दुनिया में सबसे पहले किसने बांधी थी राखी? जानिए रक्षाबंधन की पौराणिक और ऐतिहासिक कथाएं

सावन की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला रक्षाबंधन का दिन सिर्फ एक धागा बांधने की रस्म नहीं, बल्कि दिलों को जोड़ने वाली अटूट डोर है. इस दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं और उनके अच्छे स्वास्थ्य और लंबी उम्र की दुआ करती हैं, वहीं भाई भी बहन की रक्षा का वादा करते हैं.

नई दिल्ली | Updated On: 9 Aug, 2025 | 08:33 AM

भारत में हर त्योहार अपने साथ एक खूबसूरत संदेश लेकर आता है, और रक्षाबंधन तो भाई-बहन के रिश्ते का सबसे प्यारा उत्सव है. सावन की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला यह दिन सिर्फ एक धागा बांधने की रस्म नहीं, बल्कि दिलों को जोड़ने वाली अटूट डोर है. इस दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं और उनके अच्छे स्वास्थ्य और लंबी उम्र की दुआ करती हैं, वहीं भाई भी बहन की रक्षा का वादा करते हैं.

लेकिन क्या आप जानते हैं, इस परंपरा की शुरुआत कैसे हुई? आइए जानते हैं, राखी से जुड़ी कुछ मशहूर पौराणिक और ऐतिहासिक कहानियां, जो आज भी इस त्योहार को खास बनाती हैं.

राजा बलि और देवी लक्ष्मी की कथा

कहा जाता है कि एक बार असुरराज बलि ने अपनी तपस्या से देवताओं तक को परेशान कर दिया. भगवान विष्णु वामन अवतार लेकर उसके पास पहुंचे और तीन पग भूमि मांगी. दो कदम में ही उन्होंने पृथ्वी और आकाश नाप लिया और तीसरे कदम के लिए बलि ने अपना सिर आगे कर दिया.

भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान ने बलि के साथ रहने का वादा किया. तब देवी लक्ष्मी ने साधारण महिला का रूप लेकर बलि को राखी बांधी और उपहार में विष्णु जी को अपने साथ ले जाने का आग्रह किया. बलि ने यह स्वीकार कर लिया. कहते हैं, यह दिन श्रावण पूर्णिमा का था और तभी से राखी की परंपरा शुरू हुई.

रानी कर्णावती और हुमायूं की कहानी

मध्यकाल में मेवाड़ की रानी कर्णावती ने गुजरात के सुल्तान के आक्रमण से बचने के लिए मुगल सम्राट हुमायूं को राखी भेजी. हुमायूं ने इसे सम्मान से स्वीकार किया और बहन का दर्जा दिया. हालांकि, उनके पहुंचने से पहले युद्ध हो चुका था, लेकिन बाद में उन्होंने चित्तौड़ की रक्षा कर रानी के बेटों को बचा लिया. यह कहानी भाई-बहन के रिश्ते में विश्वास और सम्मान का सुंदर उदाहरण मानी जाती है.

द्रौपदी और श्रीकृष्ण का बंधन

महाभारत के काल में द्रौपदी और श्रीकृष्ण का संबंध सिर्फ मित्रता का नहीं, बल्कि गहरे विश्वास और निष्ठा का प्रतीक था. कथा के अनुसार, एक बार श्रीकृष्ण की उंगली किसी कारणवश कट गई और रक्त बहने लगा. उस समय पास कोई कपड़ा या पट्टी नहीं थी. द्रौपदी ने बिना किसी संकोच के अपनी साड़ी का एक टुकड़ा फाड़कर उनकी उंगली पर बांध दिया. यह उनका सहज प्रेम और चिंता का भाव था.

श्रीकृष्ण इस स्नेह से अत्यंत भावुक हो उठे. उन्होंने द्रौपदी से वचन दिया कि जब भी उन्हें आवश्यकता होगी, वे उनकी रक्षा करेंगे. वर्षों बाद जब कौरव सभा में द्रौपदी का चीरहरण होने लगा, तो श्रीकृष्ण ने अपने दिव्य रूप से अनंत वस्त्र प्रदान कर उन्हें अपमान से बचाया.

यह प्रसंग हमें सिखाता है कि सच्चा संबंध केवल शब्दों से नहीं, बल्कि संकट की घड़ी में निभाए गए वचनों और निस्वार्थ भाव से किए गए कार्यों से मजबूत होता है. द्रौपदी और श्रीकृष्ण की यह कहानी आज भी दोस्ती, सम्मान और वचनपालन का अमर उदाहरण मानी जाती है.

Published: 9 Aug, 2025 | 08:32 AM