MP की तीन खास फसलें जल्द पाएंगी GI टैग, किसानों को मिलेगा बड़ा फायदा

जब किसी फसल या उत्पाद को GI टैग मिलता है, तो उसकी पहचान पक्की हो जाती है और खरीदारों को यह भरोसा हो जाता है कि वह उत्पाद असली है, शुद्ध है और पारंपरिक तरीके से तैयार किया गया है.

नई दिल्ली | Published: 17 May, 2025 | 12:33 PM

मध्यप्रदेश के किसानों के लिए एक शानदार खबर आई है. डिंडोरी जिले की तीन पारंपरिक और बेहद खास फसलें नागदमन मकुटकी, सिताही कुटकी, और बैंगनी अरहर, अब वैश्विक पहचान की ओर कदम बढ़ा रही हैं. इन फसलों को जल्द ही GI टैग (जियोग्राफिकल इंडिकेशन टैग) मिलने जा रहा है, जिससे इनकी पहचान न सिर्फ देशभर में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मजबूत होगी.

GI टैग क्या है और क्यों है जरूरी?

GI टैग एक तरह की सरकारी मुहर होती है, जो यह साबित करती है कि कोई उत्पाद एक खास भौगोलिक क्षेत्र से जुड़ा है और उसकी गुणवत्ता, स्वाद या खासियत उस इलाके की पहचान से जुड़ी हुई है. जब किसी फसल या उत्पाद को GI टैग मिलता है, तो उसकी पहचान पक्की हो जाती है और खरीदारों को यह भरोसा हो जाता है कि वह उत्पाद असली है, शुद्ध है और पारंपरिक तरीके से तैयार किया गया है.

डिंडोरी की ये तीनों फसलें बहुत ही अनोखी हैं और वर्षों से वहां के किसानों द्वारा खास तौर पर उगाई जाती रही हैं. इन फसलों में न सिर्फ स्वाद और पौष्टिकता है, बल्कि इनके पीछे एक समृद्ध सांस्कृतिक और पारंपरिक विरासत भी जुड़ी है. यही वजह है कि इन्हें GI टैग दिलाने की प्रक्रिया शुरू की गई है.

किसानों की आय में होगा इजाफा

राज्य के कृषि सचिव एम. सेल्वेन्द्रम ने हाल ही में एक बैठक में जानकारी दी कि इन फसलों को GI टैग के लिए परीक्षण हेतु भेजा जा चुका है. उनके अनुसार, जैसे ही ये फसलें GI टैग हासिल करेंगी, वैसे ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में इनकी मांग बढ़ेगी. इससे किसानों को अपनी फसलों के बेहतर दाम मिलेंगे और उनकी आमदनी में सीधा इजाफा होगा.

GI टैग मिलने का मतलब है कि अब इन फसलों को बाजार में उनकी खास पहचान मिलेगी और प्रतिस्पर्धा के इस दौर में वे अपनी अलग जगह बना सकेंगी. जब बाजार में कोई चीज अनूठी होती है और उसके पीछे प्रमाण होता है, तो उसकी कीमत भी स्वाभाविक रूप से बढ़ जाती है. इससे किसान आत्मनिर्भर बनेंगे और ग्रामीण अर्थव्यवस्था भी मजबूत होगी.

भविष्य की ओर एक मजबूत कदम

मध्यप्रदेश की इन पारंपरिक फसलों को GI टैग मिलने की दिशा में किया जा रहा यह प्रयास न केवल किसानों की आर्थिक स्थिति को सुधारेगा, बल्कि राज्य की सांस्कृतिक और कृषि पहचान को भी दुनिया के सामने लाएगा. यह एक ऐसा मौका है जब परंपरा और तकनीक साथ आकर किसानों को आत्मनिर्भर बनाने का काम कर रही हैं.