एक देश, एक लाइसेंस’ की मांग पर अड़े फर्टिलाइजर निर्माता, बोले- दवाई से ज्यादा हम पर नियम लागू

देशभर में एक ही उत्पाद के लिए अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग लाइसेंस लेना पड़ता है. कंपनियों को हर राज्य में डिपो बनाना पड़ता है, जिससे उत्पाद की लागत बढ़ती है और इसका बोझ सीधे किसानों पर पड़ता है.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 4 Jul, 2025 | 10:11 AM

भारत में किसानों की जरूरतों को पूरा करने वाले सूक्ष्म उर्वरकों की मांग तो बढ़ रही है, लेकिन इन उत्पादों को बनाने वाली कंपनियां खुद सरकारी नियमों के बोझ तले दबी हुई हैं. हर राज्य के लिए अलग-अलग लाइसेंस, दर्जनों निरीक्षण और जरा-सी गलती पर सख्त सजा… इन्हीं परेशानियों को लेकर अब माइक्रो फर्टिलाइजर कंपनियां सरकार से “वन नेशन, वन लाइसेंस” की मांग कर रहे हैं.

पुराने कानून में आज की जरूरतों का बोझ!

बिजनेस लाइन की खबर के अनुसार इंडियन माइक्रो फर्टिलाइजर मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (IMMA) और सॉल्युबल फर्टिलाइजर इंडस्ट्री एसोसिएशन (SFIA) के प्रतिनिधियों ने सरकार के सामने अपनी समस्याएं खुलकर रखीं. IMMA के अध्यक्ष राहुल मिर्चंदानी ने कहा, “फर्टिलाइजर कंट्रोल ऑर्डर (FCO) अपने वक्त में जरूरी था, लेकिन आज यह आउटडेटेड हो चुका है. अब हमें ‘कंट्रोल’ से ‘मैनेजमेंट’ की तरफ बढ़ना होगा, जैसे FERA से FEMA हुआ.”

हर राज्य में अलग लाइसेंस क्यों?

राहुल मिर्चंदानी ने बताया कि देशभर में एक ही उत्पाद के लिए अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग लाइसेंस लेना पड़ता है. कंपनियों को हर राज्य में डिपो बनाना पड़ता है, जिससे उत्पाद की लागत बढ़ती है और इसका बोझ सीधे किसानों पर पड़ता है. 2025 में देश में 6.35 लाख टन सूक्ष्म पोषक तत्वों की खपत हुई, लेकिन इस पर 8 से 15 फीसदी अतिरिक्त लागत सिर्फ नियामक जटिलताओं की वजह से आई.

खपत बढ़ रही, लेकिन निरीक्षण की तलवार लटकी है

पोषक तत्वों की खपत भारत में तेजी से बढ़ रही है. खासकर चिलेटेड और इनर्ट उर्वरक जो अनाजों और अनाज वाली फसलों में खूब इस्तेमाल हो रहे हैं. लेकिन उद्योग जगत की मानें तो ये तरक्की कई सरकारी बाधाओं से धीमी हो रही है. हर महीने निरीक्षण, बार-बार उत्पाद रजिस्ट्रेशन और छोटे-छोटे लेबलिंग में त्रुटियों पर आपराधिक धाराएं लगाना, इन सबसे अब उत्पादक थक चुके हैं.

“हमसे ज्यादा निगरानी तो दवाओं पर भी नहीं होती”

खबर के अनुसार SFIA के अध्यक्ष रजीब चक्रवर्ती ने कहा, “भारत में खाद उद्योग सबसे ज्यादा निरीक्षण वाला क्षेत्र बन गया है. दवा, फार्मा और खाद्य उद्योग में भी इतनी सख्ती नहीं है. यह उद्योग के प्रति सरकारी अविश्वास को दिखाता है. चीन जैसे देशों से मुकाबला करना है तो पहले अपने नियम सरल करने होंगे.”

क्या चाहते हैं उर्वरक निर्माता?

  • पूरे देश में मान्य एक ही लाइसेंस
  • राज्यों में बिक्री के लिए अलग-अलग अनुमति की अनिवार्यता समाप्त हो
  • हर उत्पाद के लिए केंद्रीय डिजिटल रजिस्ट्री
  • स्थानीय अधिकारियों के अनावश्यक हस्तक्षेप पर रोक

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