तेल की नदी बहाएगी मेंथा की ये किस्म, कम लागत में होगा छप्परफाड़ मुनाफा

मेंथा का उपयोग दवाइयों से लेकर टूथपेस्ट, क्रीम, परफ्यूम, तेल और आयुर्वेदिक उत्पादों तक में होता है. यही वजह है कि इसकी मांग बाजार में पूरे साल बनी रहती है. दूसरी ओर, इसकी खेती में लागत अपेक्षाकृत कम आती है और उत्पादन जल्दी मिल जाता है.

नई दिल्ली | Published: 29 Dec, 2025 | 11:46 AM

Mint farming: मेंथा की खेती आज किसानों के लिए सिर्फ एक पारंपरिक फसल नहीं रही, बल्कि यह कम समय में ज्यादा मुनाफा देने वाला एक बेहतरीन बिजनेस बन चुकी है. बदलते समय के साथ औषधीय और सुगंधित फसलों की मांग तेजी से बढ़ी है और इसी कारण मेंथा की खेती किसानों को नई आर्थिक ताकत दे रही है. खास बात यह है कि अगर सही किस्म का चयन कर लिया जाए, तो मेंथा की खेती से सचमुच “तेल की नदी” बहाई जा सकती है. ऐसी ही एक खास किस्म है, जिसे किसान अब “गोल्डन किस्म” के नाम से पहचानने लगे हैं.

मेंथा की खेती क्यों बन रही है फायदे का सौदा

मेंथा का उपयोग दवाइयों से लेकर टूथपेस्ट, क्रीम, परफ्यूम, तेल और आयुर्वेदिक उत्पादों तक में होता है. यही वजह है कि इसकी मांग बाजार में पूरे साल बनी रहती है. दूसरी ओर, इसकी खेती में लागत अपेक्षाकृत कम आती है और उत्पादन जल्दी मिल जाता है. किसान कम समय में फसल काटकर डिस्टिलेशन के जरिए तेल निकाल सकते हैं, जिससे नकद आमदनी भी जल्दी शुरू हो जाती है.

गोल्डन किस्म ने बदली मेंथा की खेती की तस्वीर

मेंथा की गोल्डन किस्म को किसान इसलिए पसंद कर रहे हैं क्योंकि यह अन्य किस्मों की तुलना में ज्यादा तेल देती है और इसकी गुणवत्ता भी काफी बेहतर मानी जाती है. इस किस्म के पौधे घने होते हैं, ऊंचाई अच्छी होती है और पत्तियां बड़ी व मोटी होती हैं. इन्हीं पत्तियों से ज्यादा मात्रा में खुशबूदार तेल निकलता है, जो बाजार में अच्छे दाम दिलाता है. गोल्डन किस्म की पत्तियों में तेल की मात्रा अधिक होने के कारण डिस्टिलेशन यूनिट वाले भी इसे प्राथमिकता देते हैं.

खेती के लिए कैसी हो जमीन और तैयारी

मेंथा की गोल्डन किस्म के लिए जल निकास वाली बलुई दोमट या मटियारी दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है. खेत की तैयारी के समय गहरी जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा बनाना जरूरी होता है. इसके बाद गोबर की अच्छी सड़ी खाद या वर्मीकम्पोस्ट मिलाने से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है. फसल के दौरान नियमित सिंचाई बहुत जरूरी होती है, क्योंकि मेंथा नमी पसंद करने वाली फसल है. संतुलित मात्रा में यूरिया, डीएपी और पोटाश देने से पौधों की बढ़वार और तेल की मात्रा दोनों में सुधार होता है.

फसल तैयार होने में कितना समय

गोल्डन किस्म की मेंथा की फसल लगभग 100 से 120 दिनों में तैयार हो जाती है. इस दौरान अगर देखभाल सही रही, तो पौधे तेजी से फैलते हैं और कटाई के समय भारी मात्रा में हरा पदार्थ मिलता है. कटाई के तुरंत बाद पत्तियों को डिस्टिलेशन के लिए भेजा जाता है, जिससे तेल की गुणवत्ता बनी रहती है.

पैदावार और मुनाफे का गणित

मेंथा की गोल्डन किस्म से एक हेक्टेयर क्षेत्र में औसतन 150 किलोग्राम या उससे अधिक तेल प्राप्त किया जा सकता है. बाजार में इसकी कीमत अच्छी रहती है, जिससे किसान एक सीजन में लाखों रुपये तक की कमाई कर सकते हैं. कम लागत, कम समय और लगातार मांग के कारण यह किस्म किसानों के लिए छप्परफाड़ मुनाफे का रास्ता खोल रही है.

किसानों के लिए सुनहरा मौका

अगर किसान पारंपरिक फसलों से हटकर कुछ नया करना चाहते हैं, तो मेंथा की गोल्डन किस्म एक शानदार विकल्प है. सही तकनीक, समय पर देखभाल और अच्छे बाजार संपर्क के साथ यह फसल किसानों की आमदनी को कई गुना बढ़ा सकती है. यही वजह है कि आज मेंथा की यह किस्म खेती की दुनिया में “गोल्डन” साबित हो रही है.

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