खेती में मेहनत तो किसान हमेशा करता है लेकिन अगर मेहनत के साथ टेक्नोलॉजी की थोड़ी मदद मिल जाए तो कमाई दोगुनी हो सकती है. बुवाई के पुराने तरीके अब धीरे-धीरे पीछे छूट रहे हैं और उनकी जगह ले रहे हैं आधुनिक कृषि यंत्र. ये मशीनें न केवल किसानों की मेहनत को कम करती हैं, बल्कि बीज की बचत, समय की कमी और उत्पादन में बढ़ोतरी का भी जरिया बन रही हैं. आइए जानते हैं कुछ ऐसे ही यंत्रों के बारे में जो बुवाई को आसान और कमाई को दोगुना बना रहे हैं.
सीड-कम-फर्टीड्रिल मशीन से बुवाई
सीड-कम-फर्टीड्रिल एक ऐसी मशीन है जो एक साथ बीज और उर्वरक की बुवाई करती है. इसकी सबसे खास बात यह है कि यह बीज को पंक्तियों में निश्चित दूरी और गहराई पर बोती है जिससे पौधों को बराबर पोषण मिलता है और बढ़िया वृद्धि होती है. इस मशीन के बैलों, पावर टिलर और ट्रैक्टर तीनों प्रकार के मॉडल उपलब्ध हैं. उत्तर प्रदेश सरकार के कृषि विभाग के मुताबिक, वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि इससे 15 से 20 प्रतिशत तक बीज की बचत होती है और उत्पादन में भी 12 से 15 प्रतिशत तक इजाफा होता है. इसके बाद फसल में हैण्ड-हो (हाथ से चलने वाला मशीन) द्वारा निराई-गुड़ाई भी आसान हो जाती है.
जीरो टिल-फर्टीसीड ड्रिल
धान की कटाई के तुरंत बाद गेंहूं की सीधी बुवाई के लिए जीरो टिल-फर्टीसीड ड्रिल बेहद कारगर मशीन साबित हो रही है. यह मशीन पिछले कई वर्षों से लगातार किसानों की मदद कर रही है. इसकी मदद से किसान प्रति एकड़ 1500 से 2000 रुपये तक की बचत कर सकते हैं. खरपतवार भी कम उगते हैं और गेंहूं के अलावा मटर व मसूर जैसी दलहनी फसलों की बुवाई भी इसी मशीन से संभव है. यह मशीन जमीन की ऊपरी परत को ज्यादा न बिगाड़ते हुए काम करती है, जिससे मिट्टी की उर्वरता भी बनी रहती है.
रोटा टिल ड्रिल
आधुनिक यंत्रों में ट्रैक्टर चालित रोटा टिल ड्रिल भी काफी मददगार है. यह एक ही बार में खेत की जुताई और बुवाई दोनों कार्य करता है जिससे समय और ईंधन दोनों की बचत होती है. वहीं आलू के लिए ट्रैक्टर चालित दो लाइन वाली बुवाई मशीन से मिट्टी चढ़ाने और बीज बोने का काम एक साथ हो जाता है. गन्ना बोने की मशीन भी अब ऐसी उपलब्ध है जो गन्ने के टुकड़ों को काटकर अपने आप नाली में बो देती है, जिससे बुवाई बेहद आसान और तेज हो जाती है.
चोंगा से भी हो सकती है सटीक बुवाई
फर्टी ड्रिल की अनुपलब्धता के समय किसान चोंगा का भी इस्तेमाल कर सकते हैं. चोंगा के माध्यम से बीज और उर्वरक को कूंडों में डालकर सटीक बुवाई की जा सकती है. छोटे किसानों के लिए यह तरीका अभी भी काफी कारगर है.