर्वेद और आधुनिक चिकित्सा में उपयोग

आयुर्वेद में भी काली मूली को लिवर डिटॉक्स और पित्त रोगों के इलाज में उपयोगी बताया गया है. वहीं, आधुनिक शोधों में यह पाया गया है कि यह शरीर से विषैले तत्वों को बाहर निकालने में मदद करती है और त्वचा को भी निखारती है.

कैसे करें काली मूली की खेती-

खेती के लिए मिट्टी

काली मूली की जड़ें लंबी और गहरी होती हैं, इसलिए इसके लिए भुरभुरी और जलनिकासी वाली मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है. बलुई दोमट मिट्टी या हल्की चिकनी मिट्टी जिसमें पानी जमा न हो, वह सबसे अच्छी रहती है. खेत की तैयारी के समय मिट्टी को अच्छी तरह जोतना जरूरी है ताकि मूली की जड़ें आसानी से बढ़ सकें.

बीज बोने का तरीका और दूरी

काली मूली के बीज सफेद मूली की तरह ही बोए जाते हैं. बीजों को बोने से पहले उन्हें किसी जैविक फफूंदनाशक से उपचारित करना अच्छा रहता है ताकि फसल शुरुआत से ही मजबूत बने. बीजों को खेत में कतारों में बोया जाता है और पौधों के बीच उचित दूरी रखी जाती है ताकि हर पौधे को भरपूर पोषण मिल सके.

सिंचाई का सही तरीका

मूली की जड़ों को बढ़ने के लिए नमी की जरूरत होती है, लेकिन पानी का ठहराव बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए. बुवाई के तुरंत बाद पहली सिंचाई करना जरूरी होता है. इसके बाद हर 7 से 10 दिन में सिंचाई करते रहना चाहिए. खासतौर पर फसल के बढ़ने की अवस्था में खेत में नमी बनाए रखना बहुत जरूरी होता है.

जैविक खाद और पोषण का महत्व

अगर आप जैविक खेती करना चाहते हैं तो गोबर की खाद, वर्मी कम्पोस्ट और नीम की खली का उपयोग करें. इससे फसल में मिठास भी बढ़ती है और मिट्टी की सेहत भी सुधरती है. वहीं रासायनिक खाद का इस्तेमाल कर रहे हैं, तो वे संतुलित मात्रा में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश का प्रयोग करें. खाद को दो हिस्सों में डालना बेहतर रहता है, एक बुवाई के समय और दूसरा 25-30 दिन बाद.

कीट और रोग से बचाव

काली मूली की फसल को पत्तियों पर धब्बे, सड़न, या झुलसा जैसे रोग लग सकते हैं. इसके अलावा एफिड और सफेद मक्खी जैसे कीट भी नुकसान पहुंचा सकते हैं. ऐसे में सबसे जरूरी है समय-समय पर जैविक उपाय अपनाना. नीम का तेल छिड़कना एक कारगर तरीका है. अगर संक्रमण बढ़ जाए तो कृषि विशेषज्ञ की सलाह से दवाओं का छिड़काव करें.

फसल की कटाई और भंडारण

बुवाई के लगभग 45 से 60 दिन बाद काली मूली की खुदाई की जा सकती है. जब मूली की मोटाई और लंबाई पूरी हो जाए और पत्ते थोड़े मुरझाने लगें, तो समझिए फसल तैयार है. कटाई के बाद मूली को छाया में सुखाएं और फिर प्लास्टिक क्रेट्स में भरकर बाजार या मंडी तक भेजें. ठंडी जगह में इसे एक हफ्ते तक ताजा रखा जा सकता है.

बाजार में डिमांड और मुनाफा

जहां एक तरफ सफेद मूली 30-40 रुपये किलो बिकती है, वहीं काली मूली की कीमत 60 से 70 रुपये प्रति किलो तक पहुंच जाती है. ऑर्गेनिक मार्केट और फार्मा इंडस्ट्री में इसकी मांग तेजी से बढ़ी है. यही वजह है कि हरियाणा, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में कई किसान अब पारंपरिक फसलें छोड़कर काली मूली की ओर रुख कर चुके हैं.

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