केंद्र सरकार ने 14 फसलों का मिनिमम सपोर्ट प्राइस (MSP) बढ़ाने का फैसला किया है, जिसमें रामतिल भी शामिल है. सरकार ने फसल सीजन 2025-26 के लिए रामतिल का एमएसपी 9537 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है. जबकि, फसल सीजन 2013-14 में इसका एमएसपी 6037 रुपये प्रति क्विंटल था. इसके साथ ही रामतिल को लेकर चर्चा शुरू हो गई है. क्योंकि बहुत से लोग खासकर शहरी युवाओं को रामतिल के बारे में जानकारी नहीं है. कुछ तो ऐसे लोग भी जो रामतिल का नाम पहली बार सुन रहे हैं. तो आइए आज जानते हैं क्या है रामतिल और कैसे होती है इसकी खेती.
दरअसल, रामतिल एक तिलहनी फसल है. इसका फूल सूरजमुखी की तरह पीला होता है. इसके फूल से बीज निकले हैं, जिससे तेल का उत्पादन होता है. ऐसे रामतिल का वैज्ञानिक नाम ‘गुइजोटिया एबिसिनिका’ है. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और आंध्र प्रदेश में किसान इसकी बड़े स्तर पर खेती करते हैं. इसके तेल का इस्तेमाल खाना बनाने और औषधीय दवाइयों के रूप में किया जाता है.
आदिवासी लोगों के लिए रामतिल है जीवन रेखा
खास कर आदिवासी किसान रामतिल की सबसे अधिक खेती करते हैं, क्योंकि यह उनके अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान रखता है. छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश से इसका निर्यात अमेरिका और यूरोप तक होता है. लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इसकी खेती और उत्पादन में भारी गिरावट आई है. ऐसे रामतिल में लगभग 40 फीसदी तेल होता है. इसे जैतून के तेल का अच्छा विकल्प माना गया है. आदिवासी रामतिल के लड्डू भी बनाते हैं. वहीं, रामतिल से तेल निकालने के बाद खली का इस्तेमाल मवेशियों के आहार के रूप में किया जाता है. इसकी खली में 40 फीसदी तक प्रोटीन की मात्रा होती है. इसके तेल से कॉस्मेटिक्स आइटम्स और परफ्यूम भी बनाए जाते हैं.
बंजर जमीन पर भी रामतिल का उत्पादन
रामतिल की खेती उपजाऊ और बंजर दोनों तरह की जमीन पर की जा सकती है. लेकिन इसकी खेती के लिए दोमट मिट्टी सबसे बेहतर मानी गई है. साथ ही मिट्टी का पीएच मान 5.8 से 7.5 के बीच होना चाहिए. आप जिस खेत में रामतिल की बुवाई कर रहे हैं, उसमें जलभराव नहीं होना चाहिए. इसलिए खेती शुरू करने से पहले खेत को अच्छी तरह से समतल कर लें और जल निकासी का प्रबंध भी बेहतर कर लें.
इस तरह तैयार करें खेत
अगर किसान रामतिल की खेती करना चाहते हैं, तो सबसे पहले खेत की अच्छी तरह से जुताई करें, ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए. इसके बाद पाटा चलाकर खेत को समतल कर लें. अगर आप चाहें, तो मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिए खेत में गोबर या कंपोस्ट का भी इस्तेमाल कर सकते हैं. बुवाई करते समय आपको 2 किलो प्रति एकड़ बीज की जरूरत पड़ेगी. लेकिन बुवाई करने से पहले रेत या वर्मी कंपोस्ट के साथ बीज का मिश्रण तैयार कर लें. इससे बीज जल्दी अंकुरित होते हैं और पोधों का ग्रोथ तेजी से होता है.
ये हैं रामतिल की उन्नत किस्में
ऐसे जेएनएस- 2016-1115, जेएनसी- 6, जेएनसी- 1, जेएनएस- 9, जेएनएस- 215-9, जेएनएस- 521, जेएनएस- 28 और जेएनएस- 30 और बीरसा नाईजर- 3 रामतिल की बेहतरीन किस्में हैं. ये किस्में रोगरोधी होती हैं. रामतिल की फसल को ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है. थोड़ी बहुत बारिश से ही इसकी सिंचाई हो जाती है. लेकिन लंबे समय तक बारिश नहीं होने या सूखे की स्थिति में ही किसान ट्यूबवेल से इसकी सिंचाई कर सकते हैं. अगर किसान ड्रिप सिंचाई पद्धति का इस्तेमाल करते हैं और अच्छा रहेगा. इससे पानी की बचत होती है और पोधों का संपूर्ण विकास होता है.
कब करें रामतिल की कटाई
रामतिल एक तरह की खरीफ फसल है. मॉनसून की पहली बारिश के बाद इसकी बुवाई की जाती है. करीब बुवाई के 105 से 110 दिन बाद इसकी फसल तैयार हो जाती है. इसकी पत्तियों के सूखने या काले होने पर ही किसान इसकी कटाई करें. अगर किसान रामतिल की उन्नत किस्म की बुवाई करते हैं, तो प्रति हेक्टेयर 700 से 1000 किलो उपज मिलेगी.