सस्ता, सुंदर और टिकाऊ: जूट की खेती बन सकती है किसानों की कमाई का नया रास्ता

जूट की खेती, मिट्टी की सेहत को नुकसान नहीं पहुंचाता, कम पानी मांगता है और बाजार तक पहुंचने में ज्यादा वक्त नहीं लेता. तो क्यों न इस बार कुछ नया किया जाए? जूट उगाकर न सिर्फ अपनी आमदनी बढ़ाएं, बल्कि पर्यावरण के लिए भी कुछ अच्छा करें.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 27 May, 2025 | 01:48 PM

अगर आप किसान हैं और अपनी आमदनी का कोई नया रास्ता देख रहे हैं, तो अब वक्त है पारंपरिक फसलों के दायरे से बाहर निकलने का. खेती के इस बदलते दौर में जूट, यानी “सुनहरा रेशा”, आपके खेतों और भविष्य दोनों के लिए फायदेमंद हो सकता है. जूट सिर्फ एक फसल नहीं, बल्कि कम लागत में ज्यादा मुनाफा देने वाली एक ऐसी संभावना है, जिसकी मांग बाजार में लगातार बनी हुई है.

सुनहरा रेशा जो सबके काम आता है

गांव के बाजार में जब भी कोई बोरे या मजबूत थैले खरीदने जाता है, या फिर किसी चटाई या रस्सी की बात होती है, तो जूट से बने सामानों की अहमियत समझ में आती है. यही वजह है कि इस फसल को “सुनहरा” कहा जाता है. ये वो रेशा है, जो आपके खेतों से निकलकर सीधे उद्योगों, बाजारों और घरेलू उपयोग तक पहुंचता है.

मिट्टी और जलवायु

जूट की सबसे खास बात ये है कि इसकी खेती करना ज्यादा जटिल नहीं है. अगर आपके खेत में मिट्टी दोमट या बलुई दोमट है, और थोड़ी-सी नमी बनी रहती है, तो आप बिना बड़ी सिंचाई व्यवस्था के भी जूट उगा सकते हैं. गर्म और आर्द्र जलवायु में यह फसल खूब फलती है. खासकर जब मानसून शुरू होता है, तब इसकी बुवाई सबसे ज्यादा लाभकारी मानी जाती है.

जूट की खेती कैसे करें

खेत में बीज बोने के लिए ज्यादा गहराई की जरूरत नहीं होती, सिर्फ 3 से 4 सेंटीमीटर में इसे लगाया जा सकता है. और हां, खेत की तैयारी थोड़ी सूझ-बूझ से करें, ताकि पौधे एक-दूसरे से सही दूरी पर रहें और अच्छे से पनपें. मार्च से मई के बीच अगर आपने बीज बो दिए, तो फिर लगभग 4 से 5 महीनों के भीतर, यानी 120 से 150 दिन में फसल तैयार हो जाती है. जैसे ही पौधों में फूल आने लगें, समझ लीजिए कि कटाई का समय आ गया है. सही समय पर कटाई से न सिर्फ रेशा अच्छा मिलेगा, बल्कि उत्पादन भी भरपूर हो सकता है.

जूट की प्रमुख किस्में

जूट की दो मुख्य किस्में हैं-कोरा जूट और देशी जूट. कोरा जूट ज्यादा उगाया जाता है क्योंकि इसका रेशा मजबूत होता है और यह भारी कामों के लिए उपयुक्त है. वहीं देशी जूट थोड़ी कम मात्रा में उगाया जाता है, लेकिन घरेलू और स्थानीय जरूरतों के लिए यह बेहद उपयोगी है. दोनों की अपनी-अपनी खासियतें हैं, और बाजार में इनकी मांग बनी रहती है.

जूट की बढ़ती मांग

आज के दौर में जब पर्यावरण को लेकर चिंता बढ़ रही है और प्लास्टिक का विकल्प खोजा जा रहा है, तब जूट से बनी चीजें लोगों को ज्यादा भा रही हैं. चाहे थैले हों, ग्रीन बैग्स, कालीन, या सजावटी सामान, हर जगह जूट का नाम है. इतना ही नहीं, कागज उद्योग में भी इसका अहम इस्तेमाल होता है. मतलब, एक फसल से कई रास्ते खुल जाते हैं, और यही तो हर किसान चाहता है.

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