रिपोर्ट में खुलासा: अब अनाज नहीं, स्ट्रॉबेरी और अनार जैसी फसलें बनी किसानों की पहली पसंद

जैसे-जैसे लोगों की आमदनी बढ़ रही है, खाने की आदतें भी बदल रही हैं. रिपोर्ट बतातती है कि अब समाज के हर वर्ग में लोग ज्यादा फल खाने लगे हैं.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 2 Jul, 2025 | 12:26 PM

कभी हमारे देश की खेती सिर्फ गेहूं, चावल जैसे परंपरागत अनाजों पर टिकी थी, लेकिन अब समय बदल रहा है. अब किसान फल, सब्जियां और मसालों की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं, और यही बात हाल ही में आई एक सरकारी रिपोर्ट से भी सामने आई है. भारत सरकार के सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) ने एक ताजा रिपोर्ट जारी की है, जिसमें बताया गया है कि कैसे भारतीय कृषि धीरे-धीरे परंपरागत अनाजों से हटकर उच्च मूल्य वाली फसलों की ओर बढ़ रही है.

फल और सब्जियों की चमक बढ़ी

रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले एक दशक में सबसे ज्यादा बढ़त स्ट्रॉबेरी और अनार जैसे फलों में देखी गई है. स्ट्रॉबेरी की उत्पादन मूल्य (Gross Value of Output) में 80 गुना से भी ज्यादा की वृद्धि दर्ज की गई है. जहां 2011-12 में स्ट्रॉबेरी की GVO सिर्फ 1.32 करोड़ रुपये थी, वहीं 2023-24 तक यह बढ़कर 103.27 करोड़ रुपये हो गई.

इसी तरह अनार का GVO चार गुना बढ़कर 9,231 करोड़ रुपये तक पहुंच गया. परवल और कद्दू जैसी सब्जियां भी अब खास कमाई करने वाली फसलें बन चुकी हैं. परवल की GVO 17 गुना और कद्दू की 10 गुना बढ़ी है. मशरूम ने भी तीन गुना से ज्यादा की छलांग लगाई है.

मसाले भी पीछे नहीं

सिर्फ फल और सब्जियां ही नहीं, बल्कि मसालों की दुनिया में भी बदलाव दिखा है. खासकर सूखी अदरक यानी सोंठ की GVO में 285 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है, जो अब 11,004 करोड़ रुपये तक पहुंच चुकी है. यह साफ दिखाता है कि प्रोसेसिंग और वैल्यू एडिशन अब कृषि में अहम भूमिका निभा रहे हैं.

मांसाहार की ओर रुझान

जैसे-जैसे लोगों की आमदनी बढ़ रही है, खाने की आदतें भी बदल रही हैं. रिपोर्ट बताती है कि अब लोग मांसाहारी उत्पादों की ओर अधिक आकर्षित हो रहे हैं. 2011-12 में जहां कृषि GVO में मांस का हिस्सा 5 प्रतिशत था, वहीं 2023-24 तक यह बढ़कर 7.5 प्रतिशत हो गया है.

अनाज की हिस्सेदारी में गिरावट

दूसरी ओर, गेहूं, चावल जैसे परंपरागत अनाजों की हिस्सेदारी में लगातार गिरावट आई है. 2011-12 में कृषि उत्पादन GVO में अनाज का हिस्सा 17.6 प्रतिशत था, जो अब घटकर 14.5 प्रतिशत रह गया है. यानी किसान अब धीरे-धीरे ऐसी फसलों की ओर बढ़ रहे हैं जिनमें कम जमीन में ज्यादा मुनाफा हो.

बदलती खपत की तस्वीर

घर-घर में भी बदलाव दिख रहा है. ग्रामीण क्षेत्रों में ताजा फलों पर खर्च 2011-12 के 2.25 प्रतिशत से बढ़कर 2023-24 में 2.66 प्रतिशत हो गया है. हालांकि शहरी भारत में यह आंकड़ा थोड़ी गिरावट के साथ 2.64 प्रतिशत से 2.61 प्रतिशत पर आ गया है. फिर भी एक बात साफ है अब समाज के हर वर्ग में लोग ज्यादा फल खाने लगे हैं.

खेती का नया चेहरा

इस रिपोर्ट से ये साफ होता है कि किसान बदलती मांग के साथ खुद को ढाल रहे हैं, नई तकनीक अपना रहे हैं और मुनाफे वाली फसलों की ओर बढ़ रहे हैं. यह बदलाव न सिर्फ पोषण के लिहाज से बेहतर है, बल्कि भारत के किसानों की आय बढ़ाने और निर्यात के नए अवसर खोलने में भी मददगार हो रहा है.

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