ग्रामीण भारत में महिला सशक्तिकरण की मिसाल बना मनरेगा, दस साल में 58 फीसदी हुई बढ़ोतरी

मनरेगा की शुरुआत से ही महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा दिया गया. नतीजा यह है कि साल दर साल इसमें सुधार देखने को मिला है. 2013-14 में जहां यह दर 48 फीसदी थी, वहीं 2024-25 में यह बढ़कर 58.15 फीसदी हो गई.

नई दिल्ली | Published: 28 Aug, 2025 | 09:33 AM

ग्रामीण भारत की अर्थव्यवस्था लगातार बदलाव के दौर से गुजर रही है. खेतों से लेकर गांव की सड़कों और तालाबों तक, मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना) ने लोगों को न सिर्फ काम दिया है, बल्कि गांवों का चेहरा भी बदला है. वित्त वर्ष 2024-25 में इस योजना के तहत करीब 290 करोड़ से ज्यादा दिनों का रोजगार मिला. सबसे बड़ी बात यह है कि इसमें महिलाओं की भागीदारी बढ़कर 58 फीसदी से ज्यादा हो गई है. यानी आधे से अधिक कामकाज अब महिलाओं के हाथों में है.

महिलाओं की मजबूत मौजूदगी

मनरेगा की शुरुआत से ही महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा दिया गया. नतीजा यह है कि साल दर साल इसमें सुधार देखने को मिला है. 2013-14 में जहां यह दर 48 फीसदी थी, वहीं 2024-25 में यह बढ़कर 58.15 फीसदी हो गई. वित्त वर्ष 2024-25 में 440.7 लाख महिलाएं इस योजना से जुड़ीं. यह ग्रामीण महिलाओं के लिए आत्मनिर्भरता और आर्थिक सुरक्षा की बड़ी पहल है.

गांवों का बदलता चेहरा

मनरेगा के काम सिर्फ अस्थायी रोजगार तक सीमित नहीं हैं. इसके तहत बनने वाले तालाब, नहरें, जल-संरक्षण संरचनाएं और पौधारोपण परियोजनाएं लंबे समय तक गांवों को फायदा देती हैं.

उदाहरण के तौर पर, ईंट-पक्की नहर (brick-lined canal) बनने से बारिश का पानी खेतों तक पहुंचा, सिंचाई सुधरी और किसानों की आमदनी बढ़ी. केवल एक परियोजना से ही 1,134 मानव-दिवस का स्थानीय रोजगार सृजित हुआ. यानी, यह योजना मजदूरी से आगे बढ़कर स्थायी विकास और बेहतर आजीविका की गारंटी देती है.

बजट और नई पहलें

मनरेगा का बजट भी लगातार मजबूत होता गया है. 2013-14 में 33,000 करोड़ रुपये का बजट था. अब 2025-26 के लिए सरकार ने 86,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है, जो अब तक का सबसे बड़ा आवंटन है.

इसके साथ ही, मजदूरों की कौशल क्षमता बढ़ाने के लिए “प्रोजेक्ट उन्नति” (Project UNNATI) शुरू किया गया. इस पहल का मकसद है कि मजदूर सिर्फ मनरेगा पर निर्भर न रहें, बल्कि नए कौशल सीखकर खुद का रोजगार शुरू कर सकें या बेहतर वेतन वाली नौकरियों में जा सकें. अब तक लगभग 90,894 लोग इस प्रोजेक्ट से लाभान्वित हुए हैं.

पारदर्शिता और तकनीक का इस्तेमाल

मनरेगा में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने के लिए सरकार ने कई डिजिटल कदम उठाए हैं-

  • मजदूरी सीधे बैंक खातों में ट्रांसफर (eFMS) की जाती है.
  • Aadhaarआधारित भुगतान प्रणाली से 99 फीसदी से ज्यादा मजदूर जुड़े हैं.
  • Geo-tagging और मोबाइल ऐप्स के जरिए कामकाज की निगरानी होती है.
  • हर साल सोशल ऑडिट अनिवार्य किया गया है ताकि ग्रामीण खुद योजना की जांच कर सकें.

ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार का संकेत

दिलचस्प बात यह है कि मनरेगा नौकरियों की मांग धीरे-धीरे घट रही है. रिपोर्ट्स बताती हैं कि इसका कारण यह है कि अब गांवों में गैर-कृषि काम और रोजगार के अवसर बढ़ रहे हैं. यानी मजदूर अब सिर्फ मनरेगा पर निर्भर नहीं, बल्कि बेहतर विकल्प तलाश रहे हैं.

साथ ही, महंगाई में कमी और वेतन वृद्धि ने ग्रामीण परिवारों की बचत और खपत दोनों बढ़ाई है. इसका असर FMCG कंपनियों, दोपहिया वाहनों, कृषि उपकरणों और घरेलू सामान की मांग पर साफ दिख रहा है.