भारत की खेती एक नए दौर में कदम रख रही है. किसानों के लिए एक बड़ी खुशखबरी आई है, अब चावल की ऐसी किस्में आ चुकी हैं जो कम पानी में ज्यादा उपज देंगी और मौसम के उतार-चढ़ाव का भी आसानी से सामना कर सकेंगी. जी हां, हाल ही में भारत ने दुनिया का पहला जीनोम-एडिटेड (Genome-edited) चावल लॉन्च किया है, जो खेती की दिशा और दशा बदलने का दम रखता है. तो चलिए जानते हैं कैसे ये धान किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है.
क्या है ये नई किस्म?
इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (ICAR) ने दो लोकप्रिय किस्मों सांबा महसूरी और MTU1010 को और बेहतर बनाने के लिए जीनोम एडिटिंग (GE) तकनीक का इस्तेमाल किया है. इस प्रोजेक्ट की शुरुआत 2018 में हुई थी और अब इसका नतीजा किसानों के सामने है.
इन नई किस्मों की खास बात ये है कि:
- ये कम पानी में भी अच्छी पैदावार देती हैं
- उपज 19-20 फीसदी तक बढ़ सकती है
- इन्हें उगाने में कम खाद और संसाधनों की जरूरत होती है
- ये कम मीथेन गैस छोड़ती हैं, जिससे पर्यावरण को भी राहत मिलती है
- इन्हें दक्षिण, मध्य और पूर्वी भारत के खेतों में आसानी से उगाया जा सकता है
ये खास चावल कैसे बने?
इन फसलों को तैयार करने में जिस तकनीक का इस्तेमाल हुआ है, उसका नाम है CRISPR-Cas. यह एक प्रकार का प्रोटीन है जो पौधे के DNA में बदलाव करता है यानी पौधे के अंदर ऐसे गुण जोड़े जाते हैं जो उसे ज्यादा ताकतवर बनाते हैं.
जीनोम एडिटिंग (GE) का मतलब है बिना किसी बाहरी जीन को जोड़े, पौधे की अपनी बनावट को थोड़ा सा एडजस्ट करना. इसलिए ये फसलें जेनेटिकली मॉडिफाइड (GM) फसलों से अलग होती हैं और अधिक सुरक्षित मानी जाती हैं.
क्या दूसरी फसलों में भी होगा इसका इस्तेमाल?
GE तकनीक पर अब दालों और तिलहनों (जैसे सरसों, सोया) के लिए भी काम हो रहा है. भारत सरकार ने इस पर ₹500 करोड़ रुपये खर्च करने का फैसला लिया है. इसका मकसद है भारत को दालों और तेलों के आयात पर निर्भरता से मुक्त करना.
आज भारत हर साल $20 बिलियन (लगभग 1.7 लाख करोड़ रुपये) सिर्फ दालों और तिलहनों के आयात पर खर्च करता है, जबकि वह खुद दुनिया का सबसे बड़ा चावल निर्यातक है.
क्या GE फसलें सुरक्षित हैं?
वैज्ञानिकों का कहना है कि GE फसलें खाने और पर्यावरण के लिहाज से लगभग उतनी ही सुरक्षित हैं जितनी पारंपरिक फसलें. इनमें कोई बाहरी जीन नहीं डाला गया है, सिर्फ पौधे की अपनी क्षमता को बढ़ाया गया है.