गांवों में रहने वाले पशुपालकों को अपने मवेशियों के इलाज के लिए इधर-उधर भटकना न पड़े, इसके लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने पशुचिकित्सा सेवाओं को सीधे ग्रामीण दरवाजे तक पहुंचाने की एक बड़ी पहल की है. पशुचिकित्सालयों एवं पशु सेवा केंद्रों को सुदृढ़ करने के लिए प्रदेश भर में मोबाइल वेटेरिनरी यूनिट (एम.वी.यू.) चलाई जा रही हैं. इस योजना को भारत सरकार की अंब्रेला स्कीम ‘पशुधन स्वास्थ्य एवं रोग नियंत्रण योजना’ के तहत शामिल किया गया है. इसके लिए सरकार की तरफ से टोल-फ्री नंबर 1962 जारी किया गया है, जिस पर कॉल करने पर यूनिट को गांव में भेजा जाएगा.
मोबाइल वेटेरिनरी यूनिट
मोबाइल वेटेरिनरी यूनिट (एम.वी.यू.) के माध्यम से अब गांवों में न केवल प्राथमिक चिकित्सा, बल्कि लघु शल्य चिकित्सा, रोग जांच और पैथोलॉजी जैसी सेवाएं भी मुहैया कराई जाएंगी. इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि राज्य के दूरदराज इलाकों में रहने वाले पशुपालकों को समय पर और आधुनिक पशु स्वास्थ्य सेवाएं मिल सकें. इसके लिए पशुपालक 1962 टोल-फ्री नंबर डायल करके इस सेवा का लाभ उठा सकते हैं. इस योजना के माध्यम से गांव स्तर पर ही जानवरों में फैलने वाली बीमारियों की पहचान और इलाज संभव होगा.
एक लाख कैटल पर एक मोबाइल यूनिट
इस योजना के तहत प्रति एक लाख कैटल (गाय और भैंस) पर एक मोबाइल वेटेरिनरी यूनिट (एम.वी.यू.) की स्थापना की जाएगी. उत्तर प्रदेश में कुल 520.37 लाख कैटल होने के चलते राज्य में 520 मोबाइल यूनिट्स शुरू करने का लक्ष्य तय किया गया है. सरकार का प्रयास है कि जिलों में पशुधन की संख्या के आधार पर 2 से लेकर 13 तक मोबाइल यूनिट्स तैनात की जाए, जिससे हर इलाके में समय पर पशुचिकित्सा सेवाएं सुनिश्चित हो सकें.
पूरे प्रदेश को 5 पैकेज में बांटा गया
मोबाइल वेटेरिनरी यूनिट योजना के सुचारु क्रियान्वयन के लिए उत्तर प्रदेश को पांच अलग-अलग पैकेज में बांटा गया है.
- पैकेज ए- कानपुर, लखनऊ और झांसी मंडल
- पैकेज बी- चित्रकूट, मिर्जापुर, वाराणसी और प्रयागराज मंडल
- पैकेज सी- आज़मगढ़, गोरखपुर, बस्ती, देवीपाटन और अयोध्या मंडल
- पैकेज डी- आगरा, अलीगढ़ और बरेली मंडल
- पैकेज ई- मेरठ, सहारनपुर और मुरादाबाद मंडल
इन क्षेत्रों में सेवा प्रदाता संस्थाओं के माध्यम से भारत सरकार और राज्य सरकार की निगरानी में योजना का संचालन किया जाएगा.
कई स्तरों पर फायदा
मोबाइल वेटेरिनरी यूनिट्स से न केवल पशुपालकों को त्वरित सहायता मिलेगी, बल्कि इससे पशुधन उत्पादन में भी बढ़ोतरी होगी. इसके साथ ही पशुपालकों की आय में इजाफा होगा और पशुपालन व्यवसाय और अधिक व्यवस्थित और लाभदायक बनेगा.