किसानों की जेब को झटका.. धान के रेट में भारी गिरावट, 60 से गिरकर 35 रुपये किलो हुई कीमत

मदुरै में अधिक स्टॉक की वजह से खुले बाजार में करुप्पु कवुनी धान की थोक कीमतें 35 रुपये प्रति किलो से भी नीचे गिर गई हैं. मांग न होने और व्यापारी न मिलने के कारण सैकड़ों बोरी धान बिक नहीं पा रही हैं और गोदामों में ही पड़ी रह गई हैं.

Kisan India
नोएडा | Updated On: 28 Jul, 2025 | 06:59 PM

Karuppu Kavuni Paddy: तमिलनाडु के मदुरै जिले में ‘करुप्पु कवुनी’ धान का रकबा बढ़ने से मार्केट में इसकी उपलब्धता जरूरत से ज्यादा हो गई है. इससे कीमतों में गिरावट दर्ज की गई है. आमतौर पर 50 से 60 रुपये प्रति किलो बिकने वाला यह गहरे बैंगनी-काले रंग का धान अब मदुरै में सिर्फ 35 रुपये प्रति किलो बिक रहा है. ऐसे में किसानों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है. हालांकि, करुप्पु कवुनी चावल की कीमत अब भी 80 से 120 रुपये प्रति किलो के बीच बनी हुई है.

द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, यह धान आमतौर पर सांबा सीजन (सितंबर से जनवरी) में उगाया जाता है. लेकिन हाल के वर्षों में अधिक लाभ की उम्मीद में कई किसान इसे गर्मियों में भी उगाने लगे हैं. नतीजतन, बाजार में मांग कम हो गई है और किसानों व राइस मिल मालिकों को बड़ा नुकसान हुआ है. कृषि विपणन एवं कृषि व्यवसाय विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि मदुरै, विरुधुनगर और आसपास के जिलों से यह धान थिरुमंगलम नियंत्रित बाजार के जरिए और फार्मगेट डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से बेचा जा रहा है. फिलहाल बाजार में करुप्पु कवुनी धान की 1,600 पुरानी बोरी (हर एक बोरी 66 किलो की) और 200 नई बोरियों का स्टॉक मौजूद है.

इस वजह से कीमत में आई गिरावट

कृषि विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, अधिक स्टॉक की वजह से खुले बाजार में करुप्पु कवुनी धान की थोक कीमतें 35 रुपये प्रति किलो से भी नीचे गिर गई हैं. मांग न होने और व्यापारी न मिलने के कारण सैकड़ों बोरी धान बिक नहीं पा रही हैं और गोदामों में ही पड़ी रह गई हैं. ऐसे में किसान प्रतिनिधि एमएसके बक्कियनाथन ने राज्य सरकार से अपील की है कि जिस तरह सामान्य धान की खरीद की जाती है, उसी तरह करुप्पु कवुनी धान की भी सरकारी खरीद शुरू की जाए. उन्होंने कहा कि इस समय बाजार में मांग नहीं होने से किसान अपनी फसल नहीं बेच पा रहे हैं और उन्हें भारी नुकसान हो रहा है.

किसान के साथ व्यापारियों को भी नुकसान

तिरुचि के एक राइस मिल संचालक एस पार्थिबन के अनुसार, ऑफ-सीजन में की गई खेती के कारण धान की पारंपरिक रंगत और गुणवत्ता नहीं आ पाई है. इसलिए राइस मिल मालिकों की इसमें रुचि कम हो गई है. हमने यह धान महंगे दामों पर खरीदा था, लेकिन अब प्रोसेस्ड चावल कम दाम पर बेचना पड़ रहा है. उन्होंने राज्य सरकार से मांग की कि करुप्पु कवुनी धान की ऑफ-सीजन खेती पर नियंत्रण लगाया जाए, ताकि भविष्य में किसानों और व्यापारियों को ऐसे नुकसान से बचाया जा सके.

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Published: 28 Jul, 2025 | 06:55 PM

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