खाद्य तेल मिशन के तहत सरकार ने शुरू की नई योजनाएं, क्या खाने के तेल में आत्मनिर्भर बनेगा भारत?

वर्तमान में भारत अपनी जरूरत का करीब 57 प्रतिशत खाद्य तेल आयात करता है. सरकार का लक्ष्य अगले सात वर्षों में इसे घटाकर 28 प्रतिशत तक लाना है. इसके लिए तेलहन फसलों की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है, ताकि देश में ही ज्यादा मात्रा में सरसों, सोयाबीन, मूंगफली और सूरजमुखी जैसे तेल बीज पैदा हो सकें.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 24 Dec, 2025 | 10:13 AM
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Edible oils mission: देश में खाने के तेल की बढ़ती कीमतें और आयात पर बढ़ती निर्भरता लंबे समय से सरकार के लिए चिंता का विषय रही हैं. इसी चुनौती से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन के तहत कई नई योजनाओं को जमीन पर उतारना शुरू कर दिया है. इन योजनाओं का मकसद सिर्फ उत्पादन बढ़ाना नहीं, बल्कि किसानों की आमदनी बढ़ाना, गांवों में रोजगार के नए अवसर पैदा करना और देश को खाद्य तेल के मामले में आत्मनिर्भर बनाना है.

आयात पर निर्भरता घटाने की बड़ी योजना

फाइनेंशियल एक्सप्रेस की खबर के अनुसार, वर्तमान में भारत अपनी जरूरत का करीब 57 प्रतिशत खाद्य तेल आयात करता है. सरकार का लक्ष्य अगले सात वर्षों में इसे घटाकर 28 प्रतिशत तक लाना है. इसके लिए तेलहन फसलों की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है, ताकि देश में ही ज्यादा मात्रा में सरसों, सोयाबीन, मूंगफली और सूरजमुखी जैसे तेल बीज पैदा हो सकें. सरकार का मानना है कि अगर घरेलू उत्पादन मजबूत हुआ तो विदेशी बाजारों के उतार-चढ़ाव का असर आम लोगों की थाली पर कम पड़ेगा.

बेहतर बीजों से बढ़ेगी पैदावार

कृषि मंत्रालय के अनुसार, इस बार 2025-26 के खरीफ और रबी सीजन में सोयाबीन, सरसों, सूरजमुखी और मूंगफली की नई किस्मों के बीज बड़े पैमाने पर किसानों तक पहुंचाए गए हैं. अब तक 11 लाख हेक्टेयर से ज्यादा क्षेत्र में इन उन्नत बीजों का इस्तेमाल शुरू हो चुका है. इससे बीज बदलने की दर बढ़ेगी और प्रति हेक्टेयर उत्पादन में सुधार आने की उम्मीद है. अच्छी क्वालिटी के बीज मिलने से किसानों को कीट और रोगों से भी कम नुकसान झेलना पड़ेगा.

गांवों में ही प्रोसेसिंग की व्यवस्था

सरकार का फोकस सिर्फ खेती तक सीमित नहीं है, बल्कि तेल निकालने और प्रोसेसिंग की व्यवस्था को भी गांवों के पास लाया जा रहा है. मिशन के तहत अब तक देशभर में 263 तेल निष्कर्षण इकाइयों को मंजूरी दी जा चुकी है. इनमें किसान उत्पादक संगठन, सहकारी समितियां और निजी संस्थाएं शामिल हैं. सरकार इन इकाइयों के लिए करीब 30 लाख रुपये की लागत पर 7 लाख रुपये तक की सब्सिडी दे रही है. इससे किसानों को अपनी उपज बेचने के लिए दूर नहीं जाना पड़ेगा और उन्हें बेहतर दाम मिल सकेंगे.

क्लस्टर मॉडल से खेती को नई ताकत

तेलहन उत्पादन बढ़ाने के लिए क्लस्टर मॉडल अपनाया गया है. देश के 500 जिलों में 1076 वैल्यू चेन क्लस्टर चिन्हित किए गए हैं, जो करीब 12.9 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करते हैं. इन क्लस्टरों में किसानों को एक हेक्टेयर तक मुफ्त उन्नत बीज दिए जा रहे हैं और खेती के आधुनिक तरीकों की ट्रेनिंग भी दी जा रही है. इससे खेती वैज्ञानिक ढंग से होगी और उत्पादन में स्थिरता आएगी.

सरकारी खरीद से किसानों को भरोसा

किसानों को बाजार की अनिश्चितता से बचाने के लिए सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद को भी मजबूत किया है. 2024-25 में पीएम-आशा योजना के तहत करीब 1.99 मिलियन टन सोयाबीन, 1.77 मिलियन टन मूंगफली और 0.5 मिलियन टन सरसों की सरकारी खरीद की गई. इससे किसानों को यह भरोसा मिला है कि उनकी फसल का उचित दाम जरूर मिलेगा.

गर्मी में भी उगेंगी तेलहन फसलें

तेल उत्पादन बढ़ाने के लिए गर्मी के मौसम में भी तेलहन फसलों को बढ़ावा दिया जा रहा है. 2024-25 में गर्मी की फसल के रूप में 9.5 लाख हेक्टेयर में मूंगफली, सूरजमुखी और तिल की बुवाई की गई, जो पिछले साल से ज्यादा है. इससे सालभर उत्पादन बना रहेगा.

आत्मनिर्भरता की ओर मजबूत कदम

सरकार का लक्ष्य 2030-31 तक तेलहन उत्पादन को 3.9 करोड़ टन से बढ़ाकर करीब 7 करोड़ टन तक ले जाना है. इसके साथ ही खाद्य तेल उत्पादन 12.5 मिलियन टन से बढ़कर 20 मिलियन टन से ज्यादा होने की उम्मीद है. अगर यह लक्ष्य पूरा होता है तो न सिर्फ आयात पर खर्च कम होगा, बल्कि किसानों की आय और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी बड़ी मजबूती मिलेगी.

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