अश्वगंधा की खेती से हो सकती है 65 हजार तक कमाई, शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में कारगर

आयुर्वेद में अश्वगंधा को 'बलवर्धक' 'रसायन' और 'तनाव नाशक' के रूप से भी जानी जाती है. इसकी जड़ में पाई जाने वाली औषधीय तत्वों के कारण इसकी मांग देश के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी बढ़ गई है.

नोएडा | Published: 22 Aug, 2025 | 09:20 PM

आज के समय में किसान पारंपरिक फसलों की खेती के साथ-साथ औषधीय फसलों की खेती की तरफ भी अपना रुख कर रहे हैं. औषधीय फसलों की मांग बाजार में काफी ज्यादा होती है जिसके कारण किसानों को इन फसलों से होने वाले उत्पादन की अच्छी कीमत मिल जाती है. इस लिहाज से औषधीय फसलों की खेती किसानों के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकती है. इन्हीं औषधीय फसलों में से एक अश्वगंधा की फसल है.  आयुर्वेद में अश्वगंधा को ‘बलवर्धक’ ‘रसायन’ और ‘तनाव नाशक’ के रूप से भी जानी जाती है. इसकी जड़ में पाई जाने वाली औषधीय तत्वों के कारण इसकी मांग देश के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी बढ़ गई है. इसकी बढ़ती मांग के कारण ही आज के किसान अश्वगंधा की खेती बड़े पैमाने पर करने लगे हैं, और आज के समय में किसानों के लिए इसकी खेती लाभकारी ऑप्शन बनती जा रही है.

ऐसे करें खेत की तैयारी

अश्वगंधा की खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी या लाल रेतीली मिट्टी बेस्ट होती है जिसका pH मान 7 से 8 के बीच का होना चाहिए. इसकी खेती के लिए 20 डिग्री सेल्सियस से 30 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए. बता दें कि, अश्वगंधा की खेती के लिए कम बारिश वाले इलाके बेहतर होते हैं. अश्वगंधा की खेती के लिए जरूरी है कि किसान पहले खेत की अच्छे से 3 से 4 बार गहरी जुताई कर लें ताकि मिट्टी भुरभुरी हो सके. ध्यान रहे कि खेत की अंतिम जुताई के समय खेत में 10 से 15 क्विंटल गोबर की सड़ी हुई खाद प्रति एकड़ की दर से डालें. इसके बाद खेत को समतक कर उसमें 1.5 से 2 मीटर चौड़ी क्यारियां बनाएं ताकि खेत में जलभराव न हो.

बुवाई का समय और तरीका

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अश्वगंधा की खेती के लिए जुलाई से अक्टूबर का महीने सही होती है. बात करें इसकी बुवाई की तो इसकी बुवाई कतार में करनी चाहिए. बुवाई के समय ध्यान रखना होगा कि कतार से कतार के बीच 30 से 40 सेमी की दूरी होनी चाहिए. वहीं, पौधों से पौधों के बीच की दूरी 20 से 25 सेमी होनी चाहिए. खेत में करीब 1.5 से 2 मीटर गहराई में इसके बीज बोएं. बुवाई के करीब 20 से 25 दिन बाद खेत में पहली निराई-गुड़ाई का काम करें. बता दें कि, फसल चक्र के दौरान 2 से 3 बार खेत की निराई पर्याप्त होती है. वैसे तो अश्वगंधा की फसल को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती लेकिन फिर भी किसानो को ये सलाह दी जाती है कि वे 1 से 2 बार खेत की हल्की सिंचाई जरूर करें.

औषधीय गुणों से है भरपूर

अश्वगंधा में मौजूद औषधीय गुण इसे सेहत के लिए बेहद ही फायदेमंद बनाते हैं. इसके सेवन से शरीर के अंदर की सूजन कम होती है और यह कई तरीके की बीमारियों को जड़ से खतम करने में भी कारगर साबित होता है. इसके साथ ही ये वायरल और बैक्टीरिया से होने वाले संक्रमणों से भी लड़ने में मदद करता है. बता दें कि, अश्वगंधा में मौजूद कुछ पोषक तत्व शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद करता है. इसके अलावा अश्वगंधा के सेवन से मानसिक तनाव कम होता है और हार्मोन भी कंट्रोल में रहते हैं.

खेती से पैदावार और कमाई

अश्वगंधा की फसल बुवाई के करीब 150 से 180 दिन यानी 5 से 6 महीने में पककर तैयार हो जाती है. इसकी खुदाई का समय दिसंबर से जनवरी के बीच का होता है जब इसकी पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं. बात करें इसकी फसल से मिलने वाली पैदावार की तो इसकी प्रति एकड़ फसल से किसान 3 से 5 क्विंटल सूखी जड़ें प्राप्त कर सकते हैं. बाजार में अश्वगंधा की कीमत इस बात पर निर्भर करती है कि उत्पादन की क्वालिटी क्या है. अगर उत्पादन उन्नत क्वालिटी का है तो बाजार में इसक कीमत 80 से 120 रुपये प्रति किलोग्राम तक होती है. इस हिसाब से इसकी खेती करने वाले किसान प्रति एकड़ फसल से 25 हजार से 65 हजार तक की कमाई कर सकते हैं.

Published: 22 Aug, 2025 | 09:20 PM