औषधीय गुणों के चलते मेंथा तेल की बढ़ती मांग ने मेंथा की खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकारों पर दबाव डाला है. वहीं, पहले से खेती कर रहे किसानों की शिकायत सूखाग्रस्त इलाकों में कम पैदावार और बेहतर क्वालिटी नहीं मिलने की रही है. गर्म इलाकों में मेंथा उगाने के लिए किसानों को मिट्टी में ज्यादा नमी बनाए रखने के लिए अधिक सिंचाई करनी पड़ती है. इस समस्या को दूर करने के लिए केंद्रीय औषधि एवं सगंध पौध संस्थान (सीमैप) के वैज्ञानिकों ने मेंथा उत्पादन के लिए खरीफ मिंट तकनीक विकसित की है.
10 साल की मेहनत रंग लाई
उत्तराखंड के पंतनगर में स्थित केंद्रीय औषधि एवं सगंध पौध संस्थान (सीमैप) के वैज्ञानिकों ने मेंथा उत्पादन के लिए खरीफ मिंट तकनीक विकसित की है. वैज्ञानिकों ने 10 वर्ष के अथक प्रयास से नई तकनीक खरीफ मिंट टेक्नोलॉजी विकसित करने में सफलता पाई हसै. इसके तकनीक के जरिए मानसूनी सीजन में होने वाली मेंथा की खेती अब कम सिंचाई वाले इलाकों या सूखाग्रस्त क्षेत्रों जैसे बुंदेलखंड, विदर्भ के किसान भी इसकी खेती आसानी से करके लाभ हासिल कर सकेंगे.
केंद्रीय औषधि एवं सगंध पौध संस्थान (सीमैप) के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. राकेश उपाध्याय ने प्रसार भारती से बातचीत में कहा कि संस्थान के वैज्ञानिकों ने मेंथा उत्पादन के लिए खरीफ मिंट तकनीक विकसित कर बड़ी सफलता हासिल की है. इस तकनीक से असिंचित क्षेत्रों में खेती को बढ़ावा मिलेगा. जबकि, किसानों की सिंचाई खपत कम होगी और सालभर में वे तीन फसलें ले सकेंगे.
टेक्नोलॉजी से मेंथा ऑयल प्रोडक्शन बढ़ेगा
प्रधान वैज्ञानिक ने कहा कि मेंथा की खेती की नई तकनीक की मदद से अब प्लांटिंग मैटेरियल के तौर पर जड़ों की जगह पौधे के ऊपरी हिस्से का इस्तेमाल किया जाएगा और इसे हाई डेंसिटी पॉली टनल में लगाया जाएगा. इस तकनीक से प्रति हेक्टेयर 150 से 180 लीटर मेंथा ऑयल का उत्पादन होगा और लागत कम होने से किसानों को अधिक लाभ मिलेगा. बता दें कि मेंथा ऑयल का बाजार में दाम 1200 रुपये से 1400 रुपये प्रति किलो तक में बिकता है.
उन्होंने कहा कि नई खरीफ मिंट तकनीक के जरिए हम किसानों की सबसे बड़ी समस्या और मेंथा उत्पादन बढ़ने में रोड़ा बनी दिक्कत को दूर करने में कामयाब हो रहे हैं. उन्होंने कहा कि मेंथा की जड़ ठंडे इलाके में बनती है और समस्या यह थी कि गर्म या कम सिंचाई वाले इलाके में इसकी खेती कैसे की जाए. नई तकनीक से यह समस्या हल हो जाती है. क्योंकि, जड़ हम ठंडे इलाके में उगाते हैं और अब पौधे के ऊपरी हिस्से को गर्म इलाके में रोपा जा सकता है.

ऊपर तस्वीर में लैब में काम करती कर्मचारी. नीचे सीमैप के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. राकेश उपाध्याय.
पौधे के ऊपरी हिस्से की होगी रोपाई
उन्होंने कहा कि पौधे का जो एरियल पार्ट यानी ऊपरी हिस्सा होता है उसकी कटिंग करके लगभग 6 इंच तक लेते हैं और उसकी रोपाई कर लेते हैं. 45-50 सेंटीमीटर गहराई और लगभग 30-45 सेंटीमीटर दूरी पर प्लांट लगाते हैं. उन्होंने कहा कि इसके बाद तय समय पर मेंथा फसल में पड़ने वाली खाद का छिड़काव किया जाता है और एक-दो निराई और एक गुड़ाई से फसल तैयार हो जाती है.
दो नई किस्मों से ज्यादा मिल रही उपज
प्रधान वैज्ञानिक ने कहा कि संस्थान ने मेंथा की दो नई किस्में सिम उन्नति और सिम क्रांति भी विकसित की हैं, जिन्हें खरीफ सीजन में अच्छी पैदावार के लिए उगाया जा सकता है. इन दोनों किस्मों को खरीफ मिंट तकनीक के जरिए ठंडे इलाकों के साथ ही गर्म और कम सिंचाई वाले इलाकों में भी उगाया जा सकता है. उन्होंने कहा कि इन किस्मों की अच्छी पैदावार होती है. किसान लगभग 150 से 160 किलोग्राम तक प्रति एकड़ तक उपज हासिल कर रहे हैं. साथ ही इसकी तेल की क्वालिटी भी बढ़िया होती है.