Sahiwal Cows : गायों में दूध उत्पादन बढ़ाना और बांझपन जैसी समस्याओं को दूर करना हमेशा से पशुपालकों के लिए बड़ी चुनौती रहा है. लेकिन अब देशी नस्ल की साहीवाल गायों के लिए यह समस्या बीते दिनों की बात हो सकती है. वैज्ञानिकों ने एक नई तकनीक के जरिए इस नस्ल में बड़ी उपलब्धि हासिल की है, जिससे न केवल गायों की उत्पादकता बढ़ेगी बल्कि देश में उच्च गुणवत्ता वाली देसी नस्लों का विस्तार भी तेजी से होगा.
बांझपन का समाधान और उत्पादकता में वृद्धि
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, नई तकनीक मल्टीपल ओव्यूलेशन और भ्रूण स्थानांतरण (MOET) की मदद से वैज्ञानिकों को साहीवाल गायों से कई भ्रूण प्राप्त करने में सफलता मिली है. इस प्रक्रिया में एक उच्च उत्पादक डोनर गाय से भ्रूण निकाला जाता है और इन्हें अन्य गायों में प्रत्यारोपित किया जाता है. इस तरह कम उत्पादक गायें भी श्रेष्ठ नस्ल के बछड़ों को जन्म दे सकती हैं. यह तकनीक गायों की प्रजनन क्षमता को बढ़ाने और बांझपन की समस्या को कम करने में बेहद कारगर साबित हो रही है.
कम समय में अधिक दुधारू गायें तैयार होंगी
यह तकनीक पशुधन सुधार के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी कदम है. इसके जरिए बहुत कम समय में साहीवाल नस्ल की बेहतरीन मादा गायों की संख्या बढ़ाई जा सकती है. वैज्ञानिकों का कहना है कि यह तरीका पारंपरिक प्रजनन की तुलना में 3 से 4 गुना तेज़ परिणाम देता है. खास बात यह है कि इस प्रक्रिया में किसी तरह की सर्जरी की जरूरत नहीं होती, जिससे गायों पर अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ता.
नई तकनीक से जन्मे स्वस्थ बछड़े
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, इस तकनीक के जरिए पहले ही कई स्वस्थ मादा बछड़ों का जन्म हो चुका है. ये बछड़े पूरी तरह से साहीवाल नस्ल के हैं और भविष्य में इन्हीं से उच्च गुणवत्ता वाले दूध उत्पादन की उम्मीद की जा रही है. यह तकनीक न केवल साहीवाल गायों के संरक्षण में मदद करेगी बल्कि देश में देसी नस्लों के पुनर्विकास को भी नई दिशा देगी.
देसी नस्ल साहीवाल की खासियतें
साहीवाल गाय को भारत की सबसे बेहतरीन देसी नस्लों में गिना जाता है. यह गाय अपनी गर्मी सहन करने की क्षमता, कम देखभाल में भी ज्यादा दूध देने और बीमारियों से लड़ने की ताकत के लिए जानी जाती है. सामान्य परिस्थितियों में साहीवाल गाय एक ब्यात में 2200 लीटर तक दूध दे सकती है, यानी रोजाना लगभग 10 से 16 लीटर दूध. इसकी दूध की गुणवत्ता भी बेहद समृद्ध होती है, जिसमें फैट की मात्रा अधिक होती है, जो इसे अन्य नस्लों से खास बनाती है.
भविष्य में पशुपालकों के लिए बड़ी उम्मीदें
विशेषज्ञों का मानना है कि यह तकनीक आने वाले समय में भारतीय पशुपालकों के लिए वरदान साबित होगी. इससे न केवल गायों की नस्ल सुधार होगी बल्कि किसानों की आमदनी में भी बड़ा इज़ाफा होगा. कम उत्पादक गायें अब उच्च गुणवत्ता वाले बछड़ों को जन्म देकर दूध उत्पादन बढ़ाने में मदद करेंगी. इससे दुग्ध उद्योग को नई मजबूती मिलेगी और भारत की पहचान एक दुग्ध महाशक्ति के रूप में और मजबूत होगी.