झारखंड में आदिवासियों को मिली जमीन बेचने की छूट, जानिये क्या है शर्त?

TAC ने इस बात पर भी चर्चा की कि कोई आदिवासी व्यक्ति अधिकतम कितनी जमीन खरीद सकेगा और वह जमीन किस उद्देश्य से इस्तेमाल की जा सकती है. इसका मकसद यह सुनिश्चित करना है कि जमीन का दुरुपयोग न हो और आदिवासी समाज की आर्थिक स्थिति मजबूत बनी रहे.

Kisan India
नई दिल्ली | Updated On: 24 May, 2025 | 11:14 AM

झारखंड में आदिवासियों को लेकर एक बड़ा और ऐतिहासिक फैसला लिया गया है. अब आदिवासी अपनी जमीन बेच सकेंगे, लेकिन एक शर्त के साथ कि वो जमीन केवल किसी दूसरे आदिवासी को ही बेची जा सकेगी. यह फैसला राज्य की ट्राइबल एडवाइजरी कमेटी (TAC) की हालिया बैठक में लिया गया.

यह बदलाव आदिवासी समुदाय को जमीन से जुड़े अधिकारों में अधिक आजादी देने के इरादे से किया गया है. इसके लिए छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (CNT Act) में बदलाव की जरूरत होगी.

क्या है नया बदलाव?

20 मई 2025 को रांची में हुई ट्राइबल एडवाइजरी कमेटी (TAC) की बैठक में यह अहम फैसला लिया गया कि अब कोई भी आदिवासी व्यक्ति अपनी जमीन राज्य के किसी भी जिले में रहने वाले दूसरे आदिवासी को बेच सकता है. पहले यह अधिकार सिर्फ उसी थाना क्षेत्र के भीतर ही सीमित था. हालांकि, जमीन का मालिकाना हक अब भी सिर्फ आदिवासी समुदाय के भीतर ही रहेगा.

फायदा क्या होगा?

इस फैसले से आदिवासी समुदाय को अपनी जमीन के बेहतर उपयोग और खरीद-बिक्री में लचीलापन मिलेगा. कई बार जरूरत पड़ने पर जमीन बेचना जरूरी हो जाता है, और अब वो बिना कानूनी अड़चनों के ऐसा कर सकेंगे.

कितनी जमीन बेची जा सकती है?

TAC ने इस बात पर भी चर्चा की कि कोई आदिवासी व्यक्ति अधिकतम कितनी जमीन खरीद सकेगा और वह जमीन किस उद्देश्य से इस्तेमाल की जा सकती है. इसका मकसद यह सुनिश्चित करना है कि जमीन का दुरुपयोग न हो और आदिवासी समाज की आर्थिक स्थिति मजबूत बनी रहे. इसको लेकर एक प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है, जिस पर आगे नीति बनाई जाएगी.

राजनीतिक हलचल भी हुई

इस बैठक से पहले भी जमीन कानूनों में बदलाव की कोशिशें हो चुकी हैं. पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास की सरकार ने जब CNT और SPT कानूनों में संशोधन की कोशिश की थी, तो मौजूदा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन समेत कई दलों ने इसका विरोध किया था. उस समय आरोप था कि सरकार यह बदलाव उद्योगों के हित में करना चाहती थी. अब मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का कहना है कि यह फैसला पूरी तरह आदिवासी हितों को ध्यान में रखते हुए लिया गया है.

TAC क्या है?

ट्राइबल एडवाइजरी कमेटी (TAC) एक संवैधानिक संस्था है, जो संविधान की पांचवीं अनुसूची के तहत बनाई जाती है. इसका मकसद आदिवासी समुदाय से जुड़ी नीतियों और योजनाओं पर राज्यपाल को सलाह देना होता है. इसमें मुख्यमंत्री अध्यक्ष होते हैं और बाकी सदस्य आदिवासी समाज के नेता और विशेषज्ञ होते हैं.

आदिवासियों को क्या मिलेगा इससे?

  • अपनी जमीन को लेकर अधिकार और आत्मनिर्भरता बढ़ेगी
  • जरूरत के मुताबिक जमीन खरीद-बिक्री की सुविधा
  • आर्थिक रूप से मजबूती मिलने की संभावना
  • खासकर उन लोगों को फायदा जो अब शहरों में रहते हैं, और जमीन का खेती में उपयोग नहीं कर पाते

कुछ चिंताएं भी हैं

कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि अगर इस फैसले के लिए स्पष्ट और मजबूत नियम नहीं बनाए गए, तो जमीन के लेन-देन में हेराफेरी की आशंका बढ़ सकती है. इसलिए जरूरी है कि इस बदलाव को लागू करने से पहले पारदर्शी और स्पष्ट नियम बनाए जाएं, सख्त निगरानी व्यवस्था लागू की जाए और हर कदम पर आदिवासी समाज की राय और सहमति को प्राथमिकता दी जाए.

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Published: 24 May, 2025 | 11:12 AM

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