फल वाली मक्खियों से फसल को बड़ा नुकसान, नियंत्रण के लिए ये उपाए करें किसान

यदि संक्रमण बहुत बढ़ चुका हो, तब रासायनिक कीटनाशकों का सीमित और नियंत्रित उपयोग किया जाता है. लेकिन यह तभी करना चाहिए जब प्राकृतिक और ट्रैप तकनीक से समस्या नियंत्रित न हो पाए. फलों पर दवा का अवशेष न रहे, इसके लिए छिड़काव के बाद उचित समय का अंतराल रखना आवश्यक है.

नई दिल्ली | Published: 1 Dec, 2025 | 02:00 PM

Fruit fly contro: फलों की खेती करने वाले किसानों के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है फल वाली मक्खी (Fruit Fly) का प्रकोप. यह छोटा–सा कीट फलों के अंदर अंडे देकर पूरी फसल को खराब कर सकता है. पके फलों में छेद बन जाना, अंदर का गूदा सड़ना और बाजार में फलों का दाम गिरना, ये सब फल मक्खियों की वजह से होता है. अगर सही समय पर रोकथाम न की जाए तो कई बार 30 से 70 प्रतिशत तक उत्पादन प्रभावित हो सकता है. किसानों के लिए यह आर्थिक नुकसान का बड़ा कारण बन जाता है. इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि फल वाली मक्खी क्यों होती है, इसके लक्षण क्या हैं और इसे नियंत्रित करने के प्राकृतिक तथा वैज्ञानिक तरीके कौन–से हैं.

फल वाली मक्खी कैसे फैलती है

गर्म और आर्द्र मौसम में फल मक्खियों की संख्या तेजी से बढ़ती है. ये पके या कच्चे फलों पर बैठकर उनमें बहुत छोटे–छोटे छेद करती हैं और उसी में अंडे छोड़ देती हैं. कुछ दिनों बाद ये अंडे लार्वा में बदल जाते हैं, जो फल के अंदर का नर्म हिस्सा खाकर उसे पूरी तरह सड़ा देते हैं. बाहर से कई बार फल सामान्य दिखाई देता है, लेकिन काटने पर वह अंदर से खराब निकलता है. ऐसे फल न तो बाजार में बिक पाते हैं और न ही लंबे समय तक सुरक्षित रखे जा सकते हैं.

प्राकृतिक और जैविक तरीके जो रोक सकते हैं प्रकोप

कई किसान कीटनाशकों का अधिक इस्तेमाल करते हैं, लेकिन वैज्ञानिक और जैविक तरीके भी उतने ही प्रभावी होते हैं. नीम के विभिन्न उत्पाद जैसे नीम तेल या नीम आधारित घोल, फल मक्खियों के अंडों को नष्ट करने में अच्छी भूमिका निभाते हैं. खेत में अनुकूल कीट, जैसे चींटियां और मकड़ियां, इन मक्खियों के अंडे और लार्वा को खाकर उनकी संख्या कम करती हैं.

इसके अलावा फलों को ढकना और बाग में साफ–सफाई बनाए रखना भी संक्रमण रोकने में मददगार होता है. गिरे हुए या सड़े हुए फलों को खेत में छोड़ देने से फल मक्खी की संख्या कई गुना बढ़ सकती है, इसलिए ऐसे फलों को तुरंत दबाकर या नष्ट करना आवश्यक है.

ट्रैप तकनीक

आजकल किसान फ्रूट फ्लाई ट्रैपिंग सिस्टम का काफी उपयोग कर रहे हैं. अगस्त से सितंबर के महीनों में इन ट्रैप का इस्तेमाल सबसे ज्यादा जरूरी होता है, क्योंकि यह फल मक्खियों के प्रजनन का चरम समय होता है. सामान्यतः एक एकड़ में 16 ट्रैप लगाने की सलाह दी जाती है. यदि क्षेत्र में संक्रमण अधिक हो तो 30 दिनों बाद फिर से ट्रैप लगाना अच्छा रहता है.

इन ट्रैप में आकर्षक गंध वाले पदार्थ होते हैं, जो फल मक्खियों को अपनी ओर खींचते हैं. जैसे ही मक्खी अंदर जाती है, वह वहीं फंस जाती है और दोबारा नुकसान नहीं पहुंचा पाती.

रासायनिक वैज्ञानिक नियंत्रण कब उपयोग करें

यदि संक्रमण बहुत बढ़ चुका हो, तब रासायनिक कीटनाशकों का सीमित और नियंत्रित उपयोग किया जाता है. लेकिन यह तभी करना चाहिए जब प्राकृतिक और ट्रैप तकनीक से समस्या नियंत्रित न हो पाए. फलों पर दवा का अवशेष न रहे, इसके लिए छिड़काव के बाद उचित समय का अंतराल रखना आवश्यक है. सही कीटनाशक और उचित मात्रा के लिए कृषि विशेषज्ञ या कृषि विज्ञान केंद्र की सलाह सबसे अच्छी मानी जाती है.

फल वाली मक्खी से होने वाले नुकसान

फल वाली मक्खी सिर्फ फलों को खराब नहीं करती, बल्कि किसान की पूरी आय को प्रभावित कर सकती है. बाजार में फलों की गुणवत्ता गिरने से उनकी कीमत कम मिलती है. कई बार पूरा बगीचा प्रभावित हो जाए तो हजारों–लाखों का नुकसान भी हो सकता है. फलों की मात्रा घटने से उत्पादन भी कम हो जाता है, जिसका सीधा असर किसान की आजीविका पर पड़ता है.

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