अब किसानों तक जल्दी पहुंचेगी नई कॉफी किस्में, उत्पादन और गुणवत्ता दोनों में होगा सुधार
नई किस्मों को जल्दी किसानों तक पहुंचाने के लिए CCRI अब आधुनिक तकनीकों का सहारा ले रहा है. संस्थान में आणविक प्रयोगशाला काम कर रही है, जहां जीन मैपिंग और जीन सुधार जैसी तकनीकों पर काम हो रहा है. टिश्यू कल्चर के जरिए भी बेहतर पौधे तैयार किए जा रहे हैं.
CCRI new coffee varieties: देश में कॉफी की खेती करने वाले किसानों के लिए आने वाला समय राहत भरा हो सकता है. बदलते मौसम, अनियमित बारिश, बढ़ती लागत और घटती पैदावार से जूझ रहे कॉफी उत्पादकों को अब नई और बेहतर किस्में जल्दी मिलने की उम्मीद है. कर्नाटक के चिकमगलूरु जिले के बालेहोन्नूर में स्थित Central Coffee Research Institute (CCRI) इस दिशा में तेजी से काम कर रहा है. संस्थान के अनुसंधान निदेशक डॉ. एम. सेंथिलकुमार का कहना है कि आने वाले वर्षों में कॉफी की नई किस्में किसानों तक पहले की तुलना में कम समय में पहुंचाई जाएंगी.
सौ साल पुराना संस्थान, आधुनिक चुनौतियों पर फोकस
CCRI इस समय अपने सौ साल पूरे होने का जश्न मना रहा है. यह दुनिया के सबसे पुराने कॉफी अनुसंधान संस्थानों में से एक है. यहां मौजूद कॉफी जीन बैंक दुनिया के सबसे बड़े जीन भंडारों में गिना जाता है. इसी जीन संपदा की मदद से वैज्ञानिक ऐसी किस्में विकसित कर रहे हैं, जो जलवायु बदलाव को झेल सकें, जिनकी पैदावार स्थिर रहे और जिनसे बनने वाली कॉफी का स्वाद भी बेहतर हो.
अब तक कई किस्में, अब और तेजी की तैयारी
बिजनेस लाइन की रिपोर्ट के अनुसार, डॉ. एम. सेंथिलकुमार बताते हैं कि अब तक CCRI ने 13 अरेबिका और तीन रोबस्टा किस्में किसानों को दी हैं. हाल ही में संस्थान ने दो नई अरेबिका किस्में पेश की हैं, जो किसानों की बड़ी समस्याओं को ध्यान में रखकर तैयार की गई हैं. इनमें से एक किस्म ऐसी है, जो अरेबिका कॉफी की सबसे खतरनाक कीट समस्या मानी जाने वाली व्हाइट स्टेम बोरर से काफी हद तक सुरक्षित है. कई इलाकों में हुए परीक्षणों में इस किस्म पर कीट का असर बेहद कम देखा गया, जिससे किसानों को रसायनों पर खर्च भी घटेगा.
दूसरी किस्म अभी विकास की प्रक्रिया में है और आने वाले समय में बीज के माध्यम से उगाने के लिए उपयुक्त हो जाएगी. वैज्ञानिकों का मानना है कि इससे किसानों को अच्छी पैदावार के साथ बेहतर गुणवत्ता भी मिलेगी.
जलवायु बदलाव से लड़ने की तैयारी
कॉफी की खेती पर जलवायु परिवर्तन का असर पूरी दुनिया में दिख रहा है. तापमान बढ़ने, बारिश के पैटर्न बदलने और सूखे की वजह से कई देशों में उत्पादन प्रभावित हुआ है. डॉ. सेंथिलकुमार के अनुसार भारत की कॉफी खेती कुछ मामलों में बेहतर स्थिति में है, क्योंकि यहां दो-स्तरीय छायादार खेती होती है, जो पौधों को तेज गर्मी से बचाती है. इसके अलावा भारत में अरेबिका और रोबस्टा दोनों तरह की कॉफी उगाई जाती है, जिससे जोखिम थोड़ा कम हो जाता है.
वैज्ञानिक तकनीक से तेजी आएगी
नई किस्मों को जल्दी किसानों तक पहुंचाने के लिए CCRI अब आधुनिक तकनीकों का सहारा ले रहा है. संस्थान में आणविक प्रयोगशाला काम कर रही है, जहां जीन मैपिंग और जीन सुधार जैसी तकनीकों पर काम हो रहा है. टिश्यू कल्चर के जरिए भी बेहतर पौधे तैयार किए जा रहे हैं. चूंकि कॉफी एक पेड़ वाली फसल है, इसलिए इसकी किस्मों को विकसित करने में समय लगता है, लेकिन नई तकनीकों से इस प्रक्रिया को तेज किया जा रहा है.
मशीनों और सहयोग से घटेगी लागत
कॉफी खेती में मजदूरी की लागत एक बड़ी चुनौती है. खासकर कटाई के समय मजदूरों की कमी किसानों को परेशान करती है. इसे देखते हुए CCRI देश के अन्य संस्थानों के साथ मिलकर ऐसी मशीनें विकसित कर रहा है, जो पहाड़ी और कठिन इलाकों में भी काम कर सकें. छायादार बागानों के लिए ड्रोन से छिड़काव जैसी तकनीकों पर भी प्रयोग चल रहे हैं.
किसानों तक जल्दी पहुंचेगा फायदा
डॉ. एम. सेंथिलकुमार का कहना है कि पहले जहां एक नई किस्म को आने में 15 से 18 साल तक का समय लग जाता था, वहीं अब यह अवधि कम होने की उम्मीद है. कई उन्नत किस्में पहले से ही खेतों में परीक्षण के दौर में हैं. जैसे-जैसे नई तकनीक और अनुभव जुड़ेंगे, वैसे-वैसे किसानों को ऐसी किस्में मिलेंगी जो ज्यादा उत्पादन देंगी, मौसम की मार झेल सकेंगी और बाजार में बेहतर दाम दिलाएंगी.