सिर्फ 2 महीने की मेहनत में लाखों की कमाई! जानिए फूलगोभी की खेती का सही तरीका

ठंड के दिनों में फूलगोभी की खेती किसान खूब करते हैं. लेकिन, अच्छे फूल के साथ अधिक पैदावार हासिल कर पाना चुनौती भरा होता है. लेकिन, अगर सही फॉर्मूले से खेती की जाए तो सिर्फ दो महीने की मेहनत से लाखों रुपए की कमाई की जा सकती है.

किसान इंडिया डेस्क
नोएडा | Updated On: 21 Dec, 2025 | 04:11 PM
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Cauliflower farming tips: अब ठंड की शुरू हो गई है और इस दौरान फूलगोभी की खेती करने से अच्छी पैदावार मिलती है. लेकिन, सही तरीका किसानों को अपनाना आना चाहिए. अगर सही फॉर्मूले का इस्तेमाल करते हुए फूलगोभी उगाई जाए तो सिर्फ दो महीने की मेहनत से लाखों रुपए की कमाई की जा सकती है.

फूलगोभी महत्वपूर्ण सब्जियों में से एक है. जो स्वादिष्ट होने के साथ-साथ हेल्थ के लिए भी फायदेमंद है. यह रबी और खरीफ दोनों मौसमों में उगाई जाने वाली प्रमुख सब्जियों में से एक है. इसकी अच्छी पैदावार के लिए सही किस्म, जलवायु, भूमि और प्रबंधन बहुत जरूरी है, जो ठंडी और आर्द्र जलवायु में अच्छे से उगाई जा सके. यह ठंडी जलवायु की फसल है. इसकी खेती करने के लिए ठंडी और आर्द्र जलवायु सबसे उत्तम होती है, इसलिए इसकी अच्छी पैदावार के लिए आदर्श तापमान 15 से 25 डिग्री सेल्सियस माना जाता है. जबकि, ज्यादा पैदावार के लिए स्नोबॉल वैरायटी की रोपाई की जाती है.

प्रो- ट्रे विधि से करें नर्सरी तैयार

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार प्रो- ट्रे विधि से नर्सरी तैयार करने पर पौधे अधिक स्वस्थ और समान आकार के होते हैं साथ ही पौधे का सर्वाइवल रेट भी अधिक रहता है. इससे बीज की खपत भी कम होती हैं. इन किस्म के बीज दर लगभग 350 से 400 ग्राम प्रति हेक्टेयर होती है और पैदावार भी बंपर होती है.

कैसे करें पौधों की रोपाई

इस विधि में कोकोपीट वर्मीकंपोस्ट और पर्लाइट/ प्रो मिक्स का इस्तेमाल किया जाता है. लगभग 22 से 25 दिन में पौधे रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं. रोपाई हमेशा ऊंची क्यारी पर और पंक्तियों में की जानी चाहिए. पंक्ति से पंक्ति की दूरी 60 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 40 से 45 सेंटीमीटर होनी चाहिए.

मल्चिंग और ड्रिप सिंचाई से बढ़ेगा फायदा

कृषि विशेषज्ञों ने आगे बताया कि किसान भाई यदि ड्रिप सिंचाई प्रणाली के साथ प्लास्टिक मल्चिंग अपनाते हैं, तो यह बहुत फायदेमंद साबित होता है. मल्चिंग दो प्रकार से की जाती है –

प्लास्टिक मल्चिंग (जैसे 20-30 माइक्रोन, सिल्वर कोटेड) एवं जैविक मल्चिंग (जैसे पुआल, फसल अवशेष). ड्रिप सिंचाई प्रणाली के साथ प्लास्टिक मल्चिंग से खरपतवार की वृद्धि कम होती है, सिंचाई की जरूरत घटती रहती है और मिट्टी में नमी लंबे समय तक बनी रहती है जबकि जैविक मल्चिंग मिट्टी में पोषक तत्व मिलाकर उसकी उर्वरता बढ़ाती है और कटाव रोकती है.

गोबर की खाद के साथ रासायनिक उर्वरक भी जरूरी

उर्वरक प्रबंधन के संदर्भ में आगे उन्होंने बताया कि रोपाई से पहले प्रति हेक्टेयर 20 से 25 टन अच्छे से सड़ी हुई गोबर की खाद डालने चाहिए साथ ही रासायनिक उर्वरक में 200 किलोग्राम नाइट्रोजन, 150 किलोग्राम फास्फोरस और 150 किलोग्राम पोटास की आवश्यकता होती है. इसके लिए किसान यूरिया सिंगल सुपर फास्फेट और म्यूरेट ऑफ पोटाश का उपयोग कर सकते हैं.

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Published: 21 Dec, 2025 | 04:11 PM
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