भारत में खरीफ फसलों की बुवाई इस साल अच्छी रही है और कुल रकबा सामान्य स्तर तक पहुंच चुका है. लेकिन अचानक हुई ज्यादा बारिश और बाढ़ ने किसानों की उम्मीदों पर पानी फेरना शुरू कर दिया है. कृषि मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के अनुसार, खरीफ फसलों का कुल रकबा लगभग 1,092.87 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया है, जो पिछले साल के मुकाबले करीब 3 फीसदी ज्यादा है. इसके बावजूद बाढ़ और लगातार बरसात से कई राज्यों में फसलें खराब होने की खबरें सामने आ रही हैं.
खरीफ फसल की स्थिति
बिजनेस लाइन की खबर के अनुसार, कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने फसल की मौजूदा स्थिति की समीक्षा की और बताया कि बुवाई का क्षेत्र सामान्य स्तर (लगभग 1,097 लाख हेक्टेयर) तक पहुंच गया है. सबसे ज्यादा बढ़त धान की बुवाई में हुई है.
धान: 431.96 लाख हेक्टेयर में बुवाई हुई है, जो पिछले साल से 6.6 फीसदी ज्यादा है.
दालें: कुल क्षेत्रफल 114.46 लाख हेक्टेयर तक पहुंचा. इसमें उड़द (6.3 फीसदी वृद्धि) और मूंग (0.4 फीसदी वृद्धि) बढ़े हैं, लेकिन अरहर (1.7 फीसदी कमी) पीछे रह गई है.
मोटे अनाज: 6.3 फीसदी बढ़कर 189.67 लाख हेक्टेयर तक पहुंचा. इसमें मक्का (11.8 फीसदी वृद्धि) सबसे आगे रहा, जबकि ज्वार और बाजरा लगभग पिछले साल जैसा ही है.
तेलहन: यहां कमी देखने को मिली है. सोयाबीन की बुवाई 4.2 फीसदी घटकर 120.28 लाख हेक्टेयर पर आ गई है. मूंगफली और सूरजमुखी का रकबा भी कम हुआ है.
कपास: 2.4 फीसदी घटकर 108.77 लाख हेक्टेयर रह गई है.
गन्ना: इस बार गन्ने का रकबा बढ़कर 57.31 लाख हेक्टेयर पहुंच गया है.
बाढ़ का असर और नुकसान
पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में बाढ़ और पानी भराव से फसलें बर्बाद हो रही हैं. शुरुआती रिपोर्टों के मुताबिक, पंजाब में ही करीब 6 लाख एकड़ क्षेत्र प्रभावित हुआ है. खेतों में धान की नर्सरी और दालों की फसल डूब गई है.
कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि वे खुद पंजाब का दौरा करेंगे और हालात का जायजा लेंगे. उन्होंने आश्वासन दिया कि प्रभावित किसानों को हर संभव मदद दी जाएगी.
किसानों की चिंता
हालांकि इस बार खरीफ फसल का क्षेत्रफल बढ़ा है, लेकिन ज्यादा बारिश और बाढ़ से होने वाला नुकसान किसानों को बड़ी आर्थिक परेशानी में डाल सकता है. खासकर धान और दाल जैसी संवेदनशील फसलें ज्यादा पानी सहन नहीं कर पातीं. दूसरी ओर, तेलहन और कपास जैसी नकदी फसलों में कमी किसानों की आमदनी को प्रभावित कर सकती है. यदि समय पर मौसम नहीं सुधरा और फसल को बचाने के उपाय नहीं किए गए तो किसानों पर कर्ज़ और घाटे का बोझ और बढ़ सकता है.