हरी पत्तेदार सब्जियों की मांग हर मौसम में बनी रहती है. इन्हीं में से एक है पालक जिसे पोषण का पावरहाउस भी कहा जाता है. पालक किसानों को अकसर कम पैदावार और कम कटान चरण मिलने की शिकायत रहती है. उनकी इस शिकायत को दिल्ली स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की नई पालक किस्म दूर कर देगी. संस्थान ने पूसा विलायती पालक किस्म को विकसित किया है, जो मैदानी और पहाड़ी दोनों क्षेत्रों के लिए उपयुक्त मानी जा रही है.
पूसा विलायती पालक खासियत
यह किस्म लोकल पालक और विदेशी वैरायटी वर्जीनिया सावॉय को मिलाकर तैयार की गई है. पुसा विलायती पालक की पत्तियां चिकनी, नर्म और हल्की नुकीली होती हैं, साथ ही डंठल भी काफी रसीला होता है. इसकी खासियत यह है कि यह तेजी से बढ़ती है और दो कटाई तक तैयार हो जाती है. एक हेक्टेयर में इसकी 12 टन तक की हरी पत्तियों की पैदावार होती है. इसकी खेती खास तौर से सर्दियों के लिए उपयुक्त मानी गई है.
खेती के लिए उपयुक्त मौसम और मिट्टी
पुसा विलायती पालक की बुवाई अक्टूबर के बाद शुरू की जा सकती है, हालांकि उत्तरी भारत के मैदानी इलाकों में नवंबर का समय बेस्ट माना गया है. इसकी खेती के लिए हल्की दोमट मिट्टी में सबसे अच्छा माना जाता है. बात करें बीज दर की तो एक हेक्टेयर भूमि में सीधी बुवाई के लिए विलायती पालक के 20 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है. वहीं बीज उपचार की बात करें तो बुवाई से पहले, बीज को 3 ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से थिरम या 5 ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से ट्राइकोडर्मा से उपचारित करना चाहिए.
सिंचाई और पोषण प्रबंधन
इस फसल को ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं होती, हर 10-12 दिन में हल्की सिंचाई पर्याप्त होती है. पहली कटाई 40-45 दिनों में और दूसरी कटाई 20 दिन बाद की जा सकती है. हर कटाई के बाद 30 किलो यूरिया प्रति हेक्टेयर या 1 प्रतिशत यूरिया सोल्यूशन का छिड़काव कर पत्तियों की ग्रोथ को बढ़ाया जा सकता हैं.
खेती के लिए बुवाई की विधि
यदि इसे पंक्तियों में बोया जा रहा है, तो पंक्ति की दूरी 30 सेंटीमीटर और पौधे की आपसी दूरी 10 -12 सेंटीमीटर रखनी चाहिए. इसके अलावा अतिरिक्त पौधों को निकाल कर अंकुरण के बाद एक पौधे से दूसरे पौधे की दूरी 10 सेमी बनाए रखे. पौधों को बोते समय ध्यान रखें की यह दो से तीन सेंटीमीटर की गहरी हो.