Dairy Farming : आज के समय में दूध की मांग तेजी से बढ़ रही है. गांव हो या शहर, हर जगह दूध और उससे बने उत्पादों की जरूरत पहले से कहीं ज्यादा है. ऐसे में किसान और पशुपालक खेती के साथ-साथ डेयरी फार्मिंग को भी आमदनी का मजबूत जरिया बना रहे हैं. अब तक ज्यादातर लोग यही मानते आए हैं कि भैंस ही ज्यादा दूध देती है, इसलिए मुनाफा भी उसी में है. लेकिन बदलते दौर में यह सोच धीरे-धीरे बदल रही है. कई ऐसी देशी गायों की नस्लें हैं, जो दूध उत्पादन में भैंसों को सीधी टक्कर दे रही हैं और खर्च भी कम पड़ता है.
भैंस नहीं, अब गाय भी दे रही भरपूर दूध
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, देशी गायों की सबसे बड़ी खासियत यह है कि ये भारतीय मौसम के हिसाब से ढली हुई होती हैं. इन्हें ज्यादा महंगा चारा नहीं चाहिए और बीमारियां भी कम लगती हैं. जहां भैंस के रखरखाव में पानी, चारा और देखभाल पर ज्यादा खर्च आता है, वहीं देशी गाय कम खर्च में अच्छा दूध देती हैं. यही वजह है कि अब कई किसान भैंस की जगह गाय पालने की ओर रुख कर रहे हैं. खास बात यह है कि देशी गायों का दूध सेहत के लिए भी ज्यादा फायदेमंद माना जाता है.
साहीवाल, गिर और हरियाणा-देशी नस्लों की ताकत
साहीवाल गाय को देश की सबसे ज्यादा दूध देने वाली देशी नस्लों में गिना जाता है. यह रोजाना करीब 15 से 25 लीटर तक दूध दे सकती है. इसका स्वभाव शांत होता है और यह गर्मी को आसानी से सहन कर लेती है. गिर गाय गुजरात की मशहूर नस्ल है, जिसकी पहचान लंबे कान और मुड़े हुए सींग हैं. यह 10 से 20 लीटर तक दूध देती है और इसका A2 दूध बाजार में अच्छे दाम पर बिकता है. वहीं हरियाणा नस्ल की गाय मजबूत शरीर वाली होती है. यह 10 से 15 लीटर दूध देती है और खेतों में काम के लिए भी उपयोगी मानी जाती है. यही वजह है कि छोटे किसान इसे ज्यादा पसंद करते हैं.
गोकुल योजना से मिल रहा किसानों को सहारा
देशी गायों को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने राष्ट्रीय गोकुल मिशन शुरू किया है. इस योजना का मकसद देशी नस्लों को बचाना और दूध उत्पादन बढ़ाना है. इसके तहत कृत्रिम गर्भाधान, सैक्स सॉर्टेड सीमेन और आईवीएफ जैसी तकनीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है. इससे किसानों को अच्छी नस्ल के बछड़े मिल रहे हैं और दूध देने की क्षमता भी बढ़ रही है. छोटे और सीमांत किसानों के लिए यह योजना किसी वरदान से कम नहीं है. कुछ किसान विदेशी गायों जैसे होल्स्टीन फ्रिजियन और जर्सी को भी पालते हैं. ये एक बार में 20 लीटर तक दूध दे सकती हैं, लेकिन इनके चारे, दवाइयों और देखभाल पर खर्च ज्यादा आता है. इसलिए हर किसान के लिए यह जरूरी नहीं कि विदेशी नस्ल ही फायदेमंद हो.