रबी सीजन में यूरिया–डीएपी की बिक्री दोगुनी, क्या किसानों तक समय पर पहुंच पाएगी खाद?
नवंबर की शुरुआत में ही यूरिया और डीएपी की बिक्री दोगुनी हो चुकी है, जिससे संकेत मिलते हैं कि किसानों की जरूरतें सरकार के अनुमान से कहीं आगे निकल रही हैं. ऐसी स्थिति में देशभर में खाद की सप्लाई सुचारू बनाए रखना सरकार के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है.
Rabi season: भारत में रबी सीजन की तैयारियां इस बार पहले से ज्यादा तेज नजर आ रही हैं. खेतों में गेहूं, सरसों और चने की बुवाई जोरों पर है, और इसी के साथ खाद की मांग अचानक कई गुना बढ़ गई है. नवंबर की शुरुआत में ही यूरिया और डीएपी की बिक्री दोगुनी हो चुकी है, जिससे संकेत मिलते हैं कि किसानों की जरूरतें सरकार के अनुमान से कहीं आगे निकल रही हैं. ऐसी स्थिति में देशभर में खाद की सप्लाई सुचारू बनाए रखना सरकार के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है. बढ़ती मांग, सीमित स्टॉक और विभागों के बीच तालमेल की कमी, इन सबके बीच सवाल यह है कि क्या भारत समय पर किसानों तक खाद पहुंचा पाएगा?
यूरिया और डीएपी की मांग में तेज उछाल
इस साल रबी की बुवाई ने जैसे ही रफ्तार पकड़ी, खाद की मांग भी उम्मीद से कहीं अधिक बढ़ गई. नवंबर के पहले ही सप्ताह में यूरिया और डीएपी की बिक्री ने पिछले साल के रिकॉर्ड को लगभग दोगुना पार कर लिया है. इससे साफ दिख रहा है कि किसान इस बार गेहूं और अन्य रबी फसलों की बुवाई पहले और तेजी से कर रहे हैं.
1 से 7 नवंबर के बीच यूरिया की बिक्री 6.18 लाख टन तक पहुंच गई, जबकि पिछले साल इसी अवधि में यह केवल 2.58 लाख टन थी. इसी तरह डीएपी की बिक्री भी 1.43 लाख टन से बढ़कर 3.49 लाख टन हो गई. एमओपी और कॉम्प्लेक्स खाद की खपत में भी बढ़ोतरी दर्ज की गई है.
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर मांग की यह गति आगे भी जारी रही, तो नवंबर और दिसंबर जैसे महत्वपूर्ण महीनों में खाद की सप्लाई बनाए रखना सरकार के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है.
मौजूदा स्टॉक और मांग में असंतुलन
नवंबर की शुरुआत में खाद का स्टॉक कुछ इस तरह था—
यूरिया: 50.54 लाख टन, जबकि पिछले साल 68.16 लाख टन था
डीएपी: 19.05 लाख टन, जो पिछली बार से ज्यादा
कॉम्प्लेक्स और एमओपी का स्टॉक भी पर्याप्त बताया गया, हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि यूरिया का शुरुआती स्टॉक मांग की तुलना में कम हो सकता है, क्योंकि इस महीने यूरिया की कुल अनुमानित आवश्यकता 43.54 लाख टन है. नई सप्लाई और आयात से उपलब्धता बढ़ेगी, लेकिन मांग की रफ्तार देखते हुए किसी भी देरी से समस्या आ सकती है.
समन्वय की कमी से मुश्किलें बढ़ी
कृषि और उर्वरक मंत्रालय के बीच समन्वय की कमी भी एक बड़ी चिंता बताई जा रही है. पिछले खरीफ सीजन में भी कई राज्यों में खाद की कमी दर्ज की गई, जिसका मुख्य कारण कहा गया कि दोनों मंत्रालयों ने एक-दूसरे के साथ सही समय पर आवश्यक आंकड़े साझा नहीं किए.
विशेषज्ञों का मानना है कि फसल के रुझान, बुवाई का क्षेत्र, किसानों की खरीद रणनीति, इन सभी पर पहले से अध्ययन और योजना बनाना जरूरी है, ताकि अचानक मांग बढ़ने पर असंतुलन न बने.
गेहूं की बुवाई में रिकॉर्ड तेजी
इस बार रबी सीजन की शुरुआत बेहद मजबूत रही है. सभी फसलों का कुल रकबा पिछले साल की तुलना में 27% ज्यादा हो चुका है, लेकिन सबसे बड़ी उछाल गेहूं की खेती में दिख रही है. इस साल अब तक 22.7 लाख हेक्टेयर में गेहूं बोया जा चुका है, जबकि पिछले साल इसी समय यह आंकड़ा केवल 10 लाख हेक्टेयर था.
पिछले साल किसानों को गेहूं के अच्छे दाम मिले थे और कई राज्यों में धान की कटाई समय पर पूरी हो गई थी. यही वजह है कि किसान बड़ी संख्या में फिर से गेहूं की ओर लौटे हैं. इसकी सीधी वजह से यूरिया और डीएपी की मांग अचानक बढ़ गई है.
पिछले रबी सीजन की यादें अब भी ताजा
पिछले साल भी नवंबर–दिसंबर में कई राज्यों ने यूरिया और डीएपी की कमी की शिकायत की थी. किसानों को स्टोर पर लंबी कतारों में लगना पड़ा, जबकि कुछ जगहों पर कालाबाजारी भी देखी गई. इसी वजह से इस बार सरकार ने पहले से निगरानी बढ़ा दी है.
खाद सप्लाई की निगरानी तेज
उर्वरक मंत्रालय ने बताया कि अप्रैल से अब तक देशभर में 3,17,054 छापे और निरीक्षण किए जा चुके हैं—
- 5,119 शो कॉज नोटिस
- 3,645 लाइसेंस रद्द/निलंबित
- 418 एफआईआर दर्ज
सरकार का दावा है कि इस सख्ती से कालाबाजारी और जमाखोरी पर काफी हद तक रोक लगी है.