अगर आप अपने दूधारू पशुओं के लिए पौष्टिक हरा चारा उगाना चाहते हैं तो बरसीम की खेती सबसे अच्छा विकल्प है. लेकिन बरसीन से अच्छा उत्पादन पाने के लिए कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है. इसमें सही मिट्टी का चयन, खेत की अच्छी तैयारी, समय पर बुवाई और बाद की देखभाल अहम भूमिका निभाते हैं. अगर ये सारी बातें सही तरीके से की जाएं तो बरसीन से दूधारू पशुओं को भरपूर पोषण मिलता है और पशुपालकों को हरे चारे की कमी नहीं होती.
कौन सी मिट्टी है बरसीम के लिए सबसे उपयुक्त
बरसीम की अच्छी पैदावार के लिए दोमट मिट्टी को सबसे बेहतर माना जाता है. इस मिट्टी में नमी और पोषण तत्वों का संतुलन सही रहता है जिससे पौधों की जड़ें मजबूत बनती हैं. अगर खेत की मिट्टी बहुत ज्यादा अम्लीय हो यानी उसमें एसिडिटी ज्यादा हो तो उसमें बरसीन की खेती नहीं करनी चाहिए क्योंकि इससे पौधों का विकास रुक सकता है. खेती शुरू करने से पहले मृदा परीक्षण करवाना फायदेमंद रहेगा ताकि सही खाद और सुधार कर सकें.
ऐसे करें खेत की तैयारी
खरीफ की फसल की कटाई के बाद खेत को तैयार करना जरूरी होता है. सबसे पहले मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करें ताकि जड़ें मिट्टी में अच्छे से फैल सकें. इसके बाद 2-3 बार देशी हल या हैरो चलाकर मिट्टी को भुरभुरी कर लें. बरसीम की बुवाई के लिए खेत को 4 से 5 मीटर चौड़ी क्यारियों में बांट देना चाहिए. इससे पानी की सिंचाई और निकासी दोनों आसानी से होती है. साथ ही खरपतवार नियंत्रण भी बेहतर रहता है.
बरसीम बुवाई का सही समय
बरसीम की बुवाई का सबसे सही समय अक्टूबर के मध्य से लेकर नवंबर के मध्य तक होता है यानी 15 अक्टूबर से 15 नवंबर के बीच. अगर बुवाई में देरी हो जाए तो फसल की बढ़वार कमजोर हो जाती है और कटाई की संख्या भी कम हो जाती है. समय पर बुवाई करने से पौधों की जड़ें गहरी जाती हैं और चारे की उपज भी भरपूर मिलती है.
पशुओं के लिए बेहद फायदेमंद
बरसीम में प्रोटीन, मिनरल्स और विटामिन की भरपूर मात्रा होती है जो दूधारू पशुओं के लिए बेहद फायदेमंद है. इसे खिलाने से दूध की मात्रा बढ़ती है और पशु लंबे समय तक स्वस्थ रहते हैं. साथ ही पाचन तंत्र भी दुरुस्त रहता है. ध्याने दें कि चारे को हमेशा ताजा और साफ-सुथरा खिलाना चाहिए ताकि उसमें किसी तरह का संक्रमण न हो.
देखभाल करते समय इन बातों का रखें ध्यान
बरसीम की अच्छी फसल के लिए समय-समय पर सिंचाई करते रहना चाहिए. पहली सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद करें और उसके बाद 15 से 20 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहें. इसके अलावा, खरपतवार पर नियंत्रण रखें और जरूरत पड़ने पर खेत में जैविक खाद का प्रयोग करें. इससे मिट्टी की उर्वरता भी बनी रहेगी और फसल की सेहत भी अच्छी रहेगी.