भारत में वन्यजीव संरक्षण की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम एक बार फिर सुर्खियों में है. अंतरराष्ट्रीय चीता दिवस के मौके पर कूनो नेशनल पार्क में बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा, आज मादा चीता वीरा और उसके दो 10 महीने के शावक खुले जंगल में छोड़े जाएंगे. यह सिर्फ तीन चीतों की रिहाई नहीं, बल्कि भारत की खोई हुई प्राकृतिक धरोहर को वापस पाने की एक लंबी यात्रा का नया अध्याय है. मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव आज इस महत्वपूर्ण पल के साक्षी बनेंगे.
कूनो में नई शुरुआत
कूनो नेशनल पार्क के अफसरों के मुताबिक, वीरा एक बेहद मजबूत और स्वस्थ मादा चीता है. उसके दोनों शावक भी अच्छे स्वास्थ्य में हैं और खुले जंगल में खुद को अनुकूल बनाने के लिए पूरी तरह तैयार हैं. इन्हें परौंद रेंज में छोड़ा जाएगा, जो पर्यटकों के लिए भी खुला है, इससे ‘चीता टूरिज्म’ को भी बढ़ावा मिलेगा. यह कदम चीतों की संख्या बढ़ाने के साथ-साथ भारत के वन्यजीव पर्यटन और संरक्षण कार्यक्रम को मजबूती देगा.
तीन साल पहले वापस लौटी थी भारत की ‘दौड़ती विरासत’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 17 सितंबर 2022 को अपने जन्मदिन पर कूनो में पहली बार चीतों को छोड़ा था. यह वही क्षण था जब भारत ने 70 साल बाद फिर से चीता को अपनी धरती पर जगह दी. नामीबिया से आए 8 चीतों से शुरू हुए इस सफर में आज कूनो और गांधी सागर अभयारण्य मिलकर कुल 32 चीतों का घर बन चुके हैं.
लेकिन यह कहानी इतनी सरल नहीं थी. एक समय पर भारत ने अपनी सबसे तेज दौड़ने वाली वन्य प्रजाति को पूरी तरह खो दिया था…
भारत में चीतों का अंत: एक दुखद इतिहास
वर्ष 1952 में भारत ने खुद को ‘चीता विलुप्त देश’ घोषित कर दिया. यह विलुप्ति किसी प्राकृतिक कारण से नहीं, बल्कि मानवी गतिविधियों के चलते हुई.
शिकार ने खत्म कर दिया चीता
स्वतंत्रता से पहले के दौर में राजा-महाराजे और अंग्रेज अधिकारी चीतों का शिकार अपने शौर्य और शौक का प्रतीक मानते थे. 1947 में महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने भारत के आखिरी तीन चीतों को मार गिराया, यह वह क्षण था जब भारत में चीता हमेशा के लिए खत्म हो गया.
इतिहासकार बताते हैं कि मुगल बादशाह अकबर के पास लगभग 9,000 पालतू चीते थे. लेकिन पालतू चीतों में प्रजनन की क्षमता बहुत कम होती है, जिसकी वजह से उनकी संख्या बढ़ नहीं सकी.
अंग्रेजों के दौर में लुप्त होने लगे चीते
ब्रिटिश शासन में चीतों पर संरक्षण की कोई नीति नहीं थी. अंग्रेजों को यह जीव उतना ‘रोमांचक’ नहीं लगता था, इसलिए उनका शिकार कम हुआ, लेकिन संरक्षण भी नहीं मिला. 20वीं सदी में जब संख्या बहुत कम हो गई, तब कुछ रियासतों ने अफ्रीका से चीतों को खरीदकर लाना शुरू किया. लेकिन भी यह प्रयोग टिकाऊ नहीं था और आखिरकार चीते भारत से गायब हो गए.
भारत में फिर दौड़ रहा है चीता
साल 2022 से शुरू हुए प्रोजेक्ट चीता ने इस खोए अध्याय को दोबारा लिखा है. नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से आए चीतों ने मध्य भारत के जंगलों में फिर से जीवन पाना शुरू किया. चूंकि भारत के वन्यजीव क्षेत्र और घास के मैदान चीतों के लिए बिल्कुल अनुकूल हैं, इसलिए विशेषज्ञों को उम्मीद है कि आने वाले वर्षों में इनकी संख्या तेजी से बढ़ेगी.
पार्क के ट्रैकिंग सिस्टम, निगरानी टीम, और सुरक्षा व्यवस्था को भी लगातार मजबूत किया जा रहा है ताकि ये चीते सुरक्षित रहें और जंगल के माहौल में पूरी तरह घुल-मिल सकें.
भारत ने फिर साबित किया—प्रकृति के लिए हमारा संकल्प मजबूत है
चीते सिर्फ एक जीव नहीं, भारत की जैव विविधता और प्राचीन पारिस्थितिकी का हिस्सा हैं. अंतरराष्ट्रीय चीता दिवस पर तीन चीतों की जंगल में रिहाई भारत की उसी खोई धरोहर को वापस पाने की दिशा में बड़ा कदम है. यह कहानी सिर्फ चीतों की नहीं, यह उस देश की कहानी है जो अपनी गलतियों से सीखकर प्रकृति को वापस अपनाना चाहता है.