गुजरात की धरती पर फिर गरजी दहाड़, 5 साल में शेरों की संख्या में ऐतिहासिक बढ़त

इस बार की जनगणना में सबसे खास बात यह रही कि शेर अब केवल गिर के जंगलों तक सिमटे नहीं हैं. उन्हें अब सौराष्ट्र के सात जिलों के 358 स्थानों पर देखा गया. इसका मतलब है कि शेरों ने अब नए इलाकों को भी अपना घर बना लिया है.

नई दिल्ली | Published: 21 May, 2025 | 12:36 PM

शेर, जिसे हम ‘जंगल का राजा’ कहते हैं, अब पहले से कहीं ज्यादा संख्या में नजर आ रहा है. गुजरात के गिर और उसके आसपास के इलाकों में एशियाटिक शेरों (Asiatic Lions) की आबादी में बीते 5 सालों में शानदार बढ़ोतरी दर्ज की गई है. इसी का नतीजा है कि शेरों को गुजरात की सड़कों पर घूमते देखा जा सकता है. दरअसल, 2020 में इन शेरों की संख्या 674 थी, जो अब 2025 में बढ़कर 891 हो गई है. यानी 32.2 फीसदी की बढ़त, जो न सिर्फ राज्य बल्कि पूरे देश के लिए गर्व की बात है.

शेर अब जंगलों तक सीमित नहीं रहे

इस बार की जनगणना में सबसे खास बात यह रही कि शेर अब केवल गिर के जंगलों तक सिमटे नहीं हैं. उन्हें अब सौराष्ट्र के सात जिलों के 358 स्थानों पर देखा गया. इसका मतलब है कि शेरों ने अब नए इलाकों को भी अपना घर बना लिया है.

कुछ शेर जंगलों में घूमते नजर आए, तो कुछ खेतों के पास, बंजर जमीन में, यहां तक कि इंसानों की बस्तियों के नजदीक भी देखे गए. इससे यह साबित होता है कि शेरों की संख्या ही नहीं, उनकी रहने की जगह भी लगातार बढ़ रही है.

अमरेली बना शेरों का नया गढ़

इस बार के सर्वे में अमरेली जिला सबसे आगे निकला. यहां शेरों की सबसे बड़ी आबादी दर्ज की गई है- जिसमें वयस्क नर, मादा, किशोर और शावक शामिल हैं. शावकों की अच्छी संख्या बताती है कि प्रजनन दर भी बेहतर हो रही है और आने वाले वर्षों में संख्या और बढ़ सकती है.

इसके अलावा बर्दा वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी, जेतपुर, बाबरा-जसदान जैसे नए क्षेत्रों में भी शेर अब स्थायी रूप से रह रहे हैं, जिन्हें “सेटेलाइट पॉपुलेशन” कहा जा रहा है. यह बताता है कि शेर अब गिर के बाहर भी सुरक्षित महसूस कर रहे हैं.

सिर्फ संख्या नहीं, दायरा भी बढ़ा

शेरों की संख्या बढ़ना जितना जरूरी है, उतना ही जरूरी है उनका आवास क्षेत्र यानी उनकी रहने की जगह का फैलाव. 1990 में जहां ये शेर लगभग 6,600 वर्ग किमी क्षेत्र में रहते थे, वहीं 2025 तक यह क्षेत्र बढ़कर 35,000 वर्ग किमी हो चुका है.

यह विस्तार दिखाता है कि शेर अब ज्यादा जगह में घूम सकते हैं, शिकार कर सकते हैं और प्रजनन कर सकते हैं. यह सब मुमकिन हुआ है बेहतर संरक्षण नीति, वन विभाग की मेहनत, और स्थानीय लोगों के सहयोग से.

सरकार और लोगों की साझा जीत

यह बढ़ती संख्या सिर्फ आंकड़े नहीं हैं, यह भारत के वन्यजीव संरक्षण के लिए एक बड़ी जीत है. सालों से चल रहे प्रयास, जैसे बेहतर गश्त, अवैध शिकार पर सख्ती, और जागरूकता अभियानों ने मिलकर शेरों को सुरक्षित माहौल दिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्डलाइफ की बैठक में इस उपलब्धि की सराहना की गई और आगे की रणनीतियों पर भी चर्चा हुई.